दांतों में खिंचाव क्यों होता है? - daanton mein khinchaav kyon hota hai?

मुंह, गर्दन व सिर का कैंसर, अन्य कैंसरों की तुलना में तेजी से पांव पसार रहा है। फिलहाल भारत में इसकी जानकारी भी कम है। पर अच्छी बात यह है कि इन कैंसर से न सिर्फ पूरी तरह बचा जा सकता है, बल्कि समय पर...

लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 24 Jul 2014 08:19 PM

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मुंह, गर्दन व सिर का कैंसर, अन्य कैंसरों की तुलना में तेजी से पांव पसार रहा है। फिलहाल भारत में इसकी जानकारी भी कम है। पर अच्छी बात यह है कि इन कैंसर से न सिर्फ पूरी तरह बचा जा सकता है, बल्कि समय पर सचेत रह कर शुरुआती स्तर पर ही इन्हें बढ़ने से रोका जा सकता है, बता रहे हैं जयकुमार सिंह

हमारा शरीर बहुत-सी छोटी-छोटी इकाइयों से बना है, जिन्हें हम कोशिकाएं कहते हैं। इन कोशिकाओं का जीवनकाल बहुत कम होता है, इसलिए शरीर में इनके टूटने और नए बनने की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है। जब किन्हीं कारणों से इस प्रक्रिया में बाधा आती है तो ये कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से बढ़ना शुरू कर देती हैं और धीरे-धीरे गांठ का रूप धारण कर लेती हैं। यही कैंसर है। भारत में सौ से ज्यादा प्रकार के कैंसर हैं, जिसमें स्तन, फेफड़ों और सर्वाइकल कैंसर के बारे में सबसे ज्यादा सुना जाता है। पर मुंह, सिर और गले के कैंसर के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। भारत में इसकी जानकारी रखने वालों की संख्या बहुत कम है, पर इसके शिकार बने लोगों की संख्या कम नहीं है।

जर्नल ऑफ हेड एंड नेक सजर्री में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार सिर और गले के कैंसर के मामले में एशिया सबसे आगे है। वैश्विक स्तर पर इस बीमारी से ग्रसित लोगों में 57.5 प्रतिशत एशियाई मुल्क के रहने वाले हैं। खासकर भारत में सिर और गले का कैंसर तेजी से अपने पांव पसार रहा है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद की रिपोर्ट के अनुसार हर साल इस बीमारी से ग्रसित 2 से 2.5 लाख नए मामले सामने आते हैं। विश्व के एक तिहाई पीड़ित हमारे देश में ही हैं। कैंसर के करीब 70% मामलों में मरीज की अनुचित जीवनशैली और सामाजिक व्यवहार मुख्य रूप से जिम्मेदार होता है।  

गर्दन व सिर का कैंसर
गर्दन व सिर के कैंसर से आशय उन ट्यूमर्स से है, जो गर्दन और सिर के हिस्से में होता है। इस हिस्से में ओरल कैविटी, थायरॉइड और थूक ग्रंथि विशेष रूप से प्रभावित होते हैं। सिगरेट व तंबाकू का सेवन, कुछ खास तरह के विटामिनों की कमी, मसूढ़ों में होने वाली बीमारी इसका खास कारण हो सकते हैं। आंकड़ों के अनुसार समूचे दक्षिण एशिया खासकर भारत व पाकिस्तान में गले का कैंसर एक भयावह स्थिति में पहुंच चुका है। चिंता की बात यह है कि गले का कैंसर किसी भी उम्र में हो सकता है। 20 से 25 वर्ष के युवा भी इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। हालांकि 40 से 50 की आयु वाले लोग इसके लक्ष्य पर अधिक हैं। राहत देने वाली खबर यह है कि समय रहते बीमारी का पता चल जाने पर इसे ठीक करने की तकनीक चिकित्सा विज्ञान ने ईजाद कर ली है। ऐसे में बेहतर होगा कि शरीर में दिखने वाले मामूली लक्षणों के प्रकट होने पर तत्काल विशेषज्ञ चिकित्सकों से परामर्श लें।

