लहसुन प्याज हिंदू धर्म में क्यों वर्जित है? - lahasun pyaaj hindoo dharm mein kyon varjit hai?

आपने कई लोगों को देखा होगा कि वह प्याज और लहसुन खाने से परहेज करते हैं।लेकिन आप अक्सर सोचते होंगे कि ऐसा क्यों?क्या इसके पीछे कोई धार्मिक कारण है या फिर वैज्ञानिक?चलिए आज हम आपको बताते हैं।

वेद शास्त्रों के अनुसार,लहसुन और प्याज जैसी सब्जियां जुनून,उत्तेजना को बढ़ावा देती हैं और आध्यात्म के मार्ग पर चलने से रोकती हैं इसलिए इनका सेवन नहीं करना चाहिए।

वहीं आयुर्वेद के मुताबिक,फ़ूड प्रोडक्ट्स को तीन कैटेगरीज में बांटा जाता है।सात्विक,राजसिक और तामसिक जिनमें सात्विक खाना:शांति,पवित्र माना जाता है। वहीं,राजस में जुनून और ख़ुशी के गुण होते हैं। तामस खाना गुस्से,अहंकार आर विनाश का प्रतीक होता है और प्याज-लहसुन इसी श्रेणी में आते हैं इसलिए इन्हें खाना सही नहीं माना जाता।

Navratri 2022: आज यानि की 26 सितंबर से शारदीय नवरात्रि आरंभ हो चुकी हैं। इन दिनों लोग पूरे विधि-विधान से दुर्गा मां की पूजा-अर्चना करते हैं और व्रत रखते हैं। लेकिन ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक नवरात्रि में लहसुन और प्याज जैसे व्यंजनों को खाना वर्जित होता है। इसलिए आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि क्यों आपको नवरात्रि में लहसुन और प्याज का सेवन नहीं करना चाहिए।

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अक्सर आपने देखा या सुना होगा कि हिंदू धर्म में देवी-देवताओं को लहसुन और प्याज चढ़ाया नहीं जाता है। लहसुन और प्याज को भगवान को ही नहीं सिर्फ शास्त्र विधि और अन्य धर्म कार्यों में भी इसका प्रयोग वर्जित बताया गया है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों होता है अगर नहीं तो चलिए आज हम जानेंगे कि हिन्दू धर्म कार्यों में लहसुन और प्याज क्यों वर्जित है।

 लहसुन प्याज भगवान पर क्यों नहीं चढ़ाया जाता है 

 हमारे हिंदू धर्म में अनेक मान्यताएं प्रचलित है जिनका हम पालन भी करते हैं शास्त्रों में विशेषकर प्याज और लहसुन भगवान को चढ़ाने से मना किया किया है इसीलिए इन दोनों को किसी भी धार्मिक कार्य में प्रयोग नहीं किया जाता है और व्रत या  उपवास में इसे खाया भी नहीं जाता है। हिंदू धर्म शास्त्रों में प्याज और लहसुन को राजसिक और तामसिक श्रेणी में रखा गया है, राजसिक और तामसिक का अर्थ है जुनून और अज्ञानता में वृद्धि का होना। शास्त्रों के अनुसार हमें जो भी भोजन करना चाहिए वह सात्विक  होना चाहिए जैसे- दूध, घी, आटा चावल, दाल इत्यादि। इसके अलावा तीखे, खट्टे, चटपटे, अधिक नमकीन, मिठाइयां आदि पदार्थों से निर्मित भोजन को और असात्विक भोजन कहते हैं जो कि रजोगुण यानि कि राजसिक गुण का कारण है। लहसुन, प्याज,मांस,मछली अंडे आदि जाति से ही अपवित्र भोजन है और यह तामसिक यानी कि राक्षसी प्रवर्ती का भोजन कहलता है। हमें इन्हें सात्विक प्रवृत्ति के भोजन में कदापि ग्रहण नहीं करना चाहिए अन्यथा रोग, अशांति, चिंताएं, क्लेश, क्रोध और अज्ञानता बिन बुलाए मेहमान की तरह प्रवेश कर जाते हैं इसीलिए पुराणों में लहसुन और प्याज का प्रयोग रसोई घरों में निषेध माना गया है।

