महाराष्ट्र में कौन से कपड़े पहने जाते हैं? - mahaaraashtr mein kaun se kapade pahane jaate hain?

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देशभूषा:महाराष्ट्र की परम्परागत वेशभूषा है नऊवारी और पैठणी, पुराने समय से महिलाओं की पहली पसंद रही है यह नौ गज की नऊवारी

ज्योत्स्ना पंत श्रीवास्तवएक वर्ष पहले

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  • सांस्कृतिक रूप से सजग महाराष्ट्र में विभिन्न पर्वों और उत्सवों की धूम अलग ही रहती है।
  • इस दौरान महाराष्ट्रीयन महिलाएं पारंपरिक परिधान पहनती हैं। तो चलिए इस बार देशभूषा में जानते हैं देश के तीसरे सबसे बड़े राज्य महाराष्ट्र की परंपरागत वेशभूषा के बारे में।

इतिहास के पन्ने रानी ताराबाई, रानी लक्ष्मीबाई जैसी पराक्रमी वीरांगनाओं की शौर्य गाथाओं से भरे हुए हैं। इनमें एक समानता है, इनकी वेशभूषा यानी नऊवारी। नऊ यानी नौ और वारी अर्थात गज़। इसी वेशभूषा ने इन्हें युद्ध के मैदान में फ्री मूवमेंट की छूट दी। यह साड़ी महाराष्ट्र की शान है और इसे शक्ति, साहस और समानता के प्रतीक रूप में देखा जाता है। इसे अखंड वस्त्र भी कहते हैं, क्योंकि इसके साथ किसी अन्य परिधान की ज़रूरत नहीं रहती। पुरातन काल में अंतरिया (ऊपर पहनने के कपड़े) और उत्तरिया (नीचे बांधने वाले कपड़े) को मिलाकर इसे बनाया गया। इसके पल्लू को पादार कहते हैं। समय के साथ-साथ नऊवारी साड़ी को पहनने का तरीक़़ा भी बदला। महाराष्ट्र के अलग-अलग क्षेत्रों में इसे बांधने के तरीक़े में भी कुछ परिवर्तन दिखता है। नऊवारी को काष्टा (धोती की तरह बंधी) साड़ी, सकाच्चा और लुगादी के नाम से भी जाना जाता है।

ऐसे जन्मी नऊवारी
महाराष्ट्र की पहचान बन चुकी नऊवारी का इतिहास सदियों पुराना है। शुरुआती दौर में यह साड़ी कच्छम अथवा धोती की तरह बांधी जाती थी, जिसे पुरुष और महिलाओं द्वारा पहना जाता था। राजा-महाराजाओं के ज़माने में युद्ध के मैदान में जाना हो या शस्त्र कला का ज्ञान अर्जित करना हो, महिलाओं के लिए आरामदायक कपड़े की आवश्यकता महसूस हुई। पुरुषों की धोती से प्रेरणा लेते हुए जन्मी नऊवारी साड़ी।
इसकी ख़ासियत थी, इसे पहनकर आसानी से अस्त्र-शस्त्र का प्रयोग करना और बिना किसी बाधा के अपना युद्ध कौशल दिखा पाना। साड़ी का यह इकलौता रूप है, जिसे मिलिट्री यूनिफ़ॉर्म माना जाता है। हिंदी फ़िल्मों में भी नऊवारी साड़ी देखने को मिली और हमारे दिमाग में उनकी छवि अंकित हो गई।

फ़ैब्रिक और मोटिफ़ भी हैं विशेष
इतिहास की बात करें तो मुख्य रूप से नऊवारी साड़ी कॉटन से बनती थी। समय के साथ इसके फ़ैब्रिक में भी प्रयोग देखने को मिले। कॉटन के साथ ही विभिन्न प्रकार के सिल्क से इसे तैयार किया जाने लगा। सूती नऊवारी रोज़मर्रा के कामों के लिए उपयुक्त मानी जाती है, जबकि पूजा-पाठ व अन्य विशेष अवसरों पर सिल्क से बनी नऊवारी पहनने का चलन है। इसमें छोटे बूटे और सुनहरी ज़री की बॉर्डर विशेष रहती है।

पहनने के अलग हैं तरीक़े
नऊवारी बांधने के पांच सबसे लोकप्रिय तरीक़े हैं-
ब्राह्मणी स्टाइल, पारंपरिक मराठी साड़ी, पेशवाई मराठी साड़ी, कोली एवं किसान महिलाओं की साड़ी और कंटेम्प्ररी मराठी साड़ी। मूल स्टाइल है काष्टा, जिसमें साड़ी के बॉर्डर को पीछे की तरफ़ खोंसा जाता है। काष्टा साड़ी मूल रूप से कॉटन से बनती है ताकि रोज़मर्रा के काम करते हुए इसे आसानी से पहना जा सके। त्योहारों या अन्य विशेष अवसरों पर सिल्क से बनी साड़ी पहनी जाती है। मराठा शासन के दौरान यह तरीक़़ा ख़ूब प्रचलित था। महिलाओं को घुड़सवारी करने के साथ ही जंग भी लड़नी होती थी। पेशवाओं के शासन में महिलाओं ने जो साड़ी बांधी, उसे नाम मिला पेशवाई।
चलिए जानते हैं इस अनूठी साड़ी को बांधने के अलग-अलग तरीक़़ों के बारे में।

