इतिहास के पांच स्रोत क्या हैं? - itihaas ke paanch srot kya hain?

मौर्य साम्राज्य की नींव ने भारत के इतिहास में एक नए युग का प्रारम्भ किया | पहली बार भारत ने राजनीतिक समानता को प्राप्त किया | इसके अलावा, इस युग से इतिहास लिखना अब और भी ज्यादा आसान हो गया क्यूंकि अब घटना क्रम व स्त्रोत बिलकुल सटीक थे | स्वदेशी और विदेशी स्त्रोतों के अलावा, इस युग का इतिहास लिखने के लिए कई शिलालेखों के दस्तावेज़ भी उपलबद्ध हैं | समकालीन साहित्य और पुरातात्विक खोज इसकी जानकारी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं |

मौर्य इतिहास के बारे में दो प्रकार के स्त्रोत उपलब्ध हैं | एक साहित्यक है और दूसरा पुरातात्विक है | साहित्यक स्त्रोतों में कौटिल्य का अर्थशास्त्र, विशाखा दत्ता का मुद्रा राक्षस, मेगास्थेनेस की इंडिका, बौद्ध साहित्य और पुराण  हैं |  पुरातात्विक स्त्रोतों में अशोक के शिलालेख और अभिलेख और वस्तुओं के अवशेष  जैसे चांदी और तांबे के छेद किए हुए सिक्के शामिल  हैं |

1. साहित्यक स्त्रोत :

a) कौटिल्य -अर्थशास्त्र

यह पुस्तक कौटिल्य (चाणक्य का दूसरा नाम ) के द्वारा राजनीति और शासन के बारे में लिखी  गई है | यह पुस्तक मौर्य काल के आर्थिक और राजनीतिक स्थिति के बारे में बताती है | कौटिल्य, चन्द्र गुप्त मौर्य, मौर्य वंश के संस्थापक, का प्रधानमंत्री था |

b) मुद्रा राक्षस

यह पुस्तक गुप्ता काल में विशाखा दत्ता द्वारा लिखी गई| यह पुस्तक बताती है कि किस तरह चन्द्रगुप्त मौर्य ने सामाजिक आर्थिक स्थिति पर रोशनी डालने के अतिरिक्त, चाणक्य की  मदद से नन्द वंश को पराजित किया था |

c) इंडिका

इंडिका, मेगास्थेनेस द्वारा रची गई जोकि चंद्र गुप्त मौर्य की सभा में सेलेकूस निकेटर का दूत था |यह मौर्य साम्राज्य के प्रशासन, 7 जाति प्रणाली और भारत में ग़ुलामी का ना होना दर्शाती है | यद्यपि इसकी मूल प्रति खो चुकी है, यह पारंपरिक यूनानी लेखकों जैसे प्लुटार्च, स्ट्राबो और अर्रियन के लेखों में उदहारणों के रूप में सहेजे हुए हैं |

d) बौद्ध साहित्य

बौद्ध साहित्य जैसे जातक मौर्य काल के सामाजिक- आर्थिक स्थिति के बारे में बताता है जबकि बौद्ध वृतांत महावमसा और दीपवांसा अशोक के बौद्ध धर्म को श्रीलंका तक फैलाने की भूमिका के बारे में बताते हैं | दिव्यवदं, तिब्बत बौद्ध लेख अशोक के बौद्ध धर्म का प्रचार करने के योगदान के बारे में जानकारी देते हैं |

e) पुराण

पुराण मौर्य राजाओं और घट्नाक्रमों की सूचि के बारे में बताते हैं |

पुरातात्विक स्त्रोत

अशोक के अभिलेख

अशोक के अभिलेख, भारत के विभिन्न उप महाद्वीपों में शिलालेख, स्तंभ लेख और गुफ़ा शिलालेख के रूप में पाये जाते हैं | इन अभिलेखों की व्याखाया जेम्स प्रिंकेप ने 1837 AD में किया था | ज्यादातर अभिलेखों में अशोक की  जनता को घोषणाएँ हैं जबकि कुछ में अशोक के बौद्ध धर्म को अपनाने के बारे में बताया गया है |

वस्तु अवशेष

वस्तु अवशेष जैसे NBPW ( उत्तत काल के पोलिश के बर्तन) चाँदी और तांबे के छेद किए हुए सिक्के मौर्य काल पर रोशनी डालते हैं |

अशोक के अभिलेखों और उसकी जगह के बारे में एक छोटा विवरण नीचे दिया गया है :

अशोक के राजाज्ञा और शिलालेख

यह क्या दर्शाता है ?

