स्वतंत्र भारत में प्रथम शिक्षा आयोग कौन था? - svatantr bhaarat mein pratham shiksha aayog kaun tha?

सन् 1964 में भारत की केन्द्रीय सरकार ने डॉ दौलतसिंह कोठारी की अध्यक्षता में स्कूली शिक्षा प्रणाली को नया आकार व नयी दिशा देने के उद्देश्य से एक आयोग का गठन किया। इसे कोठारी आयोग के नाम से जाना जाता है। डॉ कोठारी उस समय विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष थे। आयोग ने स्कूली शिक्षा की गहन समीक्षा प्रस्तुत की जो भारत के शिक्षा के इतिहास में आज भी सर्वाधिक गहन अध्ययन माना जाता है। कोठारी आयोग (1964-66) या राष्ट्रीय शिक्षा आयोग, भारत का ऐसा पहला शिक्षा आयोग था जिसने अपनी रिपार्ट में सामाजिक बदलावों को ध्यान में रखते हुए कुछ ठोस सुझाव दिए।

आयोग ने 29 जून 1966 को अपनी रिपोर्ट को प्रस्तुत किया।[1] इसमें कुल 23 संस्तुतियाँ थीं।

सुझाव[संपादित करें]

  • समान पाठयक्रम के जरिए बालक-बालिकाओं को विज्ञान व गणित की शिक्षा दी जाय। दरअसल, समान पाठयक्रम की अनुशंसा बालिकाओं को समान अवसर प्रदान करती है।
  • 25 प्रतिशत माध्यमिक स्कूलों को ‘व्यावसायिक स्कूल’ में परिवर्तित कर दिया जाए।
  • सभी बच्चों को प्राइमरी कक्षाओं में मातृभाषा में ही शिक्षा दी जाय। माध्यमिक स्तर (सेकेण्डरी लेवेल) पर स्थानीय भाषाओं में शिक्षण को प्रोत्साहन दिया जाय।
  • 1 से 3 वर्ष की पूर्व प्राथमिक शिक्षा दी जाए
  • 6 वर्ष पूरे होने पर ही पहली कक्षा में नामांकन किया जाए
  • पहली सार्वजनिक परीक्षा 10 वर्ष की विद्यालय शिक्षा पूरी करने के बाद ही हो
  • विषय विभाजन कक्षा नौ के बदले कक्षा 10 के बाद हो
  • उच्च शिक्षा में 3 या उससे अधिक वर्ष का स्नातक पाठ्यक्रम हो और उसके बाद विविध अवधि के पाठ्यक्रम हों
  • माध्यमिक विद्यालय दो प्रकार के होंगे, उच्च विद्यालय और उच्चतर विद्यालय।
  • कॉमन स्कूल सिस्टम लागू किया जाए तथा स्नातकोत्तर तक की शिक्षा मातृभाषा में दी जाए
  • शिक्षक की आर्थिक, सामाजिक व व्ययसायिक स्थिति सुधारने की सिफारिश की।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (1986)[संपादित करें]

24 जुलाई 1986 को भारत की प्रथम राष्ट्रीय शिक्षा नीति घोषित की गई। यह पूर्ण रूप से कोठारी आयोग के प्रतिवेदन पर आधारित थी। सामाजिक दक्षता, राष्ट्रीय एकता एवं समाजवादी समाज की स्थापना करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया। इसमें शिक्षा प्रणाली का रूपान्तरण कर 10+2+3 पद्धति का विकास, हिन्दी का सम्पर्क भाषा के रूप में विकास, शिक्षा के अवसरों की समानता का प्रयास, विज्ञान व तकनीकी शिक्षा पर बल तथा नैतिक व सामाजिक मूल्यों के विकास पर जोर दिया गया।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • डॉ दौलतसिंह कोठारी

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • KOTHARI COMMISSION REPORT: A PRESENTATION
  • Swelling support for common schools[मृत कड़ियाँ]

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "Indian Education Commission 1964-66". PB Works. 2015. Retrieved 20 June 2015.

