मृत्यु सूतक में क्या खाना चाहिए - mrtyu sootak mein kya khaana chaahie

जन्म के बाद नवजात की पीढ़ियों को हुई अशुचिता 3 पीढ़ी तक -10 दिन, 4 पीढ़ी तक - 10 दिन, 5 पीढ़ी तक - 6 दिन गिनी जाती है । एक रसोई में भोजन करने वालों के पीढ़ी नहीं गिनी जाती, वहाँ पूरा 10 दिन का सूतक माना है । प्रसूति (नवजात की माँ) को 45 दिन का सूतक रहता है । प्रसूति स्थान 1 माह तक अशुद्ध माना गया है । इसीलिए कई लोग जब भी अस्पताल से घर आते हैं तो स्नान करते हैं, पुत्री का पीहर में बच्चे का जन्म हो तो हमे 3 दिन का, ससुराल में जन्म दे तो उन्हें 10 दिन का सूतक रहता है और हमे कोई सूतक नहीं रहता है ।

पातक की अशुद्धि- मरण के अवसर पर दाह-संस्कार में इत्यादि में जो हिंसा होती है, उसमे लगने वाले दोष या पाप के प्रायश्चित स्वरुप पातक माना जाता है । जिस दिन दाह-संस्कार किया जाता है, उस दिन से पातक के दिनों की गणना होती है, न कि मृत्यु के दिन से । अगर किसी घर का कोई सदस्य बाहर, विदेश में है, तो जिस दिन उसे सूचना मिलती है, उस दिन से शेष दिनों तक उसके पातक लगता ही है । अगर 12 दिन बाद सूचना मिले तो स्नान-मात्र करने से शुद्धि हो जाती है ।

अगर परिवार की किसी स्त्री का यदि गर्भपात हुआ हो तो, जितने माह का गर्भ पतित हुआ, उतने ही दिन का पातक मानना चाहिए । घर का कोई सदस्य मुनि-आर्यिका-तपस्वी बन गया हो तो, उसे घर में होने वाले जन्म-मरण का सूतक-पातक नहीं लगता है किन्तु स्वयं उसका ही मरण हो जाने पर उसके घर वालों को 1 दिन का पातक लगता है ।

किसी दूसरे की शवयात्रा में जाने वाले को 1 दिन का, मुर्दा छूने वाले को 3 दिन और मुर्दे को कन्धा देने वाले को 8 दिन की अशुद्धि मानी जाती है । घर में कोई आत्मघात करले तो 6 महीने का पातक मानना चाहिए । जिसके घर में इस प्रकार अपघात होता है, वहाँ छह महीने तक कोई बुद्धिमान मनुष्य भोजन अथवा जल भी ग्रहण नहीं करता है । वह मंदिर नहीं जाता और ना ही उस घर का द्रव्य मंदिर जी में चढ़ाया जाता है ।

सूतक-पातक की अवधि में "देव-शास्त्र-गुरु" का पूजन, प्रक्षाल, आहार आदि धार्मिक क्रियाएं वर्जित होती हैं । इन दिनों में मंदिर के उपकरणों को स्पर्श करने का भी निषेध है । यहां तक की दान पेटी या गुल्लक में रुपया डालने का भी निषेध बताया है लेकिन ये कहीं नहीं कहा कि सूतक-पातक में मंदिरजी जाना वर्जित है या मना है ।

सूतक में क्या खाना चाहिए?

सूतक या पातक काल समाप्त होने पर स्नान तथा पंचगव्य (गाय के दूध, दही, घी, गोमूत्र और गोबर का मिश्रण) सेवन कर शुद्ध हो जाएं। 7. सूतक पातक की अवधि में देव शास्त्र गुरु, पूजन प्राक्षाल, आहार आदि धार्मिक क्रियाएं वर्जित होती है।

मृत्यु के कितने दिन बाद पूजा करना चाहिए?

उसी तरह परिवार के सदस्य की मृत्यु के बाद भी सूतक लग जाता है जिसमें वर्जित काल 13 दिनों तक होता है, इसको पातक कहा जाता है। गरुण पुराण के अनुसार पातक लगने के 13वें दिन क्रिया कर के ब्राह्मण भोज के बाद ही पूजा कार्य शुरू करना चाहिए

सूतक काल में क्या करना चाहिए क्या नहीं करना चाहिए?

सूतक लगे परिवार के लोग केवल मानसिक जाप या स्मरण कर सकते हैं। उनको माला लेकर कोई जप करना भी वर्जित है और ना ही उन्हें कोई धार्मिक ग्रंथ पढ़ना चाहिए। यदि सूतक के समय कोई व्रत पहले से करते आ रहे हों तो सूतक के समय में भी उसे करना जारी रखा जा सकता है परंतु किसी व्रत का उद्यापन सूतक काल में नहीं किया जाना चाहिए

किसी के मरने पर कितने दिन का सूतक होता है?

यदि माता की मृत्यु के दस दिनों के अंतराल में पिता की भी मृत्यु हो जाए तो पिता के मृत्यु के दिनों से पूरे दस दिनों तक सूतक काल माना जाता है। किसी कारणवश मृत्यु दिवस के दिन दाह संस्कार न हो सके तब भी मृत्यु दिवस के दिन से ही सूतक काल को गिना जाएगा। अग्निहोत्र करने वालों के लिए सूतककाल दस दिनों तक के लिए ही माना जाएगा।

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