लक्षण
- आवाज बदल जाती है
- आवाज भारी हो जाती है
- मुंह से खून आ सकता है
-गले में जकड़न-सी महसूस होती है
- सांस लेने में तकलीफ होती है
- खाना खाने में तकलीफ होती है
- ठीक न होने वाली गांठ या छाला
- गले में खराश, जो इलाज के बावजूद ठीक न हो
- नियमित सिर दर्द होना
-कानों में दर्द या सीटियां बजने लगना
-खाना निगलते समय गले में या आसपास दर्द, कानों में दर्द होना।   

कुछ अन्य लक्षण भी हैं, जिन पर ध्यान जरूरी है:
मुंह: मसूढ़े, जीभ या मुंह के अंदर सफेद या लाल चकत्ता होना। जबड़ों में सूजन आ जाए और मुंह में असामान्य रक्तस्नव या दर्द हो।
नाक: साइनस का गंभीर संक्रमण, जिस पर एंटीबायोटिक उपचार का कोई असर न हो, नाक से खून बहना, बार-बार सिर दर्द होना, आंखों में सूजन, ऊपर के दांतों में दर्द रहना आदि। 
थूक ग्रंथी: ठोढ़ी के निचले हिस्से या जबड़े के आसपास सूजन, चेहरे की मांसपेशियों में सुन्नता और चेहरे, ठोढ़ी और गले में लगातार होने वाला दर्द। ये लक्षण मामूली हैं, इन्हें आसानी से नजरअंदाज कर दिया जाता है, क्योंकि ये कुछ ही समय में ठीक हो जाते हैं। पर यदि आराम नहीं आ रहा है तो अनुभवी चिकित्सक से परामर्श लेना जरूरी है।

मुंह का कैंसर
मुंह में होने वाला कैंसर बहुत आम है। यह भारतीय पुरुषों को ज्यादा होता है और महिलाओं में यह तीसरा सर्वाधिक होने वाला कैंसर है। लगभग 90 प्रतिशत रोगी तंबाकू चबाने वाले उत्पादों की वजह से इसके शिकार बनते हैं। शुरुआती दौर में छाला या मुंह का छोटा-मोटा अल्सर समझ कर इसे नजरअंदाज कर दिया जाता है। यही वजह है कि भारत में इस कैंसर से ग्रसित 70 से 80 प्रतिशत रोगियों का इलाज अंतिम स्थिति में पहुंचने पर होता है। डॉक्टरों की मानें तो ऐसी स्थिति में उपचार में अधिक समय लगता है।

सिगरेट, शराब और गुटका का ज्यादा सेवन करने वाले लोगों को यह कैंसर होने का जोखिम अधिक होता है। मुंह के कैंसर की शुरुआत छाले के रूप में होती है, पर यह छाला ऐसा है, जो जल्दी ठीक नहीं होता। इस दौरान गाल व मसूढ़े में सूजन व दर्द रहता है। मुंह खोलने में कठिनाई होती है। गर्दन में गांठ जैसी बनने लगती है। हर समय खराश रहती है। जीभ हिलाने पर तकलीफ होती है। आवाज साफ नहीं निकलती। कुछ रोगियों के दांत अचानक कमजोर हो जाते हैं और हिलने लगते हैं। 

मस्तिष्क का कैंसर
मस्तिष्क के कैंसर की मूल वजह अभी तक अज्ञात है, पर कुछ वजहों से इसकी आशंका बढ़ जाती है। मसलन, शरीर के किसी अन्य हिस्से में कैंसर हुआ हो तो उसके मस्तिष्क तक फैलने की आशंका बढ़ सकती है। इसमें मस्तिष्क के हिस्से में गांठ बनने लगती है। कुछ खास रसायनों के संपर्क में आने पर भी यह कैंसर हो सकता है। यह जेनेटिक भी हो सकता है। मस्तिष्क के आगे और पीछे वाले हिस्से में होने वाले कैंसर के लक्षण अलग-अलग होते हैं। मस्तिष्क के कैंसर में दिखने वाले कुछ सामान्य लक्षण इस प्रकार हैं..

