नागमती पवन से क्या संदेश भेजती है? - naagamatee pavan se kya sandesh bhejatee hai?

इसे सुनेंरोकेंहिन्दीशब्दकोश में बारहमासा की परिभाषा बारहमासा संज्ञा पुं० [हिं० बारह + मास] [स्त्री० बारहमासी] वह पद्य या गीत जिसमें बारह महीनों की प्राकृतिक विशेष- ताओँ का वर्णन किसी विरहिणी के मुख से कराया गाया हो । उ०— गाती बारहमासी, सावन ओर कजलियाँ ।

कविता बारहमासा में नागमती के कितने माह के वियोग का वर्णन है?

इसे सुनेंरोकेंइस खंड में राजा रत्नसेन के वियोग में संतृप्त रानी नागमती की विरह व्यथा का वर्णन किया गया है ! इस पूरे अंश में साल के विभिन्न महीनों में नागमती की स्थिति का वर्णन किया गया है ! चार महीनों का वर्णन इस अंश में किया गया है : अगहन (वर्ष का 9वां महीना), पूस (अगहन के बाद का), माघ, फागुन !

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भारत बारहमासा किसकी रचना है?

इसे सुनेंरोकेंमलिक मुहम्मद जायसी द्वारा रचित पद्मावत में वर्णित बारहमासा हिन्दी का सम्भवतः प्रथम बारहमासा है। वर्ष भर के बारह मास में नायक-नायिका की शृंगारिक विरह एवं मिलन की क्रियाओं के चित्रण को बारहमासा नाम से सम्बोधित किया जाता है।

बारहमासा चित्रण क्या है?

इसे सुनेंरोकेंबारहमासा मूलतः एक विरहप्रधान लोक संगीत है। वर्ष भर के बारहमास में नायक – नायिका की श्रृंगारिक विरह और मिलन की क्रियाओं के चित्रण को बारहमासा कहते हैं। इसके पद्य या गीत में बारहों महीने की प्राकृतिक विशेषताओं का वर्णन किसी विरही या विरहनी के मुख से कराया जाता है।

नागमती पवन से क्या संदेश भेजती है?

इसे सुनेंरोकेंनागमती भवरे और कौवे के माध्यम से अपने पति को संदेश भेजती है, कि यदि तुम्हें रास्ते में मेरे पति मिल जाए तो उनसे यह कहना कि उनकी पत्नी बिरह में जल जल कर मर रही है। उसके शरीर से जो विरह की अग्नि निकल रही है उससे हम भी काले पड़ गए हैं। नागमती की विरह वेदना का मार्मिक चित्रण है।

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नागमती विरह किसकी रचना है?

इसे सुनेंरोकेंसमीक्षा:नागमती का विरह-वर्णन/ डॉ. अभिषेक रौशन

पूस के महीने में विरहिणी की क्या दशा होती है?

इसे सुनेंरोकेंविरहिणी के लिए यह माह बहुत ही दुख देने वाला है। चारों ओर गिरती पत्तियाँ उसे अपनी टूटती आशा के समान प्रतीत हो रही हैं। हर एक गिरता पत्ता उसके मन में विद्यमान आशा को धूमिल कर रहा है कि उसके प्रियतम शीघ्र ही आएँगे। पत्तों का पीला रंग उसके शरीर की स्थिति को दर्शा रहा है।

अखरावट की भाषा कौन सी है?

इसे सुनेंरोकेंजायसी की भाषा ठेठ अवधी है और पूरबी हिंदी के अंतर्गत है। इससे उसमें ब्रजभाषा और खड़ी बोली दोनों से कई बातों में विभिन्नता है।

वैशाख में नागमती अपने पति से क्या प्रार्थना करती है?

इसे सुनेंरोकेंवैशाख मास में नागमती की विरह -वेदना भा बैसाख तपनि अति लागी। चोआ चीर चँदन भा आगी।। सूरज जरत हिवंचल ताका। बिरह बजागि सौंह रथ हाँका।।

प्रियतमा के दुख के क्या कारण है?