 लहसुन और प्याज से जुड़ी पौराणिक कथाएं

 लहसुन प्याज से जुड़ी एक पौराणिक कथाएं भी है जिसके कारण लहसुन प्याज धर्म आदि कार्यों में वर्जित है। जिसके अनुसार जब समुद्र मंथन से अमृत का कलश निकला था तब भगवान विष्णु सभी देवताओं को अमर होने के लिए अमृत बांट रहे थे, उसी दौरान राहु केतु नाम के एक राक्षस ने रूप बदलकर देवताओं के बीच आकर बैठ गए और ऐसे में गलती से भगवान ने उन्हें भी अमृत पान करा दिया। और जब पता चला भगवान को कि यह एक राक्षस है तब भगवान विष्णु ने उनका सर सुदर्शन चक्र से काट कर अलग कर दिया। अमृत पान किया हुआ वह राक्षस तो अमृत पान करके अमर तो हो गया लेकिन जब धड़ से सिर अलग हुआ तो उसके खून की कुछ बूंदे पृथ्वी लोक पर भी आकर गिरी और उनके खून के बूंदों से प्याज और लहसुन की उत्पत्ति हुई।

जिसे खाने से मुंह से गंध आता है इसीलिए कहा जाता कि प्याज और लहसुन में राक्षसों का वास है, हालांकि अमृत से उत्पन्न होने के कारण इन दोनों में रोगों से लड़ने की क्षमता होती है। लेकिन राक्षस के खून से उत्पन्न होने के कारण यह देवी-देवताओं अथवा अन्य धर्म कार्यों में से इसे दूर रखा जाता और भगवान को नहीं चढ़ाया जाता है। इसके अलावा प्याज और लहसुन के अधिक सेवन से मनुष्य का मन पूजा अर्चना में नहीं लगने लगता है और दूसरे कार्यो में अधिक लगता है इसलिए इनका प्रयोग पूजा-अर्चना में नहीं किया जाता है।

Navratri 2022: शारदीय नवरात्रि की शुरुआत 26 सितंबर 2022 से हो रही है. इन नौ दिनों में मंदिरों, घरों और भव्य पंडालों में कलश स्थापना की जाएगी और माता रानी की उपासना की जाएगी. नवरात्रि में लोग मां दुर्गा की पूजा-अर्चना करेंगे और व्रत भी रखेंगे. व्रत के दौरान सात्विक भोजन ग्रहण किया जाता है जिसमें अनाज, फलाहार शामिल होते हैं. जो लोग व्रत नहीं रखते हैं वे लोग भी सात्विक भोजन ही ग्रहण करते हैं. भोजन में नौ दिनों तक लहसुन-प्याज का सेवन करना वर्जित माना जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि नवरात्रि में लहसुन-प्याज खाने की मनाही क्यों है? अगर नहीं जानते हैं तो आर्टिकल आगे पढ़ें.

प्याज-लहसुन खाना इसलिए है वर्जित

वैसे तो हिंदु धर्म में कई मान्यताएं हैं लेकिन जब बात नवरात्रि में प्याज और लहसुन खाने की बात आती है तो सभी लोग अच्छे से इस नियम का पालन करते हैं. हिंदु पुराणों के मुताबिक, पूजा-पाठ या फिर किसी भी व्रत के दौरान लहसुन और प्याज का ना ही उपयोग करना चाहिए और ना ही उनसे बने भोजन का सेवन करना चाहिए.

हिंदु पुराणों में बताई गई कथा मुताबिक, जब देवता और असुरों के बीच सागर मंथन हो रहा था तो उसमें 9 रत्न निकले थे और आखिरी में अमृत निकला था. इसके बाद भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप लिया और देवताओं को अमृत पिलाने लगे. तभी दो दानव राहु-केतु ने देवताओं का रूप रख लिया और अमृत पी लिया.

इसके बाद भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से अलग कर दिया. माना जाता है कि उनका सिर जब धड़ से अलग हुआ तो उनके खून की कुछ बूंदें जमीन पर गिर गईं और उससे ही लहसुन प्याज की उत्पत्ति हुई. इसलिए ही प्याज और लहसुन से तीखी गंध आती है. यह भी बताया जाता है कि राहु-केतु के शरीर में अमृत की कुछ बूंदें पहुंच गई थीं इसलिए उनमें रोगों से लड़ने क्षमता पाई जाती है.

यह भी कहा जाता है प्याज और लहसुन के अधिक प्रयोग से धर्म से इंसान का मन भटक जाता है और दूसरे कामों में लगने लगता है. पुराणों में प्याज और लहसुन को राजसिक और तामसिक माना जाता है. कहा जाता है कि तामसिक और राजसिक गुण बढ़ने से इंसान की अज्ञानता बढ़ती है इसलिए ही हमेशा से सात्विक भोजन करने की ही सलाह दी जाती है ताकि उसका मन धर्म में लगा रहे.