ब्राह्मणी नऊवारी साड़ी
महाराष्ट्रीय दुल्हनों में साड़ी का यह स्टाइल इन दिनों ख़ूब लोकप्रिय है। इसमें बेसिक गांठ लगाने के बाद बाईं तरफ़ के खुले हिस्से को ऊपर मोड़ते हुए टक करते हैं, जिससे डबल बॉर्डर लुक दिखता है। अब प्लीट्स बनाते हुए दो हिस्सों में बांटकर बाईं प्लीट्स को काष्टा बनाते हुए पीछे टक करते हैं। दाईं ओर की प्लीट्स आगे ही सेट करके टक की जाती है।

नऊवारी में दौड़ का विश्व रिकॉर्ड
नऊवारी पहनकर सबसे तेज़ दौड़ने का विश्व रिकॉर्ड है मुंबई की क्रांति साल्वी के नाम पर। उन्होंने जर्मनी के बर्लिन मैराथन में दौड़ लगाई और ‘फ़ास्टेस्ट रन इन अ साड़ी’ का विश्व रिकॉर्ड गिनीज बुक में दर्ज कराया। उनसे पहले 61 साल की लता कारे ने बारामती मैराथन में तीन किमी की दौड़ नऊवारी साड़ी पहनकर लगाई और जीतीं। उनसे कई महिलाओं को प्रेरणा मिली।

पेशवाई स्टाइल
पेशवाओं के शासनकाल से नऊवारी का यह तरीक़ा चलन में आया। इसमें बेसिक प्लीट्स पहले की तरह डालते हैं। उसके बाद बाईं प्लीट्स पीछे टक करने के बाद दाईं ओर की प्लीट्स को जि़ग-जै़ग स्टाइल में आगे की तरफ़ सेट करते हैं।

पारंपरिक नऊवारी
नऊवारी का सबसे प्रचलित तरीक़ा है, जिसे राजशाही, मराठा एवं पारंपरिक नऊवारी भी कहते हैं। यह साड़ी एक गांठ पर टिकी होती है। साड़ी के हिस्से को लेकर दाहिनी तरफ़ गांठ लगाते हैं और फिर पल्लू की लंबाई नापते हुए उसे सेट करते हैं। चूंकि साड़ी नौ गज़ की है तो इसकी प्लीट्स चौड़ी बनाई जाती है। सामने की दो प्लीट्स से बाक़ी को कवर करते हैं और साड़ी बॉर्डर को बाहर निकालते हुए केल यानी वरवंटा (कमर पर प्लीट्स से बनाया बेल्ट) बनाते हैं। सारी प्लीट्स को दो भागों में बांटकर बाईं तरफ़ एक प्लीट ज़्यादा रखते हैं। प्लीट्स पीछे ले जाते हुए बॉर्डर सीधा करके अंदर टक करते हैं। दोनों बॉर्डर जुड़े होने चाहिए। यही लुक काष्टा कहलाता है। लावणी डांसर भी अमूमन इसी स्टाइल की साड़ी पहनती हैं।

कोली एवं किसान महिलाओं की नऊवारी
इन दोनों तरीक़ों की नऊवारी को घुटने के ऊपर तक ही बांधा जाता है ताकि काम करने में आसानी हो। किसान महिलाएं साधारण पल्लू रखती हैं, जबकि कोली महिलाएं इसे दो भाग में पहनती हैं। एक भाग नीचे की धोती के लिए और दूसरा दुपट्‌टे की तरह पहना जाता है।

कंटेम्प्ररी स्टाइल
इसमें धोती पैटर्न की नऊवारी प्रमुख है। इन दिनों रेडीमेड नऊवारी मिलती है, जो धोती पैटर्न के साथ ही कुछ अलग तरीक़ों से बांधी जाती है। बॉलीवुड की कई अभिनेत्रियों ने इस तरह की साड़ी पहनी है।

महाराष्ट्र में कौन से वस्त्र पहनते हैं?

जैसा कि महाराष्ट्र एक विशाल राज्य है, इस रंगीन राज्य के लोग विभिन्न प्रकार के वेशभूषा पहनते हैं, अलग व्यंजन करते हैं, उनके इलाके की शारीरिक विशेषताओं के अनुसार नृत्य और संगीत के विभिन्न रूप हैं

महाराष्ट्र में पुरुष क्या पहनते हैं?

हालांकि, महाराष्ट्रीयन महिलाएं एक खास तरह की साड़ी पहनती हैं जो नौ गज लंबी होती है। जिस तरह से इसे पहना जाता है वह समुदाय से समुदाय में भिन्न होता है। यह महाराष्ट्र में महिलाओं द्वारा पहनी जाने वाली पारंपरिक पोशाक है।

महाराष्ट्रीयन साड़ी को क्या कहते हैं?

पैठणी साड़ी का नाम महाराष्ट्र के औरंगाबाद के पैठन शहर के नाम पर रखा गया है। पैठानी साड़ी को एक तिरछे वर्गाकार डिज़ाइन की सीमाओं और मयूर डिज़ाइन वाले पल्लू की विशेषता है। दोनों सादे और चित्तीदार डिजाइन उपलब्ध हैं। शाही पैठानी सिल्क्स के शरीर का गठन करने के लिए रेशम बुना जाता है।

गुजरात में कैसे कपड़े पहनते हैं?

गुजरात की महिलाएं सबसे ज्यादा घाघरा या चनिया चोली पहनती हैं. हालांकि महिलाओं का यह परिधान अब भारत के अन्य हिस्सों में भी काफी लोकप्रिय है. यह पोशाक त्योहारों और अन्य अवसरों के दौरान पहनी जाती है. चानियो गुजरात की महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला एक और लोकप्रिय पहनावा है.

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