प्रियतमा के दुख के ये कारण निहित हैं-

  • प्रियतमा का प्रियतम कार्यवश परदेश गया हुआ है। वह प्रियतम के साथ को लालयित है परन्तु उसकी अनुपस्थिति उसे पीड़ा दे रही है।
  • सावन मास आरंभ हो गया है। ऐसे में अकेले रहना प्रियतमा के लिए संभव नहीं है।
  • वह अकेली है। ऐसे में घर उसे काटने को दौड़ता है।
  • प्रियतम उसे परदेश में जाकर भूल गया है।

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नागमती वियोग कौन सा खंड है?

इसे सुनेंरोकेंजायसी ने एक-एक माह के क्रम से नागमती की वियोग-व्यथा का सजीव चित्रण किया है। संयोग के समय जो प्रेम सृष्टि के सम्पूर्ण उपकरणों से आनन्द का संचय करता था, वियोग के क्षणों में वही उससे दुख का सग्रंह करता है। चढा असाढ, गगन घन गाजा। साजा बिरह दुन्द दल बाजा।।

नागमती वियोग खंड कौन सा खंड है?

इसे सुनेंरोकेंसंदर्भ व प्रसंगः प्रस्तुत पंक्तियाँ सूफी काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि जायसी के प्रबंध काव्य ‘पद्मावत’ के ‘नागमती वियोग खण्ड’ से उद्धृत हैं।

(4) खंभ=सहारा। बराहीं=जलते हैं। सरवन='श्रवणकुमार' जिसकी कथा उत्तारापथ में घर-घर प्रसिध्द है। एक प्रकार के भिखमंगे सरवन की मातृ-पितृ-भक्ति की कथा करताल बजाकर गाते फिरते हैं। यह कथा वाल्मीकि रामायण में दशरथ ने अपने मरने से पहले कौशल्या से कही है। दशरथ ने युवावस्था में शिकार खेलते समय एक वृध्द तपस्वी केपुत्राकोहाथी के धाोखे में मार डाला था। वह मुनिपुत्रा अंधो वृध्द माता-पिता के लिए पानी लेने आया था। वृध्द मुनि ने दशरथ को शाप दिया कि तुम भी पुत्रावियोग में मरोगे। दशरथ का नाम न देकर यही कथा बौध्दों के 'सामजातक' में भी आई है। पर उसमें अंधो मुनि बुध्द के पूर्ण उपासक कहे गएहैं और उनके जी उठने की बात है। रामायण में 'श्रवणकुमार' शब्द नहीं आया है, केवल मुनिपुत्रा लिखा है। पर इस कथा का प्रचार बौध्दों में अधिाक हुआ, इसी से यह 'सरवन' अर्थात् श्रमण (बौध्द भिक्षु) की कथा के नाम से ही देश में प्रसिध्द है। 'सरवन' के गीत गानेवाले आरंभ में एक प्रकार के बौध्द भिक्षु ही थे। इसका आभास इस बात से मिलता है कि सरवन के गीत गानेवालोंके लिए अभी थोड़े दिन पहले तक यह नियम था कि वे दिन निकलने के पीछे न माँगा करें, मुँहऍंधोरे ही माँग लिया करें। काँवरि=बाँस के डंडे के दोनों छोरों पर बँधो हुए झाबे, जिनमें तीर्थयात्राी लोग गंगाजल आदि लेकर चला करते हैं (सरवन अपने माता-पिता को काँवरि में बैठाकर ढोया करते थे)।

(5) ठेघा=टिका, ठहरा। डफारा=चिल्लाया।

(7) धाुँधा बाजा=धाुंधा या अंधाकार छाया। बानी=वर्ण की। भइ होइहि= हुई होगी। झारा=ज्वाला। लूकी=लुक। दवा=दावाग्नि।

