ऋ का उच्चारण स्थान क्या है? - r ka uchchaaran sthaan kya hai?

ऋ का सही उच्चारण आखिर क्या है.. यदि आप मेरी तरह उत्तर भारत से हैं तो आप इस अक्षर को रि की तरह पढ़ने के आदी हैं..और ऋषि को रिशि या रिसि उच्चारित करते हैं... (ष का मूर्धन्य उच्चारण हम आम तौर पर नहीं करते हैं, मेरी अपनी स्मृति में एक वरिष्ठ मित्र चितरंजन सिंह के सिवा मैंने किसी को ष का इतना साफ़ और सही उच्चारण करते नहीं सुना) इसके विपरीत महाराष्ट्र में इस ऋ अक्षर को रु की तरह उच्चारित करने की परिपाटी है.. ऋषि को रुशि..या रुषि...

तो कृति को क्रिति उच्चारित करें या क्रुति ?
ऋतु को रितु या रुतु ?
गृह को ग्रिह या ग्रुह ?

अब एक उत्तर भारतीय होने के नाते मैं अपने उच्चारण के पक्ष में अपभ्रंश या लोक भाषा के इस्तेमाल की दलीलें दे सकता हूँ..कि गृहस्थी लोक भाषा में गिरस्थी बन जाती है.. या मातृ बिगड़कर माई होता है.. भातृ भाई बन जाता है.. लेकिन महाराष्ट्र में मातृ माऊ भले ना हुआ हो पर भातृ भाऊ हो गया है.. इस विषय पर संस्कृत के अनेक ग्रंथों के रचयिता और वेदों के भाष्यकार श्रीपाद दामोदर सातवलेकर जी का मत जानने योग्य है..

स्वर उसको कहते हैं, जो एक ही आवाज़ में बहुत देर तक बोला जा सके- जैसे..

अ..आ.. इ..ई.. उ..ऊ.. ऋ..ॠ.. लॄ..लॄ..
(
आखिरी दो स्वरों की चर्चा यहाँ नहीं कर रहा हूँ)

उत्तर भारत के लोग इनका (ऋ का) उच्चारण "री " करते, यह बहुत ही अशुद्ध है। कभी ऐसा उच्चारण नहीं करना चाहिये। "री" में र ई ऐसे दो वर्ण मूर्धा और तालु स्थान के हैं। "ऋ" यह केवल मूर्धा स्थान का शुद्ध स्वर है। केवल मूर्धा स्थान के शुद्ध स्वर का उच्चारण मूर्धा और तालु स्थान दो वर्ण मिलाकर करना अशुद्ध है और उच्चारण की दृष्टि से बड़ी भारी ग़लती है।

ऋ का उच्चारण - धर्म शब्द बहुत लम्बा बोला जाय और ध और म के बीच का रकार बहुत बार बोला जाय तो उसमें से एक रकार के आधे के बराबर है। इस प्रकार जो ऋ बोला जा सकता है, वह एक जैसा लम्बा बोला जा सकता है। छोटे लड़के आनन्द से अपनी जिह्वा को हिला कर इस प्रकार ऋकार बोलते हैं। (स्कूटर या बाइक चलाने का अभिनय करते हुए..vrooom जैसी कुछ ध्वनि)

जो लोग इसका उच्चारण री करते हैं, उनको ध्यान देना चाहिये कि री लम्बी बोलने पर केवल ई लम्बी रहती है। जो कि तालु स्थान की है। इस प्रकार ऋ का यह री उच्चारण सर्वथैव अशुद्ध है। पूर्व स्थान में कहा गया कि जिनका लम्बा उच्चारण हो सकता है, वे स्वर कहलाते हैं। गवैये लोग स्वरों का ही आलाप कर सकते हैं व्यञ्जनों का नहीं, क्योंकि व्यञ्जनों का लम्बा उच्चारण नहीं होता।

सातवलेकर जी की यह शिक्षा उनकी "संस्कृत स्वयं शिक्षक" नामक पुस्तक से उद्धृत है.. जिसको पढ़ने के बाद मैं वर्षों के अभ्यास के कारण बोलता अभी भी रिशि ही हूँ .. पर हर बार यह स्मरण करते हुये कि मैं ग़लत बोल रहा हूँ।

‘ऋ’ स्वरस्य उच्चारणस्थानं भवति-

This question was previously asked in

REET 2011 Level - 1 (Hindi/English/Sanskrit) Official Paper

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  1. दन्ताः
  2. जिव्हा
  3. मूर्धा
  4. कण्ठः

