मेवाड़ में सर्वप्रथम सोने के सिक्के किसने चलाए - mevaad mein sarvapratham sone ke sikke kisane chalae

Homerajasthan gkCoins-Archaeological Sources - राजस्थान के इतिहास के पुरातात्विक स्त्रोत -सिक्के

राजस्थान मे प्रचलित सिक्के

Rajasthan ke Prachin Sikke
  • "bibliography of Indian coins" नामक ग्रंथ में भारतीय सिक्कों को सचित्र क्रमबद्ध वैज्ञानिक विवेचन उपलब्ध है ।
  • केव ने 1893 ईं . में  द करेंसीज आफ दी स्टेट्स आफ राजपूताना पुस्तक लिखी ।
  • सिक्कों के अध्ययन को न्यूमिसमेटिक्म कहा जाता है ।
  • सर्वप्रथम भारत में शासन करने वाली यूनानी शासकों के सिक्कों पर लेख एवं तिथियाँ उत्कीर्ण मिलती है ।
  • सर्वाधिक सिक्के उत्तरी मौर्यकाल में मिलते है ।
  • सर्वाधिक सोने के सिक्के गुप्तकाल में जारी किसे गये थे
  • कुषाणवंशी शासक विम कदफिसस ने सर्वप्रथम भारत मे सोने का सिक्का तैयार करवाया ।
  • कुषाणों के समय सर्वाधिक शुद्ध सोने के सिके प्रचलित थे ।
  • ब्रिटिश भारत का राजस्थान में सर्वाधिक प्राचीन चाँदी का सिक्का 'कलदार’ था ।
  • शेरशाह के सिक्कों मे' 180 ग्रेन को 'रुपया' नाम दिया गया । जो वर्तमान में प्रचलित है ।
  • राजस्थान में किसी राजवंश द्वारा जारी सिक्कों में सर्वप्रथम चौहानवंशीय सिक्कों का जिक्र हुआ है ।
  • इनमे वासुदेव का दम/विशोषक ( ताँबे ) , रूपक ( चांदी ) दीनार( सोने का सिक्का ) था ।
  • रंगमहल ( हनुमानगढ ) यहाँ पर कुषाण कालीन सिक्के मिले है जिन्हें 'मुरण्डा' कहा गया है ।
  • गुरारा सीकर जिले के इस गांव से 2744 पंचमार्क प्राप्त हुए है । इनमें से 61 सिक्कों पर ' थ्री मैन' अंकित है ।

रेड से प्राप्त सिक्के

  • रेड के उत्खनन से 3075 चाँदी के पंचमार्क सिक्के उपलब्ध हुए है जौ देश के उत्खनन में एक स्थान से प्राप्त सबसे बडी निधि मानी जाती है ।
  • इन सिक्कों को धरण या पण कहा जाता था ।
  • रेढ ( टोंक ) से ताँबे के सिक्के भी मिले है, जिन्हें गण मुद्राएं कहा जाता है ।
  • अपोलोडोट्स का सिक्का रैढ़ से प्राप्त हुआ है ।

आहत सिक्के

  • 1835 ईं. में जेम्स प्रिंसेप ने निर्माण शैली के आधार पर इन सिक्कों को पंचमार्क नाम दिया ।
  • ठप्पा मारकर बनाये जाने के कारण ये आहत सिक्के कहलाये । यूनानियों के आने से पूर्व भारत में आहत सिक्के प्रचलित थे । 
  • आहत सिक्के भारत के सबसे प्राचीन सिक्के माने जाते है ।

जयपुर राज्य के सिक्के

  • माधोसिंह के रूपये को 'हाली' सिक्का कहते थे ।
  • जयपुर में तांबे के सिक्के का प्रचलन 1760 ईं. से माना जाता है । इसे झाड़शाही पैसा कहते थे । 
  • झाड़शाही सिक्के जयपुर में कच्छवाहावंश द्वारा प्रचलित सिक्के थे । झांड़शाही एक बोली का भी प्रकार है । 
  • जयपुर की टकसाल का चिह्न छ: शाखाओं वाला झाड होने के कारण जयपुरी सिक्कों को झाड़शाही सिक्के कहा गया है ।
  • सवाई जयसिंह द्वितीय ने सन् 1728 ईं. में जयपुर नगर में इस टकसाल की स्थापना की ।
  • सबसे अधिक सिक्के जयपुर/सवाई माधोपुर टकसाल के मिलते है । जयपुर की सिरहड्योढी बाजार ' चांदी की टकसाल ' के नाम मे प्रसिद्ध है ।

