कवि हर सड़क हर गली हर नगर, हर गांव में हाथ लहराते हुए किसके चलने की बात कर रहा है - kavi har sadak har galee har nagar, har gaanv mein haath laharaate hue kisake chalane kee baat kar raha hai

प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘साहित्य गौरव’ के ‘हो गई है पीर पर्वत-सी’ नामक आधुनिक कविता से लिया गया है जिसके रचयिता दुष्यन्त कुमार हैं।

संदर्भ : यह गजल देशवासियों को जागरण का संदेश देती है।

भाव स्पष्टीकरण : इस संसार में दुःखी लोगों की पीड़ा पर्वत सी बन गई है। मनुष्य-मनुष्य के बीच दीवारें बन गई हैं, दूरी बढ़ती जा रही है। कवि ने ऐसी प्रगति परक विचार धारा इस कविता में भर दी है कि हर प्रान्त के, हर गली, हर नगर, हर गाँव में हाथ लहराते हुए झूमते हुए धैर्य से चलना चाहिए। दुःख सुख में परिवर्तित होना चाहिए। सचमुच देश में प्रगति तभी संभव है जब देश के सभी प्रान्त, सभी वर्ग के लोग एक जुट होकर अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करें।

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