1962 के आपातकाल के समय भारत के राष्ट्रपति कौन थे? - 1962 ke aapaatakaal ke samay bhaarat ke raashtrapati kaun the?

1962 के आपातकाल के समय भारत के राष्ट्रपति कौन थे? - 1962 ke aapaatakaal ke samay bhaarat ke raashtrapati kaun the?

प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, जिन्होंने भारत के राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा करवाई।

25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का 21 महीने की अवधि में भारत में आपातकाल घोषित था। तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की अनुच्छेद 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा कर दी। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक काल था। आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए तथा नागरिक अधिकारों को समाप्त करके मनमानी की गई। इंदिरा गांधी के राजनीतिक विरोधियों को कैद कर लिया गया और प्रेस पर प्रतिबंधित लगा दिया गया। प्रधानमंत्री के बेटे संजय गांधी के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर पुरुष नसबंदी अभियान चलाया गया। जयप्रकाश नारायण ने इसे 'भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि' कहा था।

परिचय[संपादित करें]

इंदिरा गांधी का उदय[संपादित करें]

1967 और 1971 के बीच, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सरकार और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के साथ ही संसद में भारी बहुमत को अपने नियंत्रण में कर लिया था। केंद्रीय मंत्रिमंडल की बजाय, प्रधानमंत्री के सचिवालय के भीतर ही केंद्र सरकार की शक्ति को केंद्रित किया गया। सचिवालय के निर्वाचित सदस्यों को उन्होंने एक खतरे के रूप में देखा। इसके लिए वह अपने प्रधान सचिव पीएन हक्सर, जो इंदिरा के सलाहकारों की अंदरुनी घेरे में आते थे, पर भरोसा किया।[1] इसके अलावा, परमेश्वर नारायण हक्सर ने सत्तारूढ़ पार्टी की विचारधारा "प्रतिबद्ध नौकरशाही" के विचार को बढ़ावा दिया।

1962 के आपातकाल के समय भारत के राष्ट्रपति कौन थे? - 1962 ke aapaatakaal ke samay bhaarat ke raashtrapati kaun the?

संजय गांधी : आपातकाल के दौरान एक लोकप्रिय नारा था,
'आपातकाल के तीन दलाल - संजय, विद्या, बंसीलाल'

इंदिरा गांधी ने चतुराई से अपने प्रतिद्वंदियों को अलग कर दिया जिस कारण कांग्रेस विभाजित हो गयी और 1969-में दो भागों , कांग्रेस (ओ) ("सिंडीकेट" के रूप में जाना जाता है जिसमें पुराने गार्ड शामिल हैं) व कांग्रेस (आर) जो इंदिरा की ओर थी, भागों में बट गयी। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी और कांग्रेस सांसदों के एक बड़े भाग ने प्रधानमंत्री का साथ दिया। इंदिरा गांधी की पार्टी पुरानी कांग्रेस से ज्यादा ताकतवर व आंतरिक लोकतंत्र की परंपराओं के साथ एक मजबूत संस्था थी। दूसरी और कांग्रेस (आर) के सदस्यों को जल्दी ही समझ में आ गया कि उनकी प्रगति इंदिरा गांधी और उनके परिवार के लिए अपनी वफादारी दिखने पर पूरी तरह निर्भर करती है और दिखावटी चाटुकारिता प्रदर्शित करना उनकी दिनचर्या बन गया। आने वाले वर्षों में इंदिरा का प्रभाव इतना बढ़ गया कि वह कांग्रेस विधायक दल द्वारा निर्वाचित सदस्यों की बजाय, राज्यों के मुख्यमंत्रियों के रूप में स्वयं चुने गए वफादारों को स्थापित कर सकती थीं।

इंदिरा की उस सरकार के पास जनता के बीच उनकी करिश्माई अपील का समर्थन प्राप्त था। इसकी एक और कारण सरकार द्वारा लिए गए फैसले भी थे। इसमें जुलाई 1969 में प्रमुख बैंकों का राष्ट्रीयकरण व सितम्बर 1970 में राजभत्ते(प्रिवी पर्स) से उन्मूलन शामिल हैं; ये फैसले अपने विरोधियों को सार्वभौमिक झटका देने के लिए, अध्यादेश के माध्यम से अचानक किये गए थे। इसके बाद, सिंडीकेट और अन्य विरोधियों के विपरीत, इंदिरा को "गरीब समर्थक , धर्म के मामलों में, अर्थशास्त्र और धर्मनिरपेक्षता व समाजवाद के साथ पूरे देश के विकास के लिए खड़ी एक छवि के रूप में देखा गया।"[2][3] प्रधानमंत्री को विशेष रूप से वंचित वर्गों-गरीब, दलितों, महिलाओं और अल्पसंख्यकों द्वारा बहुत समर्थन मिला। उनके लिए, वह उनकी इंदिरा अम्मा थीं।