जोधपुर राज्य के सिक्के

  • मारवाड़ में प्राचीन काल में ' पंचमार्क/ आहत ' सिक्कों का प्रचलन था । अकबर की चितौड़ विजय के बाद मेवाड़ में प्रचलित मुगल सिक्कों को एलची के नाम से जाना जाता है ।
  • जोधपुर में बनने वाले सोने के सिक्कों को 'मोहर' कहते थे ।
  • सोजत की टकसाल से निकलने वाले सिक्के ललूलिया कहलाते थे ।
  • सोने के सिक्के मोहर कहलाते थे, जो जोधपुर की टकसाल में बनते थे । महाराजा विजयसिंह द्वारा प्रचलित होने के कारण ये ' विजयशाही' कहलाते थे । 
  • मारवाड़ के शासकों में ' विजयशाही ' सिक्का सर्वाधिक लोकप्रिय है । मारवाड़ राज्य के ही अधीन कुचामन की टकसाल में भी अटन्नी, चवन्नी तथा इकतीसदा सिक्के ढाले जाते थे । 
  • रियासती सिक्कों का युग समाप्त होने के पश्चात्‌ इन सिक्कों का स्थान बिटिशकालीन सिक्कों ने ले लिया ।

बूंदी राज्य के सिक्के

  • बूंदी में 1759 से 1859 ईं. तक 'पुराना रूपया’ नाम का सिक्का चलता था ।
  • 1817 ईं. में यहाँ 'ग्यारह-सना' रूपया चलन में आया, जो मुगल सम्राट अकबर द्वितीय ( 1806-37 ई. ) के शासन के ग्यारहवें वर्ष को चालू होने का सूचक था । यहाँ 'हाली' रूपया भी प्रचलन में था । 
  • 1901 ईं. में बूंदी दरबार ने कलदार के साथ 'चेहरेशाही’ रूपया प्रचलित किया । यह रूपया पूरा चाँदी का था ।
  • ताँबे का सिक्का "पुराना बूंदी का पैसा' कहलाता था ।
  • 1925 ईं. में यहाँ कलदार चलने लगा ।

मालवगण के सिक्के

  • ये सिके उस जाति के है, जो मौर्य, कुषाण, गुप्त आदि की अधीनता में थे ।

मेवाड़ राज्य के सिक्के

  • मेवाड़ में प्राचीनकाल से ही सोने, चाँदी और ताँबे के सिक्के चलते थे, जिन पर मनुष्य, पशु-पक्षी, सूर्य, चंद्र, धनुष, वृक्ष आदि का चित्र अंकित रहता था ।
  • मेवाड़ में 'गधिया मुद्रा' का प्रचलन भी था । महाराणा कुंभा ने चाँदी एवं ताँबे के गोल तथा चौकोर सिक्के चलाए थे, जिन पर कुंभकर्ण, कुँभलमेरू अंकित मिलता हैं ।
  • मुगल सम्राट मुहम्मदशाह ( 1719-48 ईं. ) के काल में मेवाड में चितौड़, भीलवाड़ा और उदयपुर की टकसाल में सिक्के बनते थे, जिनको चितौडी, शाहआलमी, भिलाडी और उदयपुरी रूपया कहते थे ।
  • महाराणा भीमसिंह ने अपनी बहिन चंद्रकुँअर बाई की स्मृति मे चाँदोडी रुपया, अठन्नी, चवन्नी दोअन्नी व एक अन्नी चलाई जिस पर फारसी अक्षर अंकित थे ।
  • चांदोडी मेवाड की टकसाल से निर्मित सोने का सिक्का था । मेवाड में ताँबे के सिक्कों को 'ढीगला''भिलाडी 'त्रिशूलिया 'भीडरिया '' नाथद्वारिया ' आदि नामों से जाना जाता था । ये विभिन्न आकार तथा तौल एवं मोटाई के होते थे ।
  • द्रम, ऐला मेवाड में चलाये गये सोने/चांदी के सिक्के थे ।