इसका स्थान

14 मुख्य शिलालेख

धम्मा के सूत्र

कलसी (देहरादून, उत्तराखंड, मनशेरा(हाज़रा, पाकिस्तान ), जूनागढ़ (गिरनार, गुजरात ), जौगड़ा(गंजम,उड़ीसा )येर्रागुड्डी ( कुरनूल, आंध्रा प्रदेश )शाहबज़्गढ़ी (पेशावर, पाकिस्तान)

यानि इतिहास एक ऐसा ग्रन्थ है जो हमे अतीत में हुई उन घटनाओ की जानकारी देता है जो निश्चित तोर पर घटित हुई है और हमारे पास इसके घटित होने के पुख्ता स्त्रोत हैं। 

क्या अतीत में हुई सारी घटनाएं ही इतिहास है ? नहीं ऐसा बिलकुल नहीं है इतिहास वही है जिनके हमारे पास स्त्रोत है जो उनके होने का सबूत है। 

Source Of Indian History PDF In Hindi


History 

यह शब्द यूनानी / ग्रीक भाषा के शब्द HISTORIA  से बना है जिसका मतलब होता है - छानबीन करके या खोजबीन करके जो भी जानकारी प्राप्त होती है उसे ही ग्रीक भाषा में हिस्टोरिया कहा जाता है। 


सबसे पहले हेरोडोटस नाम के यूनानी ही व्यक्ति ने हिस्टोरिका नामक पुस्तक लिखकर अतीत में हुई भटनाओँ की जानकारी दी। इतिहास लिखने का काम सबसे पहले हेरोडोटस ने किया इसलिए इसे इतिहास का पिता या Father Of History भी कहा जाता है। 


 लेकिन इतिहास तो वही जो हमे अतीत में हुई उन घटनाओं की जानकारी देता जो निश्चित तोर पर घटित हुई हैं और उसके हमारे पास पुख्ता स्त्रोत होने चाहिए और ये स्त्रोत तीन तरह के हो सकते हैं -


Archeological Source (पुरातात्विक स्त्रोत)

Literary Source 

Description Of Foreigner Travelers (विदेशी यात्रियों का विवरण)


1. Archeological Source (पुरातात्विक स्त्रोत)

अवशेष (Fossils)

अभिलेख (Inscription)

स्मारक (Monument)

सिक्के (Coins)

मूर्तियाँ (Statue)


अवशेष  (Fossils)

Indus Valley Civilization या हड़पा से हमे बहुत सारे अवशेष प्राप्त हुए हैं। 

यह सारे के  सारे अवशेष इस बात का पुरातात्विक स्त्रोत है की वो घटना निश्चित तौर पर घटित हुई थी। 


अभिलेख (Inscription)

भरता में सबसे पुराने अभिलेख अशोक के अभिलेख माने गए हैं, जो हमे खरोष्टी लिपि या ब्राह्मी लिपि मिले। 

इन अभिलेखों को सबसे पहले 1873 में जेम्स प्रिन्सिल ने पड़ा और हमे बताया की अशोक ने शाषन काल क्या-क्या काम किय तथा कौन - कौन की महत्वपूर्ण घटनाये घटित हुई। 


स्मारक (Monument)

वो इमारते जो पास्ट में यानि अतीत में बनी थी जैसे - आगरा का ताजमहल, दिल्ली का लाल किला, फतेहपुर सिकरी का बुलंद दरवाजा आदि।   


