वैदिक ज्योतिष में शुक्र ग्रह का विशेष महत्व है। शुक्र ग्रह को भौतिक, शारीरिक और वैवाहिक सुखों का कारक माना जाता है। बुध और शनि, शुक्र ग्रह के मित्र ग्रह हैं। जबकि शुक्र के सूर्य और चंद्रमा शत्रु ग्रह...
Saumya Tiwariलाइव हिन्दुस्तान टीम,नई दिल्लीWed, 21 Jul 2021 08:19 AM
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वैदिक ज्योतिष में शुक्र ग्रह का विशेष महत्व है। शुक्र ग्रह को भौतिक, शारीरिक और वैवाहिक सुखों का कारक माना जाता है। बुध और शनि, शुक्र ग्रह के मित्र ग्रह हैं। जबकि शुक्र के सूर्य और चंद्रमा शत्रु ग्रह हैं। शुक्र एक राशि से दूसरी राशि में गोचर 23 दिन में करता है। शुक्र ग्रह की स्थिति जन्मकुंडली में शुभ व उच्च होने की होने पर जातक को किसी भी चीज की कमी नहीं रहती है। शुक्र के शुभ प्रभाव से मां लक्ष्मी का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। जानिए शुक्र ग्रह की प्रिय राशियों के बारे में-
1.वृषभ राशि- वृषभ राशि के स्वामी शुक्र हैं। यह राशि सौंदर्य और खूबसूरती का प्रतीक है। कहा जाता है कि इस राशि के जातक काफी बुद्धिमान होते हैं। ये शिक्षा और सौंदर्य के क्षेत्र में तरक्की हासिल करते हैं। आमतौर पर इस राशि के जातकों को 30 साल के बाद सफलता हासिल होती है। इनमें सहनशीलता काफी ज्यादा होती है। ये जीवन में खूब पैसा कमाने की चाहत रखते हैं।
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2. तुला राशि- इस राशि के जातक को जीवन में सभी सुख-सुविधाएं हासिल होती हैं। इन्हें महंगी चीजों का शौक होता है। ये अपने सपनों को पूरा करने के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं। ये आमतौर पर सज-संवरकर रहना पसंद करते हैं। इन्हें दोस्तों से भी लाभ मिलता है। तुला राशि के जातक दूसरों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।
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3. मीन राशि- मीन राशि को शुक्र की उच्च राशि माना जाता है। ये लोग क्रिएटिव विचारों वाले होते हैं। ये कला, चिकित्सा, जीव विज्ञान और संगीत के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करते हैं। ये धार्मिक स्वभाव के होते हैं। ये एक बार जिस काम को ठान लेते हैं, उसे पूरा करके ही दम लेते हैं। ये अपनी बात स्पष्टतौर पर कहना जानते हैं।
इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।
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नमस्कार। उच्च, नीच राशि के अलावा फलित के लिए ग्रहों की मित्रता एवं शत्रुता को भी जानना आवश्यक है। सूर्यादि ग्रह दूसरे ग्रहों के प्रति सम, मित्र, एवं शत्रु होते हैं। मित्र शत्रु तालिका को ब्लैक बोर्ड पर ध्यान से देखें -
ग्रहमित्रशत्रुसूर्यचन्द्र, मंगल, गुरूशनि, शुक्रचन्द्रमासूर्य, बुधकोई नहींमंगलसूर्य, चन्द्र, गुरूबुधबुधसूर्य, शुक्रचंद्रगुरूसुर्य, चंन्द्र, मंगलशुक्र, बुधशुक्रशनि, बुधशेष ग्रहशनिबुध, शुक्रशेष ग्रहराहु, केतुशुक्र, शनिसूर्य, चन्द्र, मंगल
यह तालिका बहुत महत्वपूर्ण है और इसे भी याद करने की कोशिश करनी चाहिए। यदि यह तालिका बहुत बडी लगे तो डरने की कोई जरुरत नहीं। तालिका समय एवं अभ्यास के साथ खुद व खुद याद हो जाती है। मोटे तौर पर वैसे हम ग्रहो हो दो भागों में विभाजित कर सकते हैं जो कि एक दूसरे के शत्रु हैं -
भाग 1 - सूर्य, चंद्र, मंगल और गुरु
भाग 2 - बुध, शुक्र, शनि, राहु, केतु
यह याद रखने का आसान तरीका है परन्तु हर बार सही नहीं है। ऊपर वाली तालिका याद रखें तो ज्यादा बेहतर है।
मित्र-शत्रु का मतलब यह है कि जो ग्रह अपनी मित्र ग्रहों की राशि में हो एवं मित्र ग्रहों के साथ हो वह ग्रह अपन शुभ फल देगा। इसके विपरीत कोई ग्रह अपने शत्रु ग्रह की राशि में हो या शत्रु ग्रह के साथ हो तो उसके शुभ फल में कमी आ जाएगी। इस वीडियो में इतना ही। नमस्कार।
मनुष्य के जीवनकाल में उसके कुछ मित्र व शत्रु होते हैं। समान गुणधर्म एवं आचार-विचार वाले व्यक्तियों में अक्सर मित्रता होती है, वहीं विपरीत गुणधर्म एवं आचार-विचार वाले व्यक्तियों में मित्रता का अभाव होता है। इसी प्रकार ज्योतिष में ग्रहों की परस्पर मित्रता व शत्रुता होती है जिसे नैसर्गिक मैत्री कहते हैं।
इसके अतिरिक्त ग्रहों की परस्पर स्थिति के आधार पर तात्कालिक मैत्री होती एवं नैसर्गिक मैत्री एवं तात्कालिक मैत्री के आधार 'पंचधा-मैत्री चक्र' का निर्माण होता है। 'पंचधा-मैत्री चक्र' के अनुसार ग्रहों की परस्पर शत्रुता-मित्रता जातक के जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव डालती है।
यदि 'पंचधा-मैत्री चक्र' में कोई ग्रह जन्म पत्रिका में अपने मित्र की राशि में स्थित है अथवा मित्र के साथ स्थित होता है या अपने मित्र के द्वारा दृष्टव्य होता है तब यह जातक को शुभ फल प्रदान करता है। इसके ठीक विपरीत यदि कोई ग्रह जन्म पत्रिका में अपने शत्रु की राशि में स्थित है अथवा शत्रु के साथ युतिकारक है या शत्रु की पूर्ण दृष्टि प्रभाव में है तो यह जातक अशुभ फल प्रदान करता है।
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