आज नदी बिल्कुल उदास थी सोई थी अपने पानी में पंक्ति में कौनसा अलंकार है - aaj nadee bilkul udaas thee soee thee apane paanee mein pankti mein kaunasa alankaar hai

आज नदी बिल्कुल उदास थी सोई थी अपने पानी में पंक्ति में कौनसा अलंकार है - aaj nadee bilkul udaas thee soee thee apane paanee mein pankti mein kaunasa alankaar hai

केदारनाथ अग्रवाल
की काव्यालय पर अन्य रचनाएँ

 

आज नदी बिलकुल उदास थी

 

बसंती हवा

इस महीने :
'भीतर शिखरों पर रहना है'
अनिता निहलानी

ख़्वाब देखकर सच करना है
ऊपर ही ऊपर चढ़ना है,
जीवन वृहत्त कैनवास है
सुंदर सहज रंग भरना है!

साथ चल रहा कोई निशदिन
हो अर्पित उसको कहना है,
इक विराट कुटुंब है दुनिया
सबसे मिलजुल कर रहना है!
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इस महीने :
'भीतर बहुत दूर'
अनीता वर्मा

भीतर बहुत दूर
एक घेरा है
दुनिया के उपजे रास्तों का भूरा विस्तार
आँखों के जलकुंडों के किनारे
तुम्हारे अनगिनत प्रतिरूप
निर्वसन उनसे लिपटती हुई मेरी आत्मा

भीतर बहुत दूर
इस दुनिया के पीछे से
झाँकती है एक दुनिया
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