कौन सी तिथि को यात्रा नहीं करनी चाहिए? - kaun see tithi ko yaatra nahin karanee chaahie?

क्या है, यात्रा मुहूर्त के नियम जाने ! (what are the rules of travel time) ज्योतिष के अनुसार यात्रा मुहूर्त के नियम जानने का प्रयास करते है। मुहूर्त के आधार पर यात्रा-मुहूर्त, विवाह-मुहूर्त इत्यादि शुभ कार्य  करने का प्रचलन प्राचीन काल से चला आ रहा है। किसी  कार्य के सही सफलता के लिए सही समय का चयन करना ही मुहूर्त कहलाता है। संस्कृत में उक्ति है :- प्रयोजनम् अनुदिश्य मन्दः अपि न प्रवर्तते अर्थात विना किसी प्रयोजन व उद्देश्य के मुर्ख भी कोई कार्य नहीं करता। व्यक्ति विभिन्न उद्देश्यों और कार्यों से ही जीवन में समय समय पर यात्रा करता है। जब हम किसी विशेष प्रयोजन या कार्य से कोई यात्रा करते हैं तो हमारी यही अपेक्षा रहती है कि जिस प्रयोजन से हम यात्रा कर रहे हें उसमें हमें सफलता प्राप्त हो।

यात्रा से पूर्व हमारे मन में अनेकों प्रश्न उत्पन्न होते है यथा मेरी यात्रा कैसी होगी व यात्रा से वाञ्छित परिणाम प्राप्त होगा या नहीं। वास्तव में मन में उत्पन्न होने वाले अनेको शंकाओं का समाधान उस मुहुर्त पर निर्भर करता है जिसमें हम यात्रा करते हैं। कहा भी गया है-

कालः एव श्रेष्ठः।

ज्योतिष आचार्यो के अनुसार यात्रा के लिए जब मुहुर्त देखा जाता है तब यात्रा से मुख्यतःयह देखा जाता है कि यात्रा का मूल उद्देश्य क्या है, यात्रा की दूरी तथा उसका मार्ग क्या है (सड़कमार्ग, जलमार्ग, वायुमार्ग  या रेलमार्ग) आप किस मार्ग से आप यात्रा कर रहे हैं तथा किस प्रकार के साधन का उपयोग करने वाले है। वर्तमान समय में अपने साधन का प्रयोग ज्यादा होने लगा है तथा दुर्घटना भी। सामान्यतः जब दुर्घटना हो जाती है तब हमारे मुख से यह शब्द निकलता है की जाने हम किस घड़ी में निकले थे की यह दिन देखने को मिला ? आज का नक्षत्र ही ठीक नहीं है किसका चेहरा देखकर निकले थे इत्यादि परन्तु इन विचारो के बावजूद भी हम जब अगली यात्रा करते है तो कम से शुभ दिन का भी ख्याल नहीं रखते और मन में यह भावना रखकर निकल जाते है की छोड़ो न जो होगा देखा जायेगा। तो मित्रो आपसे मेरी सलाह है की कोई अनहोनी होने से पहले यात्रा में  शुभ दिन का अवश्य ही ख्याल रखे। प्राचीन काल से यह कहावत चली आ रही है —

सोम शनिचर पूर्व न चालू। मंगल बुध उत्तर दिशि कालू।

रवि शुक्र जो पश्चिम जाये। हानि होय पथ सुख नहीं पाये।

बीफे दक्षिण करे जो यात्रा। फिर समझो उसे कभी लौट के न आना। 

अर्थात सोम शनिचर को पूर्व तथा मंगल और बुध को उत्तर दिशा में कभी भी यात्रा नहीं करनी चाहिए। वहीं रवि शुक्र को पश्चिम तथा वृहष्पति को दक्षिण दिशा में भूलकर भी यात्रा नहीं करनी चाहिए।  कम से कम इतना तो अवश्य ही ध्यान रख सकते है।

दैनिक या रोजमर्रा की यात्रा के प्रसंग में मुहुर्त का विचार करना अत्यावश्यक नहीं है। यात्रा मुहूर्त के लिए दिशाशूल, नक्षत्र शूल, भद्रा, योगिनी, चन्द्रमा, शुभ तिथि, शुभ नक्षत्र इत्यादि का विचार किया जाता है।

यात्रा मुहूर्त के नियम में पंचांग विचार

1.नक्षत्र विचार (Assessment of Nakshatra)

यात्रा से पूर्व सर्वप्रथम नक्षत्रों की स्थिति का विचार करना जरुरी होता। यदि यात्रा के दिन अश्विनी(Ashwani), हस्त(Hast), पुष्य(Pushya), मृगशिरा(Mrigshira), रेवती(Raivti), अनुराधा(Anuradha), पुनर्वसु(Punarvashu), श्रवण (Sravan), घनिष्ठा (Ghanistha) नक्षत्र हो तो यात्रा करना शुभ और अनुकूल होता है अर्थात आपको इसी नक्षत्र में यात्रा करनी चाहिए। इन नक्षत्रों के अतिरिक्त आप उत्तराफाल्गुनी(Uttrafalguni), उत्तराषाढ़ा(Uttrasadha), और उत्तराभाद्रपद (Uttravadrapad) में भी यात्रा कर सकते हैं परन्तु ये नक्षत्र यात्रा के लिए वैकल्पिक है।

