देश की सीमा पर बैठे फ़ौजी किस तरह की कठिनाइयों से जूझते हैं? उनके प्रति हमारा क्या उत्तरदायित्व होना चाहिए?
'साना साना हाथ जोडि' पाठ में देश की सीमा पर तैनात फौजियों की चर्चा की गई है। वस्तुत: सैनिक अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह ईमानदारी, समर्पण तथा अनुशासन से करते है। सैनिक देश की सीमाओं की रक्षा के लिए कटिबध्द रहते है। देश की सीमा पर बैठे फ़ौजी प्रकृति के प्रकोप को सहन करते हैं। हमारे सैनिकों (फौजी) भाईयों को उन बर्फ से भरी ठंड में ठिठुरना पड़ता है। जहाँ पर तापमान शून्य से भी नीचे गिर जाता है। वहाँ नसों में खून को जमा देने वाली ठंड होती है। वह वहाँ सीमा की रक्षा के लिए तैनात रहते हैं और हम आराम से अपने घरों पर बैठे रहते हैं। ये जवान हर पल कठिनाइयों से जूझते हैं और अपनी जान हथेली पर रखकर जीते हैं। हमें सदा उनकी सलामती की दुआ करनी चाहिए। उनके परिवारवालों के साथ हमेशा सहानुभूति, प्यार व सम्मान के साथ पेश आना चाहिए।
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गंतोक को 'मेहनतकश बादशाहों का शहर' क्यों कहा गया?
गंतोक को सुंदर बनाने के लिए वहाँ के निवासियों ने विपरीत परिस्थितियों में अत्यधिक श्रम किया है। पहाड़ी क्षेत्र के कारण पहाड़ों को काटकर रास्ता बनाना पड़ता है। पत्थरों पर बैठकर औरतें पत्थर तोड़ती हैं। उनके हाथों में कुदाल व हथौड़े होते हैं। कईयों की पीठ पर बँधी टोकरी में उनके बच्चे भी बँधे रहते हैं और वे काम करते रहते हैं। हरे-भरे बागानों में युवतियाँ बोकु पहने चाय की पत्तियाँ तोड़ती हैं। बच्चे भी अपनी माँ के साथ काम करते हैं। यहाँ जीवन बेहद कठिन है पर यहाँ के लोगों ने इन कठिनाईयों के बावजूद भी शहर के हर पल को खुबसूरत बना दिया है। इसलिए लेखिका ने इसे 'मेहनतकश बादशाहों का शहर' कहा है।
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झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंतोक लेखिका को किस तरह सम्मोहित कर रहा था?
रात्रि के समय आसमान ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो सारे तारे बिखरकर नीचे टिमटिमा रहे थे। दूर ढलान लेती तराई पर सितारों के गुच्छे रोशनियों की एक झालर-सी बना रहे थे। रात के अन्धकार में सितारों से झिलमिलाता गंतोक लेखिका को जादुई एहसास करा रहा था। उसे यह जादू ऐसा सम्मोहित कर रहा था कि मानो उसका आस्तित्व स्थगित सा हो गया हो, सब कुछ अर्थहीन सा था। उसकी चेतना शून्यता को प्राप्त कर रही थी। वह सुख की अतींद्रियता में डूबी हुई उस जादुई उजाले में नहा रही थी जो उसे आत्मिक सुख प्रदान कर रही थी।
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लोंग स्टॉक में घूमते हुए चक्र को देखकर लेखिका को पूरे भारत की आत्मा एक-सी क्यों दिखाई दी ?
लेखिका सिक्किम में घूमती हुई कवी-लोंग स्टॉक नाम की जगह पर गई। लोंग स्टॉक के घूमते चक्र के बारे में जितेन ने बताया कि यह धर्म चक्र है, इसको घुमाने से सारे पाप धुल जाते हैं। मैदानी क्षेत्र में गंगा के विषय में ऐसी ही धारणा है। लेखिका को लगा कि चाहे मैदान हो या पहाड़, तमाम वैज्ञानिक प्रगतियों के बावजूद इस देश की आत्मा एक जैसी है। यहाँ लोगों की आस्थाएँ, विश्वास, पाप-पुण्य की अवधारणाएँ और कल्पनाएँ एक जैसी हैं। यही विश्वास पूरे भारत को एक ही सूत्र में बाँध देता है जहाँ पुरे भारत की एक आत्मा प्रतीत हो, ऐसा जाना पड़ता है।
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कभी श्वेत तो कभी रंगीन पताकाओं का फहराना किन अलग-अलग अवसरों की ओर संकेत करता है?