सिक्के (Coins)

गुप्तकालीन एक महान शासक हुआ जिसका नाम था समुन्द्रगुप्त। और समुन्द्रगुप्त के काल के ही कुछ सिक्के प्राप्त हुए जिन पर संस्कृत भाषा  समुन्द्रगुप्त लिखा हुआ था और दूसरी और उसे वीणा वादन करते हुए चित्रित किया गया था। 

समुन्द्रगुप्त के इन्ही सिक्कों को देखकर हमे यह पता  चला की गुप्तकाल में समुन्द्रगुप्त नाम का महान शाषक हुआ जो वीणा वादन करता था। 

इससे हमे समुन्द्रगुप्त का पता तो चला ही साथ में यही भी ज्ञात हुआ की भारत का सबसे पुराण वाद्य यंत्र है वीणा।


मूर्तियाँ (Statue) 

इसके अलावा अगर हम मूर्तियों की बात करें तो हमे पशुपतिनाथ जी की मूर्ति, पुरोहित जी की मूर्ति, नटराज जी की मूर्ति आदि मिले हैं।  


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2. Literary Source (साहित्यक स्त्रोत )

साहित्यक स्त्रोत से हमारा अभिप्राय उन इतिहासिक किताबों से है जो हमे अतीत में हुई घटनाओं की जानकारी देती हैं। 

धर्म ग्रंथ एवं ऐतिहासिक ग्रंथ से  मिलने वाली महत्वपूर्ण जानकारी

भारत का सबसे प्राचीन धर्म ग्रंथ वेद है जिसके संकलनकर्ता महर्षि कृष्ण वेदव्यास को माना जाता है।

 वेद चार है ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अर्थ वेद


ऋग्वेद  

ऋग्वेद की रचना विश्वामित्र द्वारा की गई। 

रचनाओं के क्रमबद्ध ज्ञान के संग्रहण को ऋग्वेद कहा जाता है

इसमें 10 मंडल, 1028 सूक्त और 10462 रचनाएं हैं।

ऋग्वेद वेद के रचनाओं को पढ़ने वाले ऋषि को होत्र कहते हैं  

इस वेद से आर्यों की राजनीतिक प्रणाली और इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।

विश्वामित्र द्वारा रचित ऋग्वेद के तीसरे मंडल में सूर्य देवता सावित्री को शर्म समर्पित प्रसिद्ध गायत्री मंत्र है।

ऋग्वेद के 8 वें मंडल की हस्तलिखित रचनाओं को खिल कहा जाता है

इसके 9 वें मंडल में देवता सोम का उल्लेख मिलता है।

Note: धर्मसूत्र चार प्रमुख जातियों की स्थितियों, व्यवसायों, दायित्वों, कर्तव्यों तथा विशेषाधकारों में स्पष्ट विभेद करता है।

वामनावतार का तीन पगों के आख्यान का प्राचीनतम स्त्रोत ऋग्वेद है।

इसमें इंद्र के लिए 250 तथा अग्नि के लिए 200 रचनाओं की रचना की गई है। 

प्राचीन इतहास के साधन के रूप में वैदिक साहित्य में ऋग्वेद के बाद शतपथ का स्थान है।


यजुर्वेद

यह एकमात्र ऐसा वेद है जो गद्य और पद्य दोनों में है।

स्वर पाठ के लिए मंत्रो तथा बली के समय अनुपालन के लिए नियमों का संकलन यजुर्वेद कहलाता है।

यजुर्वेद के पाठकरता को अध्वर्यू कहा जाता है।


सामवेद

इसे भारतीय संगीत का जनक कहा जाता है।

यह गाई जा सकने वाली रचनाओं का संकलन है।

इसके पाठकरता को उर्दातर कहा जाता है।


अथर्ववेद

अथर्ववेद की रचना महर्षि अथ्रवा ने की।

इस वेद में रोग, निवारण, तंत्र - मंत्र, जादू टोना, शाप, वशीकरण, आशीर्वाद, स्तुति, प्रायश्चित, औषधि, अनुसंधान, विवाह, प्रेम आदि विषयों से मंत्रो का वर्णन किया गया है।

