इलाहाबाद का नाम प्रयागराज हो गया है परन्तु क्या आप जानते हैं कि पहले इलाहाबाद को प्रयाग नाम से बुलाया जाता था. कैसे इसका नाम इलाहाबाद हुआ और अब फिर से क्यों प्रयागराज रखा गया है. आइये इस लेख के माध्यम से अध्ययन करते हैं .
Why Allahabad is renamed as Prayagraj?
हम सब जानते हैं कि इलाहबाद का नाम अब प्रयागराज हो गया है. परन्तु क्या आप इलाहाबाद नाम के पीछे के इतिहास के बारे में जानते हैं, इसका नाम प्रयागराज क्यों पड़ा. आइये इस लेख के माध्यम से अध्ययन करते हैं.
प्राचीन समय में इलाहबाद (अब प्रयागराज) का नाम प्रयाग था. यह उत्तरप्रदेश के प्रमुख धार्मिक नगरों में से एक माना जाता है. अगर इतिहास पर नज़र डाले तो कहा जाता है कि ब्राह्मांड की शुरुआत प्रयाग से हुई थी. इलाहाबाद (अब प्रयागराज) को संगम नगरी, कुम्भ नगरी, तीर्थराज भी कहा जाता है. यह गंगा, यमुना तथा गुप्त सरस्वती नदियों पर स्थित है.
सबसे पहले अध्ययन करते हैं कि इस शहर का नाम प्रयाग कैसे पड़ा था?
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पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यहां ब्रह्मा जी ने सृष्टि का कार्य पूर्ण करने के बाद यज्ञ किया था. इसी प्रथम यज्ञ के प्र और याग अर्थात यज्ञ से मिलकर प्रयाग बना और इस स्थान का नाम प्रयाग पड़ा जहां ब्रह्मा जी ने पहला यज्ञ संपन्न किया था. प्रयाग स्थल पवित्रतम नदी गंगा और यमुना के संगम पर स्थित है. गुप्त रूप से यहीं पर सरस्वती नदी मिलती है. अत: इसलिए इस संगम को त्रिवेणी संगम भी कहा जाता है और यहां प्रत्येक बारह वर्ष में कुंभ मेला लगता है.
हम आपको बता दें कि प्रयाग सोम, वरुण तथा प्रजापति की जन्मस्थली भी है. इसका वर्णन वैदिक तथा बौद्ध शास्त्रों में भी किया गया है.
संगम के करीब का क्षेत्र जो अब झूंसी क्षेत्र है वह चंद्रवंशी (चन्द्र के वंशज) राजा पुरुरव का राज्य था. यहां तक कि कौशाम्भी जो इसके पास ही था वो भी वत्स और मौर्य शासन के दौरान समृद्धि से उभर रहा था.
चीनी यात्री हुआन त्सांग ने 643 ई०पू० में पाया कि कई हिंदुओं प्रयाग में निवास करते थे क्योंकि वह इस जगह को अति पवित्र मानते थे.
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अकबर के शासन के दौरान प्रयाग का नाम क्या पड़ा?
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अकबरनामा, आईने अकबरी व अन्य मुगलकालीन ऐतिहासिक पुस्तकों से ज्ञात होता है कि अकबर ने वर्ष 1575 के आसपास किले की नींव रखी थी जिसका नाम इलाहाबास रखा.
अकबरनामा के अनुसार, "लंबे समय तक [अकबर की] इच्छा पियाग शहर में एक महान शहर को बसाने की थी, जहां गंगा और यमुना नदियां मिलती हैं, जो भारत के लोगों द्वारा इसे सम्मान के साथ माना जाता है, और देश के लोग यहां तपस्या के लिए आते हैं, यह तीर्थयात्रा की जगह है. इसलिए वह यहां किला बनाने के लिए इच्छुक थे".
अकबर इस नगर की धार्मिक और सांस्कृतिक ऐतिहासिकता से काफी प्रभावित हुआ था और तकरीबन 1583 में अकबर का किला बनकर तैयार हुआ और उसने प्रयाग में एक बड़ा शहर बसाया और संगम की अहमियत को देखते हुए इसका नाम 'अल्लाह का शहर' या ‘इलाहाबास’ रखा. यह उनका सबसे बड़ा किला माना जाता है. बाद में शाहजहां के समय में यह इलाहाबाद किला कहा जाने लगा. फिर जब भारत पर अंग्रेजों का शासन हुआ तो रोमन लिपि में इसे 'अलाहाबाद' लिखा जाने लगा.