1971 के आम चुनावों में, "गरीबी हटाओ" का इंदिरा का लोकलुभावन नारा लोगों को इतना पसंद आया कि पुरस्कार स्वरुप उन्हें एक विशाल बहुमत (518 में से 352 सीटें) से जीता दिया। " जीत के इतने बड़े अंतर के सम्बन्ध में इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने बाद में लिखा था कि "कांग्रेस (आर) असली कांग्रेस के रूप में खड़ी है इसे योग्यता प्रदर्शित करने के लिए किसी प्रत्यय की आवश्यकता नहीं है।"

दिसंबर 1971 में, इनके सक्रिय युद्ध नेतृत्व में भारत ने पूर्व में पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) को अपने कट्टर दुश्मन पाकिस्तान से स्वतंत्रता दिलवाई। अगले महीने ही उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया, वह उस समय अपने चरम पर थीं; उनकी जीवनी लेखक इंदर मल्होत्रा, के लिए 'भारत की साम्राज्ञी' के रूप में उनका वर्णन" उपयुक्त लग रहा था। नियमित रूप से एक तानाशाह होने का और एक व्यक्तित्व पंथ को बढ़ावा देने का आरोप लगाने वाले विपक्षी नेताओं ने भी उन्हें दुर्गा समान माना।[4]

1962 के आपातकाल के समय भारत के राष्ट्रपति कौन थे? - 1962 ke aapaatakaal ke samay bhaarat ke raashtrapati kaun the?

आपातकाल घोषित करके प्रमुख नेताओं को पकड़कर जेल में डाल दिया गया था।

1975 की तपती गर्मी के दौरान अचानक भारतीय राजनीति में भी बेचैनी दिखी। यह सब हुआ इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस फ़ैसले से जिसमें इंदिरा गांधी को चुनाव में धांधली करने का दोषी पाया गया और उन पर छह वर्षों तक कोई भी पद संभालने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। लेकिन इंदिरा गांधी ने इस फ़ैसले को मानने से इनकार करते हुए सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने की घोषणा की और 26 जून को आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी गई।

आकाशवाणी पर प्रसारित अपने संदेश में इंदिरा गांधी ने कहा, "जब से मैंने आम आदमी और देश की महिलाओं के फायदे के लिए कुछ प्रगतिशील क़दम उठाए हैं, तभी से मेरे ख़िलाफ़ गहरी साजिश रची जा रही थी।"

आपातकाल लागू होते ही आंतरिक सुरक्षा क़ानून (मीसा) के तहत राजनीतिक विरोधियों की गिरफ़्तारी की गई, इनमें जयप्रकाश नारायण, जॉर्ज फ़र्नांडिस और अटल बिहारी वाजपेयी भी शामिल थे।

मामला[संपादित करें]

मामला 1971 में हुए लोकसभा चुनाव का था, जिसमें इंदिरा ने अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी राज नारायण को पराजित किया था। लेकिन चुनाव परिणाम आने के चार साल बाद राज नारायण ने हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी। उनकी दलील थी कि इंदिरा गांधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग किया, तय सीमा से अधिक पैसे खर्च किए और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए ग़लत तरीकों का इस्तेमाल किय। अदालत ने इन आरोपों को सही ठहराया। इसके बावजूद इंदिरा गांधी टस से मस नहीं हुईं। यहाँ तक कि कांग्रेस पार्टी ने भी बयान जारी कर कहा कि इंदिरा का नेतृत्व पार्टी के लिए अपरिहार्य है।

आपातकाल-विरोधी आन्दोलन[संपादित करें]

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका[संपादित करें]

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को प्रतिबन्धित कर दिया गया क्योंकि माना गया कि यह संगठन विपक्षी नेताओं का करीबी है तथा इसका बड़ा संगठनात्मक आधार सरकार के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन करने की सम्भावना रखता था। पुलिस इस संगठन पर टूट पड़ी और उसके हजारों कार्यकर्ताओं को कैद कर दिया गया। आरएसएस ने प्रतिबंध को चुनौती दी और हजारों स्वयंसेवकों ने प्रतिबंध के खिलाफ और मौलिक अधिकारों के हनन के खिलाफ सत्याग्रह में भाग लिया।

सिखों द्वारा विरोध[संपादित करें]