अथर्ववेद में कन्याओं के जन्म की निन्दा की गई है।

ऋग्वेद सबसे प्राचीन वेद है तथा अथर्ववेद  सबसे नया वेद है ।

वेदों को भली भांति समझने के लिए छ: वेदंगो की रचना हुई यह है - शिक्षा, ज्योतिष, कल्प, व्याकरण, नीरुक्त तथा छंद।

भारतीय इतिहासिक कथाओं का सबसे अच्छा विवरण पुराणों में मिलता है।

इनके रचयिता लॉमहर्ष अथवा इनके पुत्र उग्रश्रवा माने जाते हैं।

पुराणों की संख्या 18 है, इनमें से केवल पांच (मत्स्य, वायु, विष्णु, ब्राह्मण एवं भागवत) में ही राजाओं की वंशावली पायी जाती है।

मत्स्य पुराण सबसे प्राचीन और प्रमाणिक है।

अधिकतर पुराण सरल संस्कृत श्लोक में लिखी गई हैं।

Note: स्त्रियों तथा शूद्रों को वेद पढ़ने की अनुमति नहीं है जबकि यह सभी पुराण को सुन सकते हैं।

स्त्री की सर्वाधिक गिरी हुई स्थिति मैत्रेयनी सहिंता से प्राप्त होती है जिसमें जुआ और शराब की भांति परुष का तीसरा मुख्य दोष माना गया है।

शतपथ ब्राह्मण में स्त्री को पुरुष की अर्धांगिनी कहा गया है।

स्मृति ग्रंथों में सबसे प्राचीन और प्रमानिक मनुस्मृति मानी जाती है।

मनुस्मृति शुंग काल का मानक ग्रंथ है।

बुध के पुर्णजन्म की कहानी जातक में वर्णित है। हिनयान का प्रमुख ग्रंथ ' कथावतू' है जिसमें भगवान बुद्ध के जीवन चरित का वर्णन है।

जैन साहित्य को आगम कहा जाता है।

जैन धर्म का प्रारंभिक इतिहास ' कल्पसुत्र' से ज्ञात होता है। जैन ग्रंथ भगवती सूत्र में महावीर के जीवन कर्तव्यों का विवरण मिलता है।

अर्थशास्त्र 15 अधिकरणों और 180 प्रकरणों में विभाजित है इसमें मोर्यकालीन इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है।

अर्थशास्त्र की रचना चाणक्य (कौटिल्य यां विष्णुगुप्त) ने की।

संस्कृत साहित्य में ऐतिहासिक घटनाओं को कर्मबध लिखने का सर्वप्रथम प्रयास कल्हण के द्वारा किया गया। कल्हण द्वारा रचित पुस्तक राजतरंगीनी है जिसका संबंध कश्मीर के इतिहास से है।

अरबों की सिंध विजय का वृतांत चंचनामा मैं सुरक्षित है।चंचनामा के लेखक अली अहमद हैं 

अष्टाध्याई संस्कृत भाषा व्याकरण की प्रथम पुस्तक है इसकी रचना पाणिनि द्वारा की गई।

 इससे मौर्य के पहले का इतिहास तथा मौर्य युगीन राजनीतिक व्यवस्था की जानकारी प्राप्त होती है। 

कल्याण की गार्गी - संहिता एक ज्योतिष ग्रंथ है फिर भी इसमें भारत में होने वाले यमन आक्रमण का उल्लेख मिलता है।

पंतजली पुष्यमित्र शुंग के पुरोहित थे  इनके महाभाष्य से शुंगो के इतिहास का पता चलता है।

इसके अलावा अगर हम गैर - धार्मिक स्त्रोतों की बात करे तो हमारे पास चणक्य का अर्थशास्त्र, मेगस्थनीज की इंडिका, पंतजलि का महाभाष्य, विकाशदत का मुद्राराक्षस , कालिदास की अभिज्ञान शंकुन्तलम  आदि हैं।