- गांठ बनने की शुरुआत होते ही स्वभाव चिड़चिड़ा होने लगता है
- सिर में हमेशा दर्द रहता है
- शारीरिक कमजोरी लगती है, हर समय थकावट रहने लगती है।
- शरीर का कोई अंग सुन्न हो जाता है, जैसे कि उसमें चेतना ही न हो
- बहुत बेचैनी होती है
- कुछ मामलों में लिखने व सवाल हल करने में कठिनाई होती है।

आमतौर पर  कैंसर का उपचार शल्य क्रिया, कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी तीन तरीकों से होता है। कैंसर के आधार पर पद्धति का चुनाव होता है। मसलन यदि कैंसर किसी अंग विशेष में है तो शल्य क्रिया से उस अंग को हटाया जाता है या संक्रमित हिस्से को काट दिया जाता है। यदि ऐसा करना संभव नहीं है तो उसमें रेडिएशन थेरेपी से इलाज होता है। इस हिस्से में रेडिएशन के जरिये कैंसर कोशिकाओं को नष्ट किया जाता है। इसे विशेष परिस्थितियों में ही अपनाया जाता है। तीसरी पद्धति कीमोथेरेपी है, जिसमें दवाओं से उपचार किया जाता है। इसके अलावा हार्मोन थेरेपी भी प्रचलित है।


गले का उपचार
गले के कैंसर के संबंध में सबसे पहले मरीजों की पूरी जांच की जाती है। फिर ‘बॉयोप्सी’ जांच से  बीमारी की अवस्था का पता लगाया जाता है। अगर कैंसर गले के ऊपरी भाग में हुआ है तो इलाज करने में आसानी होती है। नीचे होने पर स्थिति चिंताजनक हो सकती है। बीमारी अगर पहले या दूसरे चरण में है तो इसे रेडियोथेरेपी से ठीक किया जा सकता है। तीसरे चरण में रेडियोथेरेपी के साथ सर्जरी करनी पड़ती है। कैंसर अगर चौथे चरण में है तो उसे जड़ से खत्म नहीं किया जा सकता, पर रोगी जीने लायक जरूर हो जाता है।
(अपोलो हॉस्पिटल में सीनियर कंसल्टेंट डॉ. राजेश चावला से बातचीत पर आधारित)

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  • जबड़े में खिंचाव क्यों होता है?

    इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के मुताबिक, जबड़े में दर्द का कारण मानसिक तनाव भी हो सकता है. टीएमजे निचले जबड़े को खोपड़ी से जोड़ता है. हालांकि टीएमजे विकारों के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें दांत एक सीध में न होना या दिमागी सदमा प्रमुख शामिल है, लेकिन इसकी एक वजह मानसिक तनाव भी हो सकता है.

    जबड़े में कट कट की आवाज क्यों आती है?

    इस समस्या का सबसे बड़ा कारण टेम्पोरोमैंडिबुलर जॉइंट डिसऑर्डर (टीएमडी) है। जब ये जोड़ ठीक तरह से काम नहीं करते तो जॉ पॉपिंग की समस्या होने लगती है। समय पर इसका इलाज बेहद जरूरी है।

    सोते समय जबड़े की अकड़न को कैसे रोकें?

    कुछ कोमल जबड़े खींच अभ्यास करने के बाद जबड़े के लिए एक गर्म या ठंडे फलालैन पकड़े । संयुक्त को बहुत चौड़ा खोलने से बचें। जोड़ के आसपास की मांसपेशियों की मालिश करना। तनाव को दूर करने के लिए विश्राम अभ्यास (लोग जोर दिए जाने पर अपने जबड़े को झुकाते हैं)।

    मसूड़ों में दर्द हो रहा है तो क्या करें?

    मसूड़ों के दर्द को कम करने के उपाय.
    गरारे करें और नमकीन गर्म पानी को अपने मुंह में चारों ओर घुमाएं.
    गर्म या ठंडे सेंक से मसूड़ों के दर्द को कम करने में मदद मिलती है.
    हर्बल चाय पिएं.
    अपने दांतों को पूरी तरह और ठीक से ब्रश करें.
    ब्रश करते समय कठोर न हों.
    मसूड़ों के दर्द वाले स्थान पर आराम से गर्म चाय का बैग (Tea bag)का प्रयोग.

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