  • 'राधाकृष्ण आयोग या विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग*

भारत सरकार द्वारा १९४८ के नवम्बर माह में भारतीय विश्वविद्यालयी शिक्षा की अवस्था पर रिपोर्ट देने के लिये नियुक्त किया गया था। १९४७ में भारत के आजाद होने के बाद इस बात की आवश्यकता अनुभव की गयी कि देश की विश्वविद्यालयी शिक्षा का पुनर्रचना की जाय ताकि वह राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक पुनरुत्थान में सहायक हो, साथ ही वैज्ञानिक, तकनीकी एवं अन्य प्रकार के मानवशक्ति का विकास सुनिश्चित करे।

इस आयोग के अध्यक्ष डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन थे।

राधाकृष्ण आयोग या जिसे हम विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग भी कहते है भारत सरकार द्वारा नवम्बर १९४८ में भारतीय विश्वविद्यालयी शिक्षा की अवस्था पर रिपोर्ट देने के लिये नियुक्त किया गया था। यह आयोग ४ नवम्बर १९४८ को नियुक्त किया गया था । इस आयोग ने २५ अगस्त, १९४९ को अपनी रिपोर्ट भारत सरकार को सौंप दी । डॉ. राधाकृष्णन इस आयोग के अध्यक्ष थे इस लिये इसे राधाकृष्णन आयोग के रूप में जाना जाता है। यह स्वतंत्र भारत का पहला शिक्षा आयोग था । इसे विश्वविद्यालय आयोग भी कहा जाता है क्यूंकि इसकी नियुक्ति विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा व्यवस्था, संरचना की जाँच करना और तत्कालीन समस्याओं का पता लगाकर इस के सन्दर्भ में भारत सरकार को आवश्यक सझुाव देना था । जाँच के विषय इस प्रकार थे...

• तत्कालीन विश्वविद्यालयों का अध्ययन करना और उनकी समस्याओ का पता लगाना ।

• प्रशासन और वित्त के बारे में सुझाव देना ।

• उच्च शिक्षा के लक्ष्यो को निर्धारित करना ।

• उच्च शिक्षा के विषय में अपनी राय देना ।

• उच्च शिक्षा के शिक्षण स्तर को बढ़ाना ।

• विद्यार्थियों के कल्याण के लिए योजनाएं प्रस्तुत करना ।

• विद्यार्थियों में उपस्थित अनुशासनहीनता का समाधान खोजना ।

• उच्च शिक्षा के शिक्षकों की नियुक्ति, वेतनमान और सेवा शर्तो के बारे में सुझाव देना ।

• विश्वविद्यालय शिक्षा के माध्यम अवधि और पाठ्यक्रम के बारे में सुझाव प्रस्तुत करना ।


राधाकृष्णन आयोग की मुख्य सिफारिशें :- आयोग ने विश्वविद्यालय शिक्षा के सभी अंगो के सम्बन्ध में अपने विचार प्रस्तुत किये और उन में सुधार के लिए ठोस सुझाव दिए जो इस प्रकार के है...

१. शिक्षा के लक्ष्य :

• लोकतंत्र के लिए प्रशिक्षित करना ।

• आत्म-विश्वास के लिए प्रशिक्षण देना ।

• वर्तमान और साथ ही अतीत की समझ विकसित करना ।

• व्यावसायिक और पेशेवर प्रशिक्षण प्रदान करना ।

• ज्ञान के विकास के द्वारा जीवन जीने की सहज क्षमता को जगाना ।

• कुछ मूल्यों को विकसित करना जैसे- मन की निडरता, विवेक शक्ति और उद्देश्य की अखंडता ।

• अपनी सांस्कृतिक विरासत के उत्थान के लिए विद्यार्थियों को इससे परिचित कराना ।

२. शिक्षण संकाय :

• आयोग के अनुसार शिक्षकों को चार श्रेणियों में विभाजित किया जाए- प्रोफेसर, पाठक, व्याख्याता, और प्रशिक्षक ।

• योग्यता के आधार पर ही एक श्रेणी से दूसरे में पद्दोनति की जाए ।

• आयोग ने चारों श्रेनणयों के शिक्षकों के लिए उच्च वेतन और बेहतर सेवा शर्तो

• जैसे- भविष्य निधि, आवासीय आवास, काम के घंटे और छुट्टी आदि के लाभ की सिफारिश की ।

• शिक्षण कार्य सप्ताह में 18 घंटे से अधिक नहीं दिया जाना चाहिए।

• शिक्षकों के अध्ययन के लिए एक बार में एक वर्ष का और सम्पूर्ण सेवा काल में 3 वर्ष का अवकाश दिया जाना चाहिए ।

• सेवा से अवकाश की उम्र 60 से बढ़ाकर 64 वर्ष कर दी गयी ।

३. शिक्षण का स्तर :

