Jain Dharm Ki Sthapanaa Kisne Ki
GkExams on 06-02-2019
जैन धर्म बौद्ध धर्म से काफी पुराना है। इसका उदय वैदिक काल में ही हो गया था। जैनों के धर्म गुरुओं को तीर्थंकर कहा गया है। कुल 24 तीर्थंकर हुए। ऋषभदेव पहले तीर्थंकर थे। इनका उल्लेख ऋग्वेद में भी है। 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे। पार्श्व के अनुयायियों को निर्ग्रन्थ कहा जाता था। 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी को निगंठ नाट पुत्त कहा गया है। पार्श्वनाथ ने वैदिक कर्मकांड और देववाद का विरोध किया। पार्श्वनाथ ने सत्य, अहिंसा, अस्तेय (चोरी न करना) तथा अपरिग्रह (धन संचय न करना) का उपदेश दिया। महावीर स्वामी ने इसमें ब्रह्मचर्य नामक पांचवे व्रत को जोड़ा।
महावीर स्वामी जैनों के 24वें तथा अंतिम तीर्थंकर थे। ये जैन धर्म के वास्तविक संस्थापक माने जाते है। महावीर का जन्म 540 ई. पू. वैशाली के निकट कुन्डग्राम में हुआ था। उनके पिता सिद्धार्थज्ञातृक क्षत्रिय कुल के प्रधान थे। उनकी माता त्रिशला लिच्छवी राजकुमारी थीं। महावीर का विवाह यशोदा नामक राजकुमारी से हुआ था। सत्य की तलाश में महावीर 30 वर्ष की आयु में गृहत्याग कर सन्यासी हो गये। 12 वर्ष की गहन तपस्या के बाद जम्भियग्राम के निकट ऋजुपालिका नदी के तट पर उन्हें कैवल्य (सर्वोच्च ज्ञान) प्राप्त हुआ। इन्द्रियों को जितने के कारण वे जिन और महावीर कहलाये। कोशल, मगध, मिथिला, चम्पा आदि राज्यों में भ्रमण कर उन्होंने अपने धर्म का 30 वर्षों तक प्रचार किया। उन्होंने सामान्य बोलचाल की भाषा प्राकृत को अपनाया। महावीर की मृत्यु 72 वर्ष की आयु में राजगृह के निकट पावापुरी में 468 ई. पू. में हुई।
जैन धर्म में सांसारिक तृष्णा बंधन से मुक्ति को निर्वाण कहा गया है। निर्वाण प्राप्ति के लिए त्रिरत्न का पालन आवश्यक मन गया है। जैन धर्म में त्रिरत्न है – सम्यक दर्शन (सत्य में विश्वास), सम्यक ज्ञान (शंका रहित वास्तविक ज्ञान) तथा सम्यक आचरण (सुख-दुःख में समभाव)। साथ में पांच महाव्रतों का पालन आवश्यक माना गया है।
ये पांच महाव्रत है –
- सत्य,
- अहिंसा,
- अस्तेय,
- अपरिग्रह,
- ब्रह्मचर्य।
गृहस्थ जीवन व्यतीत करने वालों के लिए भी इन्ही व्रतों की व्यवस्था की गयी है लेकिन उनके लिए कठोरता में कमी करके उसे अणुव्रत नाम दिया गया है।
जैन धर्म में काया-क्लेश के अंतर्गत उपवास द्वारा शरीर के अंत (संल्लेखन) का भी विधान है। मौर्य वंश के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य ने मैसूर के श्रवण बेलगोला में इसी प्रकार मृत्यु प्राप्त किया था। जैन धर्म कर्म तथा पुनर्जन्म के सिद्धांतों को मानता है परन्तु वेदों की प्रमाणिकता को नहीं माना तथा पशुबलि का विरोध किया है। सृष्टि की रचना के लिए परमात्मा को मानने की आवश्यकता नहीं है। जैन देवताओं के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं परन्तु उनका स्थान जिन से नीचे रखा गया है। कर्मों के अनुसार ऊँचे या नीचे कुल में जन्म होता है। युद्ध और कृषि कार्य वर्जित है क्योंकि इनसे जीव-हिंसा होती है इसीलिए जैनी व्यापर और वाणिज्य तक सिमित रहते हैं।
बाद में जैनी श्वेताम्बर और दिगंबर सम्प्रदायों में बट गये। सफ़ेद वस्त्र धारण करने वाले स्थलबाहू (स्थूलभद्र) के अनुयायी श्वेताम्बर कहलाये जबकि वस्त्र धारण न करने वाले भद्रबाहु के अनुयायी दिगंबर कहलाये।
जैन दर्शन में ज्ञान प्राप्ति के तीन स्रोत माने गए हैं – प्रत्यक्ष, अनुमान और तीर्थंकरों के वचन। जैन मत के अनुसार वस्तु अनंत गुण और धर्म वाले होते हैं (अनेकान्तवाद)। उन्हें अनेक दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है (सप्तभंगी नय)। अपने अपने दृष्टिकोण से हर कथन सत्य है परन्तु कोई भी कथन निरपेक्ष सत्य नहीं होता। अतः कथन के पहले स्यात् शब्द लगा लेना चाहिये (स्याद्वाद)।
जैन सभाप्रथम जैन सभा – चन्द्रगुप्त मौर्य के समय में पाटलिपुत्र में हुई थी। 12 अंगों का संपादन भद्रबाहु और सम्भूति विजय नामक स्थविरों के निरिक्षण में हुआ था।
द्वितीय जैन सभा – 512 ई. में देवर्धि क्षमाश्रमण के नेत्रित्व में गुजरात के वल्लभी में हुई थी। इसमें जैन धर्म के ग्रंथों का अंतिम संकलन किया गया और इन्हें लिपिबद्ध किया गया।
जैन कला के उदाहरण- बाघ गुफा, उदयगिरि (ओडिशा)
- हाथी गुम्फा (ओडिशा)
- दिलवाडा जैन मंदिर, माउंट आबू (राजस्थान)
- बाहुबली या गोमतेश्वर प्रतिमा (कर्नाटक)
- इन्द्र सभा, एलोरा (महाराष्ट्र)।
सम्बन्धित प्रश्न
Comments Shreya tiwari on 14-09-2022
Oh
Ragini kumari on 14-06-2022
Jain dhrm ka
Ragini kumari on 14-06-2022
Jain dharm sthapna kishne ki thi
Sonal piparia on 16-04-2022
Is avaspirni kal me sarvpratham jain dharm ki sthapna kab hui thi
Chauthe aare me
Tisare aare me
Pahle aare me
Devendra Kumar on 03-01-2022
Bhartiya rashtriy ka sthapna kisne ki thi
Shivani rajput on 26-10-2021
Jain dharm ki sthapana kisane ki thi