सभी विपक्षी दलों के नेताओं और सरकार के अन्य स्पष्ट आलोचकों के गिरफ्तार किये जाने और सलाखों के पीछे भेज दिये जाने के बाद पूरा भारत सदमे की स्थिति में था। आपातकाल की घोषणा के कुछ ही समय बाद, सिख नेतृत्व ने अमृतसर में बैठकों का आयोजन किया जहां उन्होंने "कांग्रेस की फासीवादी प्रवृत्ति" का विरोध करने का संकल्प किया। देश में पहले जनविरोध का आयोजन अकाली दल ने किया था जिसे "लोकतंत्र की रक्षा का अभियान" के रूप में जाना जाता है। इसे ९ जुलाई को अमृतसर में शुरू किया गया था।

पहली गैर-कांग्रेसी सरकार[संपादित करें]

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मोरारजी देसाई : प्रथम गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री (1977–1979)

आपातकाल लागू करने के लगभग दो साल बाद विरोध की लहर तेज़ होती देख प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने लोकसभा भंग कर चुनाव कराने की सिफारिश कर दी। चुनाव में आपातकाल लागू करने का फ़ैसला कांग्रेस के लिए घातक साबित हुआ। ख़ुद इंदिरा गांधी अपने गढ़ रायबरेली से चुनाव हार गईं। जनता पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में आई और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। संसद में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या 350 से घट कर 153 पर सिमट गई और 30 वर्षों के बाद केंद्र में किसी ग़ैर कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ। कांग्रेस को उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में एक भी सीट नहीं मिली। नई सरकार ने आपातकाल के दौरान लिए गए फ़ैसलों की जाँच के लिए शाह आयोग गठित की गई। हालाँकि नई सरकार दो साल ही टिक पाई और अंदरूनी अंतर्विरोधों के कारण १९७९ में सरकार गिर गई। उप प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने कुछ मंत्रियों की दोहरी सदस्यता का सवाल उठाया जो जनसंघ के भी सदस्य थे। इसी मुद्दे पर चरण सिंह ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया और कांग्रेस के समर्थन से उन्होंने सरकार बनाई लेकिन चली सिर्फ़ पाँच महीने. उनके नाम कभी संसद नहीं जाने वाले प्रधानमंत्री का रिकॉर्ड दर्ज हो गया।

घटनाक्रम[संपादित करें]

1975[संपादित करें]

  • 12 जून 1975 को इंदिरा गांधी को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने दोषी पाया और छह साल के लिए पद से बेदखल कर दिया। इंदिरा गांधी पर वोटरों को घूस देना, सरकारी मशीनरी का गलत इस्तेमाल, सरकारी संसाधनों का गलत इस्तेमाल जैसे 14 आरोप सिद्ध हुए लेकिन आदतन श्रीमती गांधी ने उन्हें स्वीकार न करके न्यायपालिका का उपहास किया । राज नारायण ने 1971 में रायबरेली में इंदिरा गांधी के हाथों हारने के बाद मामला दाखिल कराया था। जस्टिस जगमोहनलाल सिन्हा ने यह फैसला सुनाया था।
  • 24 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश बरकरार रखा, लेकिन इंदिरा को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बने रहने की इजाजत दी जो कि होना भी जरुरी था क्योकि राजतन्त्र में ऐसा ही होता है।
  • 25 जून 1975 को जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा के न चाहते हुए भी इस्तीफा देने तक देश भर में रोज प्रदर्शन करने का आह्वान किया।
  • 25 जून 1975 को राष्ट्रपति के अध्यादेश पास करने के बाद सरकार ने आपातकाल लागू कर दिया।

1976[संपादित करें]

  • सितम्बर १९७६ - संजय गाँधी ने देश भर में अनिवार्य पुरुष नसबंदी का आदेश दिया। इस पुरुष नसबंदी के पीछे सरकार की मंशा देश की आबादी को नियंत्रित करना था। इसके अंतर्गत लोगों की इच्छा के विरुद्ध नसबंदी कराई गयी। कार्यक्रम के कार्यान्वयन में संजय गांधी की भूमिका की सटीक सीमा विवादित है, कुछ लेखकों ने गांधी को उनके आधिकारिकता के लिए सीधे जिम्मेदार ठहराया है, और अन्य लेखकों ने उन अधिकारियों को दोषी ठहराते हुए जिन्होंने स्वयं गांधी के बजाय कार्यक्रम को लागू किया था। रुखसाना सुल्ताना एक समाजवादी थीं जो संजय गांधी के करीबी सहयोगियों में से एक होने के लिए जानी जाती थीं[5] और उन्हें पुरानी दिल्ली के मुस्लिम क्षेत्रों में संजय गांधी के नसबंदी अभियान के नेतृत्व में बहुत कुख्यातता मिली थी।[6]