सफ़ेद बौद्ध पताकाएँ शांति व अहिंसा की प्रतीक हैं, इन पर मंत्र लिखे होते हैं। यदि किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु होती है तो उसकी आत्मा की शांति के लिए 108 श्वेत पताकाएँ फहराई जाती हैं। कई बार किसी नए कार्य के अवसर पर रंगीन पताकाएँ फहराई जाती हैं। इसलिए ये पताकाएँ, शोक व नए कार्य के शुभांरभ की ओर संकेत करते हैं।
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जितेन नार्गे ने लेखिका को सिक्किम की प्रकृति, वहाँ की भौगोलिक स्थिति एवं जनजीवन के बारे में क्या महत्वपूर्ण जानकारियाँ दीं, लिखिए।
1) नार्गे के अनुसार सिक्किम में घाटियाँ, सारे रास्ते हिमालय की गहनतम घाटियाँ और फूलों से लदी वादियाँ मिलेंगी।
2) घाटियों का सौंदर्य देखते ही बनता हैं। नार्गे ने बताया कि वहाँ की खूबसूरती, स्विट्ज़रलैंड की खूबसूरती से तुलना की जा सकती है।
3) नार्गे के अनुसार पहाड़ी रास्तों पर फहराई गई ध्वजा बुद्धिस्ट की मृत्यु व नए कार्य की शुरूआत पर फहराए जाते
हैं। ध्वजा का रंग श्वेत व रंग-बिरंगा होता है।
4) सिक्किम में भी भारत की ही तरह घूमते चक्र के रूप मे आस्थाएँ, विश्वास, अंधविश्वास पाप-पुण्य की अवधारणाएँ व कल्पनाएँ एक जैसी थीं।
5) वहाँ की युवतियाँ बोकु नाम का सिक्किम का परिधान डालती हैं। जिसमें उनके सौंदर्य की छटा निराली होती है। वहाँ के घर, घाटियों में ताश के घरों की तरह पेड़ के बीच छोटे-छोटे होते हैं।
6) वहाँ के लोग मेहनतकश लोग हैं व जीवन काफी मुश्किलों भरा है।
7) स्त्रियाँ व बच्चे सब काम करते हैं। स्त्रियाँ स्वेटर बुनती हैं, घर
सँभालती हैं, खेती करती हैं, पत्थर तोड़-तोड़ कर सड़कें बनाती हैं। चाय की पत्तियाँ चुनने बाग़ में जाती हैं। बच्चों को अपनी कमर पर कपड़े में बाँधकर रखती हैं।
8) बच्चों को बहुत ऊँचाई पर पढ़ाई वे लिए जाना पड़ता है क्योंकि दूर-दूर तक कोई स्कूल नहीं है। इन सब के विषय में नार्गे लेखिका को बताता चला गया।
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सीमा पर तैनात फौजी भाइयों की कलाई पर बांधा लिसनर्स का प्यार
इंडिया-पाकिस्तान बॉर्डर के पास भारतीय सेना के फौजी भाइयों के लिए माय एफएम आरजे राखियां लेकर पहंुचीं। माय एफएम की मुहिम \\\"एक राखी फौजी के नाम\\\' के तहत चंडीगढ़ से आरजे मीनाक्षी, अहमदाबाद से आरजे अर्चना, इंदौर से आरजे विनी और जयपुर से आरजे शोनाली अखनूर से आगे हमारी हिफाज़त के लिए तैनात सैनिकों तक पहुंचीं। माय एफएम के लिसनर्स ने जो प्यार राखियों और वीडियो संदेश के जरिए पंजाब, हरियाणा, गुजरात, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र से भेजा था उसे पाकर फौजी भाइयों की आंखें नम हो गईं। पंजाबी स्टार मलकीत सिंह और प्रिंस नरूला के वीडियो संदेश देखकर जवान झूम उठे। राखियों, संदेशों और माय एफएम लिसनर्स की दुआओं के साथ आरजे ने राखी बांध चंडीगढ़ की पारंपरिक मिठाई पिन्नी, जयपुर की मशहूर मावे की कचौरी, इंदौर के मावा के पेड़े और अहमदाबाद के ट्रेडिशनल मोहन थाल से फौजी भाइयों का मुंह मीठा कराया।