• विश्वविद्यालयों में 3000 से अधिक और उनसे सम्बंधित महाविद्यालयों में 1500 से अधिक विद्यार्थियों की संख्यां नहीं होनी चाहिए।

• विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में उन्ही विद्यार्थियों को प्रवेश देना चाहिए जो १२ वर्ष की विद्यालयी शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं।

• कार्य दिवसों की संख्या- एक साल में 180 (परीक्षा के नदनों को छोड़कर) ।

• अध्ययन के किसी भी कोर्स के लिए पाठ्य पुस्तक निर्धारित नहीं की जानी चाहिए ।

• सायंकालीन कक्षाओं का आरम्भ किया जाना चाहिए।

• परीक्षाओं के स्तर को उठाने के लिए प्रथम, द्वितीय और तृतीया श्रेणी के लिए न्यूनतम प्राप्तांक क्रमश 70, 55 और 40 प्रतिशद होने चाहिए।

४. विश्वविद्यालय का प्रशासन और वित्त

• उच्च शिक्षा को समवर्ती सूचि में रखा जाना चाहिए । केंद्र और राज्य सरकारों को इसमें साझी ज़िम्मेदारी निभानी चाहिए ।

• शिक्षा से सम्बंधित नीतिया बनाने का कार्य केंद्र सरकार का होगा और राज्य सरकार उन नीतियों को अपने राज्यों में लागू करेंगी ।

• विश्वविद्यालयों में एक रूपता लाने और महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों को अनदुान प्रदान करने के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना की जानी चाहिए ।

५. विश्वविद्यालय शिक्षा की संरचना और संगठन :

• उच्च शिक्षा तीन स्तरों पर आयोजित की जानी चाहिए - स्नातक (3 वर्ष), स्नातकोत्तर (2 वर्ष) और शोध (न्यनूतम 2 वर्ष ) ।

• उच्च शिक्षा को 3 श्रेणियों में बांटा जाना चाहिए - कला, विज्ञान, व्यावसायिक और तकनीकी ।

• कला, विज्ञान, व्यावसायिक और तकनीकी विषयों के लिए विश्वविद्यालयों में अलग अलग विभाग खोले जाने चाहिए.

• कृषि, वाणिज्य, इंजिनीरिंग, प्रद्योगिकी, चिकित्सा और शिक्षण प्रशिक्षण के लिए स्वतंत्र संबद्ध कॉलेजों की स्थापना की जानी चाहिए ।

६. व्यावसायिक शिक्षा : विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग ने इसे छह श्रेणियों में बांटा है.

१. शिक्षक शिक्षा

२. कृषि शिक्षा

३. वाणिज्य शिक्षा

४. इंजिनीरिंग और तकनिकी शिक्षा

५. चिकित्सा शिक्षा तथा

६. क़ानूनी शिक्षा

इस आयोग में 10 सदस्य थें ।

स्वतंत्र भारत के प्रथम शिक्षा आयोग कौन थे?

डॉ. राधाकृष्णन इस आयोग के अध्यक्ष थे इस लिये इसे राधाकृष्णन आयोग के रूप में जाना जाता है। यह स्वतंत्र भारत का पहला शिक्षा आयोग था ।

प्रथम शिक्षा आयोग का अध्यक्ष कौन था?

भारत के तत्कालीन गवर्नर-जनरल लॉर्ड रिपन ने सर विलियम हंटर की अध्यक्षता में 3 फरवरी, 1882 को पहला भारतीय शिक्षा आयोग नियुक्त किया।

भारतीय शिक्षा आयोग का क्या नाम है?

सन 1880 में लार्ड रिपन को भारत का गवर्नर-जनरल मनोनीत किया गया था। उस समय उन्होने भारतीय शिक्षा के विषय में (1882 में) एक कमीशन गठित किया जिसे "भारतीय शिक्षा आयोग" कहा गया। विलियम हंटर की अध्यक्षता में आयोग का गठन होने के कारण इसका नाम हण्टर कमीशन पड़ा। - प्राथमिक शिक्षा व्यवहारिक हो।

भारतीय शिक्षा आयोग के अध्यक्ष कौन है?

वर्तमान भारत मे केंद्रीय शिक्षा मंत्री श्री रमेश पोखरियाल निशंक जी हैं। ये उत्तराखंड से आतें हैं। प्रथम वित्त आयोग के अध्यक्ष कौन थे? प्रथम वित्त आयोग की स्थापना वर्ष 1951 में हुई थी और केण् सीण् नियोगी इसके अध्यक्ष थे।

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