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : मूर्धा

प्रश्नानुवाद - ‘ऋ’ स्वर का उच्चारणस्थान होता है-

'ऋटुरषाणां मूर्धा' इस सूत्र के अनुसार 'ऋ' स्वर का उच्चारण स्थान ‘मूर्धा’ होता है।

Hint

उच्चारण स्थान

स्वर

व्यञ्जन

वर्गीय

अन्तस्थ

उष्म

कण्ठ

अ आ

क् ख् ग् घ् ङ्

ह्  :(विसर्ग)

तालु

इ ई

च् छ् ज् झ् ञ्

य्

श्

मूर्धा

ट् ठ् ड् ढ् ण्

र्

ष्

दन्त

त् थ् द् ध् न्

ल्

स्

ओष्ठ

उ ऊ

प् फ् ब् भ् म्

कण्ठ और तालु

ए ऐ

कण्ठोष्ठ

ओ औ

दन्तोष्ठ

नासिका

अनुस्वार (स्वराश्रित)

Additional Information

उच्चारणस्थान

स्थान

सूत्र

व्याख्या

कण्ठ्य

अकुहविसर्जनीयानां कण्ठः

अ, आ, क वर्ग (क्, ख्, ग्, घ्, ङ्) ह् और विसर्ग का उच्चारणस्थान कण्ठ्य होता है।

तालव्य

इचुयशानां तालुः

इ, ई, च वर्ग (च्, छ्, ज्, झ्, ञ्) य् और श् का उच्चारणस्थान तालव्य होता है।

मूर्धन्य

ऋटुरषाणां मूर्धा

, ट वर्ग (ट्, ठ्, ड्, ढ्, ण्) र् और ष् का उच्चारणस्थान मूर्धा होता है।

दन्त्य

लृतुलसानां दन्ताः

लृ, त वर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) ल् और स् का उच्चारणस्थान दन्त्य होता है।

ओष्ठ्य

उपूपध्मानीयानां ओष्ठौ

उ, ऊ, प वर्ग (प्, फ्, ब्, भ्, म्) उपधमानीय ( ऍ, ऑ) का उच्चारणस्थान ओष्ठ्य है।

नासिक्य

ञमङणनानां नासिका च

ञ्, म्, ङ्, ण्, न् और अनुनासिक का उच्चारणस्थान नासिका होता है।

इसके अतिरिक्त अरबी फारसी में प्रयुक्त 'क़, ख़, ग़‌' वर्णों को जिह्वामूलीय कहा जाता है। 

दो स्थानों को मिलाकर भी कुछ वर्णों के उच्चारण स्थान होते हैं-

स्थान

सूत्र

व्याख्या

कण्ठतालव्य

एदैतो कण्ठतालु

ए और ऐ का उच्चारणस्थान कण्ठतालु होता है।

दन्तोष्ठं

वकारस्य दन्तोष्ठं

व का उच्चारणस्थान दन्तोष्ठ होता है।

कण्ठोष्ठं ओदौतो कण्ठोष्ठ्म् ओ तथा औ का उच्चारणस्थान कण्ठोष्ठ होता है।

ऋषि का उच्चारण कैसे होता है?

एक स्वर जो वर्णमाला का सातवाँ वर्ण है । इसकी गणना स्वरों में है और इसका उच्चारण स्थान संस्कृत व्याकरणानुसार मूर्द्धा है । इसके तीन भेद हैं—ह्वस्व, दीर्घ और प्लुत ।

ऋषि का उच्चारण स्थान क्या है?

इसका उच्चारण स्थान तालु है। इसका उच्चारण तालु में जिह्वा का अग्र भाग स्पर्श करके किया जाता है।

ऋ स्वर क्या है?

देवनागरी वर्णमाला का सातवाँ स्वर है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह मूर्धन्य, ह्रस्व, अग्र, अवृत्तमुखी, स्वर है तथा घोष ध्वनि है। '' का अनुनासिक रूप नहीं होता। '' का दीर्घ रूप '' है जो हिंदी के शब्दों में नहीं, संस्कृत के कुछ शब्दों में ही प्रयुक्त होता है।

ऋ कैसे बनता है?

” एक स्वर है और “री" व्यंजन है जो ,र+ ई मात्रा मिलाकर पूरा होता है ।

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