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सुमित्रानंदन पंत »
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मैं सबसे छोटी होऊँ,
तेरी गोदी में सोऊँ,
तेरा
अंचल पकड़-पकड़कर
फिरू सदा माँ! तेरे साथ,
कभी न छोड़ूँ तेरा हाथ!
बड़ा बनकर पहले हमको
तू पीछे छलती है मात!
हाथ पकड़ फिर सदा हमारे
साथ नहीं फिरती दिन-रात!
अपने कर से खिला, धुला मुख,
धूल पोंछ, सज्जित कर गात,
थमा खिलौने, नहीं सुनाती
हमें सुखद परियों की बात!
ऐसी बड़ी न होऊँ मैं
तेरा स्नेह न खोऊँ मैं,
तेरे अंचल की छाया में
छिपी रहूँ निस्पृह, निर्भय,
कहूँ-दिखा दे चंद्रोदय!
मैं सबसे छोटी होऊँ कविता के कवि कौन है *?
मैं सबसे छोटी होऊँ -सुमित्रानंदन पंत
मैं सबसे छोटी होऊँ कविता का सारांश क्या है?
कविता- “मैं सबसे छोटी होऊं सार” सहित
प्यार से उनका आंचल पकड़कर, हमेशा उनके साथ घूमती रहूँ और उनका हाथ कभी ना छोड़ूं। सारांश- मैं सबसे छोटी होऊं कविता के इस पद में बालिका कह रही है कि जैसे ही हम बड़े हो जाते हैं, मां हमारा साथ छोड़ देती है। फिर वह दिन-रात हमारे आगे-पीछे नहीं घूमती, इसलिए हमें छोटा ही बने रहना चाहिए।
कविता मैं सबसे छोटी हूं में कवि किसका स्नेह पाने की बातें कर रहे हैं
Answer: कविता ''मैं सबसे छोटी होऊँ'' में सबसे छोटी होने की कल्पना की गई है। ऐसा इसलिए कहा गया है क्योंकि छोटों को, माता-पिता तथा बड़ों का स्नेह ज़्यादा मिलता है। माँ के साथ उसका जुड़ाव ज़्यादा रहता है।
5 मैं सबसे छोटी होऊं कविता में बच्ची की क्या इच्छा है?
प्रसंग- यह पद्यांश समित्रानंदन पन्त द्वारा रचित 'मैं सबसे छोटी होऊँ' कविता से लिया गया है। इसमें छोटी बच्ची छोटी ही रहना चाहती है, ताकि माँ का प्यार मिलता रहे-यह वर्णन किया गया है। व्याख्या/भावार्थ- छोटी बच्ची अपनी माँ से कहती है कि मैं ऐसी बड़ी नहीं होना चाहती हूँ कि जिससे मुझे तुम्हारा प्यार-दलार नहीं मिले।