‘साये में धूप’ गजल का प्रतिपाद्य लिखिए।
यह दुष्यंत कुमार की प्रसिद्ध गजल है। यह पूरी गजल एक खास मन:स्थिति में लिखी गई है। राजनीति और समाज में सब कुछ सही नहीं चल रहा है। कवि उसे खारिज करता है और अन्य विकल्प की तलाश करता है। यह भाव इस गजल का केन्द्रीय सूत्र बन गया है। कवि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नहीं खोना चाहता। वह ख्वाब की दुनिया में कुछ क्षण के लिए सुख भोग लेना चाहता है। वह बर्फ को पिघलाने में विश्वास प्रकट करता है। उसे गुलमोहर के वृक्ष के नीचे शांति एवं सुख का अहसास होता है।
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आखिरी शेर में ‘गुलमोहर’ की चर्चा हुई है। क्या उसका आशय एक खास तरह के फूलदार वृक्ष से है या उसमें कोई सांकेतिक अर्थ निहित है? समझाकर लिखें।
गुलमोहर से आशय एक खास तरह के फूलदार वृक्ष से तो है ही, साथ ही इसका सांकेतिक अर्थ भी है। गुलमोहर शांति और सुंदरता का प्रतीक है। इसके नीचे व्यक्ति को आजादी का अहसास होता है।
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पहले शेर में ‘चिराग’ शब्द एक बार बहुवचन में आया है और दूसरी बार एकवचन में। अर्थ एवं काव्य-सौंदर्य की दृष्टि से इसका क्या महत्त्व है?
पहले शेर में ‘चिराग, शब्द बहुवचन ‘चिरागाँ’ के रूप में आया है; दूसरी बार एकवचन के अर्थ में ‘चिराग’ आया है। पहली बार ‘चिरागाँ’ में सामान्य लोगों के लिए आजादी की रोशनी देने की बात कही गई है।
दूसरी बार में ‘चिराग’ शब्द एक सीमित साधन के रूप में प्रयुक्त हुआ है। सारे शहर के लिए केवल एक चिराग का होना-यही बताता है।
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दुष्यंत की इस गज़ल का मिज़ाज बदलाव के पक्ष में है। इस कथन पर विचार करें।
दुष्यंत की इस गजल का मिजाज बदलाव के पक्ष में है। वह राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था में बदलाव चाहता है, तभी तो वह दरख्त के नीचे साये में भी धूप लगने की बात करता है और वहाँ से उम्र भर के लिए कहीं और चलने को कहता है। वह तो पत्थर दिल लोगों को पिघलाने में विश्वास रखता है। वह अपनी शर्तों पर जिंदा रहना चाहता है। यह सब तभी संभव है जब परिस्थिति में बदलाव आए।
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गज़ल के तीसरे शेर को गौर से पढ़ें। यहाँ दुष्यंत का इशारा किस तरह के लोगों की ओर है?
इस शेर में दुष्यंत का इशारा उन लोगों की ओर है जो समयानुसार स्वयं को ढाल लेते हैं। इनकी आवश्यकताएँ सीमित होती हैं। ये लोग जीवन का सफर आसानी से तय कर लेते हैं।
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आशय स्पष्ट करें:
तेरा निजाम है सिल दे जुबान
शायर की,
ये एहतियात जरूरी है इस बहर के लिए।
इन पंक्तियों का आशय यह है कि शासक वर्ग अपनी शक्ति का गलत प्रयोग करके अभिव्यक्ति पर पाबंदी लगा देता है। यह सर्वथा अनुचित है। शायर को गजल लिखने में इस प्रकार की सावधानी बरतने की जरूरत होती है। उसकी अभिव्यक्ति की आजादी कायम रहनी चाहिए।
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