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3.Description Of Foreigner Travelers (विदेशी यात्रियों का विवरण)

प्राचीन  काल से ही भारत में कई जगहों से विदेशी यात्री आये जिन्होंने भारत में कुछ समय बिताया और उसके बाद यहीं से वापिस लौटकर अपने देशो में भारत के बारे में जमकर बखान किया। 


यूनानी रोमन लेखक टेसियस

यह ईरान का राजवेध था। भारत के संबंध में इसका विवरण आश्चर्यजनक कहानियों से परिपूर्ण होने के कारण अविश्वसनीय है।


हेरोडोटस

इसे इतिहास का पिता कहा जाता है इसकी पुस्तक हिस्टोरीका मैं पांचवी शताब्दी ईसा पूर्व के भारत फारस युद्ध का वर्णन किया है परंतु इसका विवरण भी अफवाहों पर आधारित है।


मेगास्थनीज

यह सेल्यूकस निकेटस का राजदूत था। यह चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में आया था।

इसने अपनी पुस्तक इंडिका में मौर्य युगीन समाज एवं संस्कृति के विषय में लिखा था ।



डाई मैक्स

डाई मैक्स सीरियन नरेश आंटियोक्स का राजदूत था।

यह  बिंदुसार के राज दरबार में आया था इसका विवरण भी मौर्य युग से संबंधित है।


डायोनिसियस

यह मिस्र नरेश टॉलमी फिलेडेेेल्फस का राजदूत था, 

यह अशोक के राजदरबार में आया था।


प्लीनी 

प्लीनी ने प्रथम शताब्दी में नेचुरल हिस्ट्री नामक पुस्तक लिखी।

इसमें भारतीय पशुओं, पेड़-पौधों, खनिज पदार्थों आदि का विवरण मिलता है।


पेरिप्लस ऑफ द इरीथरयान

इस पुस्तक के लेखक के बारे में जानकारी नहीं है। यह लेखक करीब 8 वीं ई. में हिंद महासागर की यात्रा पर आया था।

इसने उस समय के भारत के बंदरगाह तथा व्यापारिक वस्तुओं के बारे में जानकारी दी है।


चीनी लेखक

फाह्यान

यह चीनी यात्री गुप्त नरेश चंद्रगुप्त द्वितीय के दरबार में आया था।

इसने अपने विवरण में मध्य प्रदेश के समाज एवं संस्कृति के बारे में वर्णन किया है। इसने मध्य प्रदेश की जनता को सुखी एवं समृद्ध बताया है।


हेनसांग 

यह 629 ई. में चीन से भारतवर्ष के लिए प्रस्थान किया और लगभग 1 वर्ष की यात्रा के बाद सर्वप्रथम वह भारतीय राज्य कपीश पहुंचा।

भारत में 15 वर्षों तक ठहर कर 645 ई. में चीन लौट गया।

यह नालंदा जिला स्थित नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन करने तथा भारत से बौद्ध ग्रंथों को एकत्रित कर ले जाने के लिए आया था।

इसका भ्रमण वृत्तांत सि- यू-की  नाम से प्रसिद्ध है।इसमें 138 देशों का विवरण मिलता है। इसने हर्षकालीन समाज, धर्म तथा राजनीति के बारे में वर्णन किया है। इसके अनुसार सिंध का राजा शूद्र था।

नोट - हेनसांग  अध्ययन के समय नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य शीलभद्र थे।


सन्यूगन

यह 518 ई. में भारत आया। इसने अपने 3 वर्षों की यात्रा में बौद्ध धर्म की प्राप्तियां एकत्रित की।


इत्सिंग

यह सातवीं शताब्दी के अंत में भारत आया। इसने अपने विवरण में नालंदा विश्वविद्यालय, विक्रमशिला विश्वविद्यालय और अपने समय के भारत का वर्णन किया है।