नगर मुद्राएँ

  • नगर या कर्कोट नगर जो उणियारा ठिकाने के क्षेत्र में जयपुर के निकट है । अपनी प्राचीनता के लिए बड़ा प्रसिद्ध है । यहां पर मालवगण की टकसाल रही होगी । ये सिके संसार में प्राप्त सिक्कों मे सबसे हल्के व छोटे है रंगमहल से प्राप्त सिक्के
  • रंगमहल के उत्खनन से कुल 105 ताँबे के सिक्के उपलब्ध हुए है, जो कुषाणोत्तर काल के माने गये है और उन्हें मुरण्डा नाम दिया गया हैं ।

बैराठ से प्राप्त सिक्के

  • बैराठ के उत्खनन में प्रात एक कपड़े की थैली जिसमें 8 पंचमार्क चाँदी की मुद्राएँ तथा 28 इण्डोग्रीक़ तथा युनानी शासकों की मुद्राएं प्राप्त हुई है ।

गुप्तकालीन सिक्के

  • ये सिक्के भरतपुर के बयाना जिले में नगलाछेल नामक ग्राम से एक ढेर के रूप में मिले है । जो लगभग 180० के आसपास है ।

अलवर राज्य के सिक्के

  • अलवर राज्य की टकसाल राजगढ में थी यहाँ 1772 से 1876 ईं. तक बनने वाले सिक्के रावशाही रूपया कहलाते थे ।
  • 1877 ईं. से अलवर राज्य के सिक्के कलकत्ता की टकसाल में बनने लगे ।
  • यहा के ताँबे के सिके रावशाही टक्का कहलाते थे, जिस पर आलमशाह' ' मुहम्मद बहादुर शाह' 'मलका विक्टोरिया , ' शिवदान सिंह' आदि के नाम अंकित रहते थे ।

करौली राज्य के सिक्के

  • करौली में महाराजा माणकपाल ने सर्वप्रथम 1780 ईं. में चाँदी और ताँबे के सिके ढलवाये जिन पर कटार और झाड़ के चिह्न तथा संवत् मय बिन्दुओँ के अंकित होते थे ।

किशनगढ़ राय के सिक्के

  • किशनगढ़ में भी शाहआलम के नाम का सिक्का प्रचलित था । किशनगढ़ में 166 ग्रेन का चाँदोडी रूपया भी ढाला गया, जिसका प्रयोग दान पुण्य कार्यो में होता था ।

कोटा राज्य के सिक्के

  • कोटा क्षेत्र में प्रारंभ में गुप्तों और हूणों के सिक्के प्रचलित थे
  • मध्यकाल में मण्डू और दिल्ली सल्तनत के सिक्के चलते थे । अकबर के राज्य-विस्तार के बाद यहाँ मुगली सिक्के चले । यहां ' हाली ' और ' मदनशाही ' सिक्के भी प्रचलन में थे ।

जैसलनेर राज्य के सिक्के

  • मुगलकाल में जैसलमेर में चाँदी का " मुहम्मदशाही ' सिक्का चलता था । जैसलमेर का ताँबे का सिक्का ' डोडिया' कहलाता था ।
  • जेसलमेर के महाराजा अखैसिंह ने अखैशाही सिक्का चलाया ।

झालावाड के सिक्के

  • झालावाड में कोटा के सिक्के प्रचलित थे । यहा 1837 से 1857 ई. तक पुराने मदनशाही सिक्के प्रचलन में थे ।

धौलपुर राज्य के सिक्के

  • धौलपुर में 1804 ईं से सिक्के ढलना शूरू हुये । यहाँ के सिक्के को ' तमंचा शाही ' कहा जाता था, क्योंकि उन पर तमंचे का चिह्न अंकित होता था

प्रतापगढ़ राज्य के सिक्के

  • प्रतापगढ में सर्वप्रथम 1784 ईं . में मुगल सम्राट शाह आलम की आज्ञा से महारावल सालिम सिंह ने चाँदी के सिक्के ढाले  इनके एक तरफ ' सिक्कह मुबारक बादशाहा गाजी शाआलम , 1199 ' और दूसरी तरफ जर्ब 25 जुलूस मैमनत मानुस ' फारसी में अंकित होता था । इस सिक्के को 'सालिमशाही' कहते थे ।

