पुनर्बलन / प्रबलन (Reinforcement) का सिद्धांत या हल का सिद्धांत FOR CTET, MPTET and State TETs ऐसी कोई क्रिया जो अनुक्रिया की संख्या में वृद्धि करती है पुनर्बलन (reinforcement) कहलाती है। मानव द्वारा सीखे हुए अधिकांशतः व्यवहार की व्याख्या हम क्रियाप्रसूत अनुबन्धन के सहयोग से कर सकते हैं। क्रियाप्रसूत अनुबन्धन में पुनर्बलन की निर्णायक भूमिका है। यह नकारात्मक या सकारात्मक हो सकता है। सकारात्मक पुनर्बलन नकारात्मक पुनर्बलन
जब कोई बालक क्रिया करता है तो क्रिया के दौरान उसमें जो अनुक्रिया में वृद्धि होती है, उसे
ही पुनर्बलन कहते हैं। पुनर्बलन के द्वारा बालक के कार्य करने की क्षमता में वृद्धि की जा सकती है। अध्यापक बालक को समय-समय पर पुनर्बलन देता रहता है। पुनर्बलन को अंग्रेजी में Reinforcement कहते हैं.
स्किनर के प्रयोग में चूहा बार-बार लीवर दबाने की अनुक्रिया करता है और भोजन प्राप्त कर लेता है। इसे सकारात्मक पुनर्बलन कहते हैं। इस प्रकार एक
सकारात्मक पुनर्बलन या पुरस्कार (उदाहरणार्थ भोजन, यौन-सुख आदि) वह प्रवृत्ति है जिससे उस विशिष्ट व्यवहार के प्रभाव को सीखने को बल मिलता है। सकारात्मक पुनर्बलन वह कोई भी उद्दीपन (स्टिमुलेशन) है जिसके माध्यम से उस विशिष्ट अनुक्रिया को आगे जाने का बल मिलता है। (उदाहरण- भोजन, लीवर के दबाने को बल प्रदान करता है।
नकारात्मक पुनर्बलन द्वारा एक बिल्कुल भिन्न प्रकार से अनुक्रिया की संख्या में वृद्धि की जाती है। मान लीजिए स्किनर बाक्स के अन्दर चूहे के पंजों पर
प्रत्येक सेकेन्ड पर विद्युत आघात दिया जाता है। जैसे ही चूहा लीवर दबाता है विद्युत आघात दस सेकेन्ड के लिए रोक दिया जाता है।इससे चूहे की अनुक्रिया की संख्या में वृद्धि हो जाती है। इस विधि को नकारात्मक पुनर्बलन कहा जाता है जिसमें प्रतिकूल उद्दीपन का प्रयोग किया जाता है। (उदाहरण- गर्मी, विद्युत आघात, तेजी से दौड़ना आदि)। ‘नकारात्मक’ शब्द पुनर्बलन की प्रकृति को बताता है (विमुखी उद्दीपन)।यह पुनर्बलन है क्योंकि यह अनुक्रियाओं की संख्या में वृद्धि करता है। इस विधि को ‘पलायन’ अधिगम कहा गया क्योंकि चूहा
अगर लीवर को दबाता है तो आघात से बच सकता है। दूसरे तरह के नकारात्मक पुनर्बलन के परिणामस्वरूप जो अनुबन्धन (कन्डीशनिंग) होता है उसे बचाव द्वारा (अवॉयडेन्स) सीखना कहा गया जिसमें चूहा लीवर दबाकर आघात से बच सकता है। पलायन या बचाव द्वारा सीखने में नकारात्मक पुनर्बलन का प्रयोग किया जाता है और प्राणी पलायन द्वारा इससे बच जाता है।
पुनर्बलन का सिद्धांत C.L. हल ने दिया था, यह USA के रहने वाले थे I
उन्होंने अपनी पुस्तक Principals of Behavior में यह सिद्धांत दिया।यह सिद्धांत आवश्यकता पर बल देता है.