तामसिक भोजन जैसे मांस-मछली, प्याज, लहसुन आदि राक्षसी प्रवृत्ति के भोजन कहलाते हैं. जिसके सेवन से घर में अशांति, रोग और चिंताएं घर में प्रवेश करती हैं इसलिए प्याज-लहसुन का सेवन खाना हिंदु धर्म में वर्जित माना जाता है.  

आयुर्वेदिक और वैज्ञानिक कारण

आयुर्वेद के अनुसार, खाद्य पदार्थों को उनकी प्रकृति और खाने के बाद शरीर में होने वाली प्रतिक्रिया के आधार पर तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है. जैसे:

- राजसिक भोजन
- तामसिक भोजन
- सात्विक भोजन

व्रत के दौरान लोग सात्विक भोजन करते हैं लेकिन इसके पीछे धार्मिक मान्यता के अलावा एक वैज्ञानिक कारण भी है. शरदीय नवरात्रि अक्टूबर-नवंबर के महीने में आती है जिस दौरान मौसम शरद ऋतु से सर्दियों के मौसम में जाने लगता है. मौसम बदलने के कारण इम्यूनिटी कमजोर होने लगती है. ऐसे में इस मौसम में सात्विक भोजन करने से डाइजेशन सही रहता है और शरीर के टॉक्सिन्स शरीर से बाहर आते हैं. 

विज्ञान के मुताबिक, प्याज और लहसुन को तामसिक प्रकृति का माना जाता है और कहा जाता है कि यह शरीर में मानसिक और भावनात्मक ऊर्जा को बढ़ा देता है जिससे मन भटक जाता है. इसलिए नवरात्रि के उपवास के दौरान इसकी अनुमति नहीं है. प्याज के साथ लहसुन को रजोगिनी (Rajogini) के रूप में जाना जाता है, जिसका अर्थ है कि लहसुन को ऐसा पदार्थ माना गया है जिससे आपकी इच्छाओं और प्राथमिकताओं में अंतर करना मुश्किल हो जाता है. 

हिंदू धर्म में लहसुन प्याज क्यों नहीं खाते हैं?

पुराणों में प्याज और लहसुन को राजसिक और तामसिक माना जाता है. कहा जाता है कि तामसिक और राजसिक गुण बढ़ने से इंसान की अज्ञानता बढ़ती है इसलिए ही हमेशा से सात्विक भोजन करने की ही सलाह दी जाती है ताकि उसका मन धर्म में लगा रहे. तामसिक भोजन जैसे मांस-मछली, प्याज, लहसुन आदि राक्षसी प्रवृत्ति के भोजन कहलाते हैं.

शास्त्रों के अनुसार प्याज क्यों नहीं खाना चाहिए?

वेद शास्त्रों के अनुसार,लहसुन और प्याज जैसी सब्जियां जुनून,उत्तेजना को बढ़ावा देती हैं और आध्यात्म के मार्ग पर चलने से रोकती हैं इसलिए इनका सेवन नहीं करना चाहिए। वहीं आयुर्वेद के मुताबिक,फ़ूड प्रोडक्ट्स को तीन कैटेगरीज में बांटा जाता है। सात्विक,राजसिक और तामसिक जिनमें सात्विक खाना:शांति,पवित्र माना जाता है।

प्याज और लहसुन को मांसाहारी क्यों माना जाता है?

लहसुन ओर प्याज को नॉन वेज क्यों कहते हैं? - Quora. लहसुन और प्याज को तामसिक भोजन की प्रवर्ति मे रखा गया है। क्योंकि इनकी तासीर गर्म पदार्थों मे की गयीं है। और इनके खाने से व्यक्ति मे सहनशीलता कम होतीं हैं।

शास्त्रों के अनुसार लहसुन प्याज की उत्पत्ति कैसे हुई?

उन्होंने विष्णु भगवान से उस राक्षस की सच्चाई बताई, तब भगवान विष्णु ने अपने चक्र से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया. उसने थोड़ा अमृत पान किया था, जो अभी उसके मुख में था. सिर कटने से खून और अमृत की कुछ बूंदें जमीन पर गिर गईं. उससे ही लहसुन और प्याज की उत्पत्ति हुई.

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