1977[संपादित करें]

  • १८ जनवरी - इन्दिरा गांधी ने लोकसभा भंग करते हुए घोषणा की कि मार्च मे लोकसभा के लिए आम चुनाव होंगे। सभी राजनैतिक बन्दियों को रिहा कर दिया गया।
  • २३ मार्च - आपातकाल समाप्त
  • १६-२० मार्च - ६ठे लोकसभा के चुनाव सम्पन्न। जनता पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में आई। संसद में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या ३५० से घट कर १५३ पर सिमट गई और ३० वर्षों के बाद केंद्र में किसी गैर-कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ। स्वयं इंदिरा गांधी और संजय गांधी चुनाव हार गए। मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने। कांग्रेस को उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में एक भी सीट नहीं मिली।
  • नई सरकार ने आपातकाल के दौरान लिए गए निर्णयों की जाँच के लिए शाह आयोग गठित किया।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • उत्तर प्रदेश राज्य बनाम राज नारायण
  • इंदु सरकार
  • जगमोहनलाल सिन्हा
  • जयप्रकाश नारायण
  • सम्पूर्ण क्रान्ति
  • जनता पार्टी
  • आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम (मीसा)
  • भारतीय संविधान का बयालीसवाँ संशोधन
  • शाह आयोग

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "कहानी इंदिरा के सबसे ताक़तवर नौकरशाह पीएन हक्सर की". मूल से 22 जुलाई 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 जुलाई 2018.
  2. "संग्रहीत प्रति". मूल से 23 जून 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 जून 2015.
  3. "संग्रहीत प्रति". मूल से 23 जून 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 जून 2015.
  4. "संग्रहीत प्रति". मूल से 23 जून 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 23 जून 2015.
  5. "Tragedy at Turkman Gate: Witnesses recount horror of Emergency". मूल से 10 जुलाई 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 अगस्त 2018.
  6. "रुखसाना सुल्ताना : एक सुंदरी जिसे देखते ही मर्दों की रूह कांप जाती थी". मूल से 21 जुलाई 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 16 जुलाई 2018.

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • आपात्काल, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय और स्मृतियां – भाग-१
  • इमरजेंसी: लोकतंत्र का काला अध्याय (राजस्थान पत्रिका)
  • आपातकाल और लोकतंत्र (प्रवक्ता डॉट कॉम)
  • कहानी आपातकाल की, जो कक्षा में सुनी थी-पत्रकार श्रवण शुक्ल की जुबानी (आईबीएन7)
  • आपातकाल की कहानी, पत्रकार की जुबानी (आईबीएन7)
  • आपातकाल की पूरी कहानी : जानें किन-किन कारणों से इंदिरा गांधी ने लगाई इमरजेंसी (एबीपी न्यूज)
  • जब इंदिरा के फरमान से देश पर बरपा सरकारी कहर

1962 में आपातकाल के समय भारत के राष्ट्रपति कौन थे?

तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की अनुच्छेद 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा कर दी। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक काल था।

भारत में कितनी बार आपातकाल लगा?

सही उत्तर तीन बार है। स्वतंत्रता के बाद से भारत में तीन बार आपातकाल की स्थिति घोषित की गई है। 26 अक्टूबर 1962 से 10 जनवरी 1968 के बीच भारत-चीन युद्ध के दौरान आपातकाल लागू किया गया था, यह वह समय था जब "भारत की सुरक्षा" को "बाहरी आक्रमण से खतरा" घोषित किया गया था।

राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कौन करता है?

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के अनुसार, यदि भारत के राष्ट्रपति को लगता है कि बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह के कारण भारत की सुरक्षा को खतरा है तो राष्ट्रपति पूरे भारत या किसी एक हिस्से में आपातकाल की घोषणा जारी कर सकते हैं। आपातकाल की घोषणा राष्ट्रपति द्वारा बाद में रद्द की जा सकती है।

भारत में दूसरी बार आपातकाल कब लगा?

1965 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध की। बाहरी आक्रामकता: – पाकिस्तान के हमले के मद्देनजर 1971 में राष्ट्रीय आपातकाल की दूसरी घोषणा की गई थी। जब यह आपातकाल लागू था, तब भी राष्ट्रीय आपातकाल का तीसरा उद्घोषणा जून 1975 में किया गया था। मार्च 1977 में दूसरे और तीसरे उद्घोषणों को रद्द कर दिया गया था।