बांसवाडा राज्य के सिक्के

  • बांसवाड़ा में सालिमशाही रूपये का प्रचलन था ।
  • 19०4 ई. में सालिमशाही एवं लक्ष्मणशाही सिक्कों के स्थान पर कलदार का प्रचलन शुरू हो गया ।

बीकानेर राज्य के सिक्के

  • बीकानेर में संभवत: 1759 ईं. में टकसाल की स्थब्वपना हुईं और मुगल सम्राट शाहआलम के नाम के सिक्के बनने लगे ।

सिरोही राज्य के सिक्के

  • सिरोही का स्वतंत्र रूप से कोई सिक्का नहीं था और न हीं यहाँ कोई टकसाल थी । यहाँ मेवाड़ का चाँदी का भीलाडी रूपया और मारवाड़ का ताँबे का ढब्बूशाही' रूपया चलता था ।

शाहपुरा राज्य के सिक्के

  • . शाहपुरा के शासकों ने 1760 ईं. में जो सिक्का चलाया उसे 'ग्यारसंदिया' कहते थे ।

गुप्तकालीन सिक्के

  • गुप्तकाल में दीनार स्वर्ण मुद्राओं को कहा गया है । स्वर्ण मुद्राओं की सबसे बड़ी निधि राजस्थान में बयाना ( भरतपुर ) के समीप हुल्लनपुरा गांव में खोजी गई ।
  • इण्डो सौरसैनिक सिक्कों पर नागरी लिपि में लेखांकन होता था । इन सिक्कों पर राजा का चेहरा एवं अग्निवेदिका धीरे-धीरे भद्दा रूप धारण करती गई , जिससे इन्हें गधैया सिक्के कहा जाने लगा ।

Rajasthan ke Prachin Sikke

  1. बीकानेर - राजशाही सिक्का (चाँदी)
  2. जैसलमेर - मुहम्मदशाही, अखैशाही, अखयशाही, डोडिया  (तांबा)
  3. उदयपुर - स्वरूपशाही, चांदोडी, शाहआलमशाही, ढीगला, त्रिशुलियां, भिलाडी, कर्षापण , भीड़रिया, पदमशाही 
  4. डूंगरपुर - उदयशाही सिक्का ।
  5. बाँसवाड़ा - सालिमशाही सिक्का , लक्ष्मणशाही । 
  6. प्रतापगढ - आलमशाही सिक्का ।
  7. शाहपुरा - ग्यारसदिया सिक्का , माधोशाही ।
  8. कोटा - गुमानशाही, लक्ष्मणशाही सिक्के ।
  9. झालावाड - मदनशाही सिक्का ।
  10. करौली - कटार झाड़शाही ।
  11. धौलपुर - तमंचाशाही सिक्का ।
  12. भरतपुर - शाहआलमा
  13. अलवर - अखयशाही, रावशाही सिक्के , रावशाही टक्का ।
  14. जयपुर - झाड़शाही, मुहम्मदशाही, माधोशाही ।
  15. जोधपुर - विजयशाही, भीमशाही, गदिया, फदिया सिक्के , लल्लूलिया रूपया, ढल्यूशाही ।
  16. सोजत - लाल्लू लिया (पाली)
  17. सलूम्बर - पद्यशाही (ताम्रमुद्रा)
  18. किशनगढ़ - शाहआलमा
  19. बूंदी - रामशाही सिक्का ग्यारहसना, कटारशाही,चेहरेशाही