2.नक्षत्र शूल (Nakshatra Shool)

यात्रा से पहले दिशा का विचार कर लेना चाहिए। ज्योतिषशास्त्र में नक्षत्रों की अपनी दिशा निर्धारित है, जिस दिन जिस दिशा का नक्षत्र होगा उस दिन उसी  दिशा में यात्रा भूलकर भी नहीं करनी चाहिए। यथा:– ज्येष्ठा नक्षत्र की दिशा पूर्व,  पूर्व भाद्रपद की दिशा दक्षिण, रोहिणी नक्षत्र की दिशा पश्चिम तथा उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र की दिशा उत्तर निर्धारित है अतः जिस दिन जो नक्षत्र हो उस दिन उसी नक्षत्र की दिशा में यात्रा करना निषेध है। जिस दिशा में आपको यात्रा करनी हो उस दिशा का नक्षत्र होने पर नक्षत्र शूल लगता है अत: नक्षत्र की दिशा में यात्रा नहीं करनी चाहिए।

3. तिथि विचार (Tithi Vichar)

यात्रा मुहूर्त विचार में तिथि का अपना महत्व है। ज्योतिषशास्त्र में यात्रा हेतु द्वितीया. तृतीया, पंचमी, दशमी, सप्तमी, एकादशी और त्रयोदशी तिथि को बहुत ही शुभ माना गया है। कृष्णपक्ष की प्रतिपदा तिथि भी यात्रा के संदर्भ में उत्तम मानी जाती है। इन्ही शुभ तिथियों में यात्रा करनी चाहिए इसके अतिरिक्त तिथियाँ त्याज्य है।

4. करण विचार (Karan vichar)

विष्टि करण में यात्रा नहीं करनी चाहिए क्योकि इसमें भद्रा दोष लगता है।

5. वार विचार (Var Vichar)

सोम, शनिचर को पूर्व तथा मंगल और बुध को उत्तर दिशा में कभी भी यात्रा नहीं करनी चाहिए। वहीं रवि, शुक्र को पश्चिम तथा वृहष्पति को दक्षिण दिशा में भूलकर भी यात्रा नहीं करनी चाहिए। यात्रा के लिए बृहस्पति और शुक्रवार को सबसे अच्छा माना गया है। वहीं रवि, सोम और बुधवार यात्रा के लिए मध्यम माना गया है। मंगलवार और शनिवार यात्रा के लिए अशुभ है अतः यह शुभ-यात्रा हेतु त्याज्य है। इस दिन कोई यात्रा न करे वही बेहतर होगा।

6. समय शूल (Time Shool)

सुबह के समय पूरब, संध्या में पश्चिम, अर्धरात्रि में उत्तर तथा मध्याह्न काल में दक्षिण दिशा में यात्रा नहीं करनी चाहिए।

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कौन सी तिथि में यात्रा करनी चाहिए?

मंगलवार पूर्व व दक्षिण दोनों ही दिशाओं में यात्रा के लिए शुभ होता है। बुधवार के दिन पूर्व एवं पश्चिम दिशा की यात्रा अनुकूल रहती है। गुरूवार को दक्षिण दिशा को छोड़कर अन्य सभी दिशाओं में यात्रा सुखद रहती है। शुक्रवार के दिन शाम के समय शुरू की गयी यात्रा सुखद और शुभ फलदाय होती है।

शुभ तिथि कौन सी है?

नन्दा तिथि : दोनों पक्षों (कृष्ण और शुक्ल पक्ष) की 1, 6 और 11वीं तिथि अर्थात प्रतिपदा, षष्ठी व एकादशी तिथियां नन्दा तिथि कहलाती हैं। इन तिथियों में अंतिम प्रथम घटी या अंतिम 24 मिनट को छोड़कर सभी मंगल कार्यों को करना शुभ माना गया है।

कौन से नक्षत्र में यात्रा नहीं करनी चाहिए?

पूर्णिमा तिथि के दिन यात्रा करना पंचांग की पंद्रहवीं तिथि को पूर्णिमा कहते हैं। साथ ही यह शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि भी होती है। इस दिन के दिन चंद्रमा और गुरु एक ही नक्षत्र में होते हैं इसलिए इस दिन यात्रा करना अशुभ माना गया है।

क्या अमावस्या को यात्रा करनी चाहिए?

अमावस्या के दिन यात्रा नहीं करनी चाहिए. कहा जाता है कि इस दिन यात्रा करने से कोई खास फल प्राप्त नहीं होता.

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