सीखने के प्रबलन सिद्धान्त का प्रतिपादन क्लार्क एल. हल के द्वारा 1915 में किया गया। इस सिद्धान्त का गणितीय सिद्धांत, परिकल्पित निगमन सिद्धांत/आवश्यकता अवकलन/ जैवकीय अनुकूलन/ उद्देश्य प्रवणता सिद्धांत आदि नामों से जाना जाता है।
यह सिद्धांत स्वयं सिद्ध मान्यताओं पर आधारित है। हल ने 17 स्वयं सिद्ध मान्यताओं का प्रतिपादन किया है। 17 स्वयं सिद्ध मान्यताओं के आधार पर 133 प्रमेयों का स्पष्टीकरण किया है।
ये सभी मान्यताएं जीवधारी की जैवकीय संरचना पर आधारित है। यह सिद्धांत पावलव व
थॉर्नडाइक के नियमों पर आधारित है।
हल के सीखने के सिद्धान्त का अर्थ स्पष्ट करते हुए स्टोन्स नामक मनोवैज्ञानिक ने कहा है कि सीखने का आधार आवश्यकता की पूर्ति की प्रक्रिया है। यदि कोई र्का पशु अथवा मनुष्य की आवश्यकता की पूर्ति करता है। आवश्यकता की पूर्ति के लिए हल ने आवश्यकता की कमी का भी प्रयोग किया है।
क्लार्क एस हल के अनुसार
बिल्ली की आवश्यकता भोजन को बिल्ली के लिए चालक है। इसकी पूर्ति होते ही बिल्ली का अधिगम करना बंद हो जाता है।
क्लार्क एस हल ने उद्दीपक के बजाय आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि कोई भी जीव अपनी आवश्यकता पूरी करने के लिए जो क्रिया करता है। वह उसे आसानी से सीख लेता है।
हल के अनुसार सीखना आवश्यकता की पूर्ति की प्रक्रिया के द्वारा होता है हल ने इस सिद्धान्त की व्याख्या करते समय बताया कि प्रत्येक प्राणी अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रयास करता है। सीखने का आधार किसी आवश्यकता की पूर्ति की प्रक्रिया में होता है अर्थात कोई भी प्राणी उसी कार्य को सीखता है जिसमें उसकी किसी आवश्यकता की पूर्ति होती है।
स्किनर ने हल् के इस सिद्धांत को अधिगम का सर्वश्रेष्ठ सिद्धांत बताया है क्योंकि यह आवश्यकता व प्रेरणा पर बल देता है इसलिए शिक्षार्थी को प्रेरित करके ही सिखाया जाता है.
पुनर्बलन का शैक्षिक महत्व:-
-बालक को प्रेरित किया जाता है।
-यह सिद्धांत पाठ्यक्रम बनाते समय विद्यार्थियों की आवश्यकता पर बल देता है।
-यह सिद्धांत कक्षा में पढ़ाए जाने वाले प्रकरणों के उद्देश्यों को स्पष्ट करने पर बल देता है।
-पुरष्कार की व्यवस्था को समझाता है।
पुनर्बलन
सिद्धांत के उपनाम:-
-प्रबलन का सिद्धांत
-अंतरनाद न्यूनता का सिद्धांत
-सबलीकरण का सिद्धांत
-यथार्थ अधिगम का सिद्धांत
-सतत अधिगम का सिद्धांत
-क्रमबद्ध अधिगम का सिद्धांत
-चालक न्यूनता का सिद्धांत।
स्कीनर ने इसी सिद्धान्त को सभी सिद्धान्तों में सर्वश्रेष्ठ सिद्धांत कहा है।
इस सिद्धान्त को चालक न्यूवता का सिद्धांत भी कहा जाता है।
इस सिद्धांत में दो प्रकार के प्रबलन के बारे में बताया गया है-
- प्राथमिक और
- द्वितीयक प्रबलन
हल ने दो प्रकार के प्रबलन बताये हैं जो विभिन्न अवस्थाओं में दृष्टिगोचर होते हैं। भोजन, भूख के चालक को प्रबल बनाता है। यह अवस्था प्राथमिक प्रबलन की है।
भूख उस समय तक शांत नहीं होती जब तक की भोजन नहीं खा लिया जाता है। अतः भोजन करने से पहले भूख रूपी चालक एक बार फिर प्रबल बन जाता है जिसे द्वितीयक प्रबलन कहा जाता है।
शिक्षा में उपयोग—
सीखना तभी सार्थक होता है जब वह आवश्यकता की पूर्ति करें।
छात्रों की आवश्यकता को
ध्यान में रखकर ही पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाना चाहिए (व्यवसायिक शिक्षा का सूत्रपात)
शिक्षा प्रदान करते समय प्राथमिक व द्वितीयक पुनर्बलन का ध्यान रखना चाहिए।
यह सिद्धांत सीखने में प्रेरणा पर बल देता है।
आन्तरिक अभिप्रेरणा पर बल देता है।
अधिगम कभी भी व्यर्थ नहीं होता है।
उद्देश्य की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।