Rajasthan Coins important facts and Quiz

  • राजस्थान में सोने चांदी ,तांबे और सीसे के सिक्के प्रचुर मात्रा में मिले है
  • राजस्थान के विभिन्न भागों में मालव ,शिव,योधेय,शक,आदि जनपदों के सिक्के प्राप्त हुए हैं
  • कई शिलालेखों और साहित्यिक लेखो मे द्रम और एला क्रमशः सोना और चांदी की मुद्रा के रूप में उल्लेखित मिलते हैं
  • इन सिक्कों के साथ-साथ रूपक नाणक नाणा आदि शब्द भी मुद्राओं के वाचक हैं
  • आहड़ के उत्खनन के द्वितीय युग के छह तांबे के सिक्के मिले हैं इनका समय ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी माना जाता है
  • बहुत समय तक मिट्टी में दबे रहने के कारण सिक्कों का अंकन तो स्पष्ट रुप से नहीं पढ़ा गया पर उन पर अंकित त्रिशुल अवश्य दृष्टव्य है
  • बप्पा का सिक्का सातवीं शताब्दी का प्रसिद्ध सिक्का माना गया है जिसका वर्णन डॉक्टर ओझा ने भी किया है
  • 1565 में मुगलों का जोधपुर पर अधिकार हो जाने पर वहा मुगल बादशाह के सिक्के का प्रचलन हुआ
  • 1780 में जोधपुर नरेश विजयसिंह ने बादशाह से अनुमति लेकर अपने नाम से विजय शाही चांदी के रुपए चलाएं
  • तब से ही जोधपुर व नागौर की टकसाल चालू हुई थी
  • 1781 में जोधपुर टकसाल में शुद्ध होने की मौहर बनने लगी
  • 24 मई 1858 में राजस्थान की रियासतो के सिक्कों पर बादशाह के नाम के स्थान पर महारानी विक्टोरिया का नाम लिखा जाने लगा
  • 23 जुलाई 1877 मे अलवर नरेश ने अंग्रेज सरकार से अपने राज्य में अंग्रेजी सिक्के प्रचलित करने और अपने यहां से सिक्के  ना ढालने का इकरारनामा लिखा
  • गज सिंह ने आलमगीर के सिक्के चलाएं इसके उपरांत बीकानेर नरेशों ने भी अपने नाम के सिक्के ढलवाना आरंभ किया
  • 1900 में जोधपुर राज्य की टकसालों मे विजय शाही रुपया बनना बंद हो गया और अंग्रेजी कलदार रुपया चलने लगा
  • राजस्थान में सर्वप्रथम 1900ई.मे स्थानीय सिक्कों के स्थान पर कलदार का चलन जारी हुआ
  • जयपुर नरेशों ने विशुद्ध  चांदी का झाडशाही रुपया चलाया जो तोल में एक तोला होता था
  • उस पर किसी राजा का चिन्ह नहीं होता था केवल उर्दू लिपि में उस पर अंकित रहता था इस रुपए का प्रचलन द्वितीय विश्वयुद्ध के पूर्व तक रहा जब
  • ब्रिटिश सरकार ने अपने शासकों के नाम पर चांदी का कलदार रुपया चलाना आरंभ कर दिया तो राजस्थान के शासकों के स्थानीय सिक्के बंद होते ही चले गए
  • इंग्लैंड के शासकों के नाम की मुद्राएं तो राजस्थान में भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के समय बाद तक चलती रही

Read Also 

सोने के सिक्के सबसे पहले कब और किसने जारी किए थे?

सर्वप्रथम सोने के सिक्के चलाने का श्रेय किसे दिया जाता है? यह भारत के किसी राजा द्वारा जारी प्रथम स्वर्णसिक्का माना जाता है; इसे 127 सीई में कुषाण राजा कनिष्क 1 द्वारा जारी किया गया था।

भारत में सोने के सिक्के जारी करने वाले प्रथम राजा कौन थे?

भारत में पहली बार सोने के सिक्के कुषाण वंश द्वारा जारी किए गए थे। कुषाण वंश का पहला महत्वपूर्ण शासक 'कुजुला कडफिसेस' या कडफिसेस प्रथम था।

भारत में सोने के सिक्के कब चलते थे?

भारत में सबसे पहले सोने के सिक्के कुषाण राज्य के सम्राट कनिष्क ने जारी किए थे। यह सिक्के 127 शताब्दी में जारी किए गए थे। कुषाण का राजा ने कई सारे सोने के सिक्कों के साथ साथ तांबे के भी सिक्के जारी किए थे। कनिष्क सम्राट को सबसे ज्यादा सोने के सिक्के जारी करने वाले राजा के रूप में जाना जाता है।

सोने के सिक्के को क्या कहते थे?

2. चांदी के सिक्के पण/धरण/कार्षापण/रूप्यरूप/शतमान कहलाते थे

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