(8) बसेरू=बसनेवाला। दिन भरौं=दिन बिताता हूँ। महूँ=मैं भी।

(9) दहिने संख=दक्षिणावर्त शंख नहीं फूँकता। झूरै=सूखता है। तिराई=पानी के ऊपर आता है। तोहिं पास...भुलाना=पक्षी तेरे ऐसा नहीं भूले हैं, वे जानते हैं कि हम उड़ने के लिए इस संसार में आए हैं। मनियार=रौनक, चमकता हुआ। मुहमद बाईं...ऑंखि=मुहम्मद कवि ने बाईं ओर ऑंख और कान करना छोड़ दिया (जायसी काने थे भी) अर्थात् वाम मार्ग छोड़कर दक्षिण मार्ग का अनुसरण किया। बोल=कहलाता है।

(10) दाहिन लावा=प्रदक्षिणा की। घमोई=सत्यानासी सा भँड़भाँड़ नामक कँटीला पौधाा जो खंडहरों या उजड़े मकानों में प्राय: उगता है। सवार=जल्दी।

(11) नौजि=न, ईश्वर न करे (अवधा)। काँवरू=कामरूप में, जो जादू के लिए प्रसिध्द है। लोना=लोना चमारी जो जादू में एक थी। मजार=बिल्ली। जरी=जड़ी-बूटी।

(12) परजरा=प्रज्वलित हुआ, जला। गठा=गट्ठा, ढेर। दाऊँ=दावाग्नि। भुजइल=भुजंगा नाम का काला पक्षी। डोमा कागा=बड़ा कौआ जो सर्वांग काला होता है।

(13) सरग सँदेसी=स्वर्ग से (ऊपर से) सँदेसा कहने वाला। गिरही=गृह। हारिल...परिहरा=कहते हैं, हारिल भूमि पर पैर नहीं रखता, चंगुल में सदा लकड़ी लिये रहता है जिससे पैर भूमि पर न पड़े। चलै कहाँ=चलने के लिए।

(14) गोहरावा=पुकारा। साँखा=शंका चिंता। पिंड=शरीर। मंदिर महँ केवा=कमल (पदमावती) के घर में। विसंभर=बेसँभाल, सुधा, बुधा भूला हुआ। जेति नारि=जितनी स्त्रिायाँ हैं सब। जिउ तंत=जी की बात (तत्तव)।

नागमती भौंरा और काग के माध्यम से कौन सा संदेश पहुँचाना चाहती थी?

(क) दुखी नागमती भौरों तथा कौए से अपने प्रियतम के पास संदेशा ले जाने को कहती है। उसके अनुसार वे उसके विरह का हाल शीघ्र ही जाकर उसके प्रियतम को बताएँ। प्रियतम के विरह में नागमती कितने गहन दुख भोग रही है इसका पता प्रियतम को अवश्य लगा चाहिए।

बारहमासा कविता की विषय वस्तु क्या है?

वर्ष भर के बारहमास में नायक - नायिका की श्रृंगारिक विरह और मिलन की क्रियाओं के चित्रण को बारहमासा कहते हैं। इसके पद्य या गीत में बारहों महीने की प्राकृतिक विशेषताओं का वर्णन किसी विरही या विरहनी के मुख से कराया जाता है। इस गीत में वह अपनी दशा को हर महीने की खासियत के साथ पिरोकर रखती है।

बारहमासा पद में कौन सा रस है?

मलिक मोहम्मद जायसी हिंदी के प्रमुख कवियों में गिने जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इनके काव्य में श्रृंगार रस के दोनों पक्ष संयोग तथा वियोग का बड़ा ही तार्किक रूप से प्रयोग किया गया है। इन्होंने निर्गुण भक्ति को अधिक महत्व दिया है।

नागमती वियोग कौन सा खंड है?

आचार्य शुक्ल द्वारा सम्पादित पद्मावत(जायसी ग्रंथावली) का 30वाँ खंड नागमती-वियोग खंड है। पद्मावत में वियोग पक्ष तीन चरित्रों के माध्यम से दिखाया गया है - रत्नसेन, पद्मावती तथा नागमती। जायसी ने नागमती के विरह का विस्तृत वर्णन किया है।

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