अरबी लेखक

अलबरूनी

यह महमूद गजनवी के साथ भारत आया था। अरबी में लिखी गई इसकी पुस्तक किताब - उल - हिंद या तहकीक - ए - हिंद  (भारत की खोज)  इतीहासकारों के लिए एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है।

यह एक विस्तृत ग्रंथ है जो धर्म  और दर्शन, त्योहारों, खगोल विज्ञान, कीमियां, रीति-रिवाजों, प्रथाओं सामाजिक जीवन, मापन विधियां, पूर्तिकला कानून, माप तंत्र आदि के आधार पर 80 अध्यायों में विभाजित है।

इसमें राजपूतकालीन समाज, धर्म, रीति रिवाज और  राजनीति का जिक्र किया गया है।


इब्नबतूता

इसके द्वारा अरबी भाषा में लिखा गया वृतांत 14 वीं शताब्दी में भारतीय उपमहाद्वीप के सामाजिक तथा सांस्कृति के विषय में बहुत ही रोचक जानकारियां देता है । 

इस वृतांत को रिहुला भी कहा गया

1333 ई. में दिल्ली पहुंचने इसकी विधता से प्रभावित होकर सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक ने उसे दिल्ली का काजी नियुक्त किया


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भारत में कृषि 

भारत के उद्योग धंधे 

भारत की मिट्टियाँ 

भारत की नदियां 


4. पुरातत्व संबंधी साक्ष्य से मिलने वाली जानकारियां

1406 ई.पू. के अभिलेख बोगाज़कोई से वैदिक देवता मित्र, वरुण, इंद्र और नासत्य के नाम मिलते हैं

मध्य भारत में भागवत धर्म विकसित होने का प्रमाण यवन राजदूत होलियोडॉर्स के बेसनगर गरुड़ स्तंभ लेख से प्राप्त होता है।

सर्वप्रथम भारतवर्ष का जिक्र हाथीगुफा अभिलेख में है।

हिंदी सर्वप्रथम भारत पर होने वाले हुन आक्रमण की जानकारी भीतरी स्तंभ लेख से प्राप्त होती है।

सती प्रथा का पहला लिखित साक्ष्य एरण अभिलेख से प्राप्त होता है।

रेशम बुनकर की श्रेणियों की जानकारी मंदसौर अभिलेख से प्राप्त होती है।

कश्मीरी नवपाषणिक पुरास्थल बुरझाहोम से गर्तावास का साक्ष्य मिला है इनमें उतरने के लिए सीढ़ियां बनाई गई थी।

इतिहास के कितने स्रोत होते हैं?

इतिहासकार वी. डी. महाजन द्वारा, प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोतों को चार प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है - साहित्यिक स्रोत, पुरातात्विक स्रोत, विदेशी विवरण, एवं जनजातीय गाथायें।

भारतीय इतिहास के प्रमुख स्त्रोत कौन है?

हिन्दू धर्म में अनेक ग्रन्थ, पुस्तकें तथा महाकाव्य इत्यादि की रचना की गयी हैं, इनमे प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार से है – वेद, वेदांग, उपनिषद, स्मृतियाँ, पुराण, रामायण एवं महाभारत। इनमे ऋग्वेद सबसे प्राचीन है। इन धार्मिक ग्रंथों से प्राचीन भारत की राजव्यवस्था, धर्म, संस्कृति तथा सामाजिक व्यवस्था की विस्तृत जानकारी मिलती है।

इतिहास के स्रोतों से आप क्या समझते हैं?

इतिहास एक प्रकार से साक्ष्यों पर आधारित ज्ञान है। ऐसे साक्ष्य जिनसे हमें इतिहास के पुनर्निर्माण में सहायता मिलती है उन्हें हम ऐतिहासिक साक्ष्य की संज्ञा प्रदान करते हैं। बीते हुए युगों की घटनाओं के संबंध में जानकारी देने वाले साधनों (स्रोतों) को ऐतिहासिक स्रोत (Historical Sources) कहा जाता है।

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