किले के बाहर राजकुमार खुसरो, सम्राट जहांगीर के बेटे का मकबरा है. यह किला आज भारतीय सेना के नियंत्रण में है.
ब्रिटिशों का शासन
1801 ई० में अवध के नवाब ने इस शहर को ब्रिटिश शासन को सौंप दिया और ब्रिटिश सेना ने इस किले को अपने सैन्य उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया.
1857 ई० की क्रांति में यह शहर भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का गढ़ बन गया था. ईस्ट इंडिया कंपनी ने प्रथम संग्राम 1857 के बाद मिंटो पार्क में आधिकारिक तौर पर भारत को ब्रिटिश सरकार को सौंप दिया. इसके बाद शहर का नाम इलाहाबाद रखा गया और इसे आगरा-अवध संयुक्त प्रांत की राजधानी बना दिया गया.
1868 ई० में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की स्थापना हुई और यह न्याय का गढ़ बन गया.
1887 ई० में 'इलाहाबाद विश्वविद्यालय' जिसे पूरब का ऑक्सफ़ोर्ड कहा जाता था कि स्थापना हुई. अंग्रेजों के अंतर्गत, इलाहाबाद 1904 से 1949 तक संयुक्त प्रांतों की राजधानी रही थी.
राजकुमार अल्फ़्रेड ड्यूक ऑफ़ एडिनबरा के इलाहाबाद आगमन को यादगार बनाने के लिए अल्फ़्रेड पार्क का निर्माण किया गया. चंद्रशेखर आज़ाद की शहीद स्थली के रूप में इस पार्क का नाम उनके नाम पर रखा गया.
इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्रयागराज की अपनी धार्मिक ऐतिहासिकता भी रही है. संगम तट पर लगने वाला कुंभ मेला अपने में अनोखा है. ऐसी मान्यता है कि यहां पर स्नान करने वालों को काफी पुण्य मिलता है. तो अब आपको प्रयागराज के इतिहास के बारे में ज्ञात हो गया होगा कि पहले इसका नाम प्रयाग था और फिर इलाहाबाद हुआ और अब प्रयागराज है क्योंकि यह समस्त तीर्थों में सर्वोत्तम और उत्क्रष्ट तीर्थ है और देवताओं की यज्ञभूमि होने के कारण इसे प्रयाग कहा गया है. अपनी प्राचीन सभ्यता को देखते हुए इलाहाबाद का नाम प्रयागराज रखा गया है.
लखनऊ. उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने इलाहबाद का नाम फिर से प्रयागराज कर दिया है। यानी इस शहर को वही प्राचीनतम नाम फिर मिल गया है जो करीब चार सौ साल पहले था। योगी कैबिनेट ने मंगलवार को एक प्रस्ताव पारित कर मूल नाम प्रयागराज पर मुहर लगा दी और राज्यपाल भी इसे मंजूर कर चुके हैं। अब तमाम सरकारी विभागों को सूचित किया जाएगा कि वो इलाहबाद की जगह प्रयागराज नाम का ही इस्तेमाल करें। वैसे, योगी ने 14 अक्टूबर को ही इस बात का ऐलान कर दिया था कि इलाहाबाद का नाम सरकार प्रयागराज करने जा रही है।
अर्द्ध कुंभ के पहले फैसला
अगले साल प्रयागराज में अर्द्ध कुंभ लगने जा रहा है और धार्मिक दृष्टि से भी इसके मायने अहम हैं। यह अर्द्ध कुंभ अगले साल जनवरी में लगेगा। नाम बदले जाने को लेकर सियासी बयान आ रहे हैं और आ सकते हैं। लेकिन, ये सही है कि दुनिया के प्राचीनतम शहरों में से एक इस शहर का नाम मूल रूप से प्रयाग ही था। इसका जिक्र ऋगवेद में भी मिलता है।
फिर इलाहाबाद कैसे हुआ?
प्राप्त जानकारी के मुताबिक, मुगल शासक अकबर ने जब इस क्षेत्र पर कब्जा किया तो उसने यहां एक किले का निर्माण कराया। इसके आसपास कुछ आबादी भी बसी। कालांतर में इसका नाम ‘इलाहाबास’ कर दिया गया। कहा जाता है कि अकबर इस शहर से बहुत प्रभावित था। इसकी वजह संगम था। यानी जीवन दायिनी गंगा, यमुना और सरस्वती की संगम स्थली। इतिहासकारों का कहना है कि अकबर के शासनकाल में कई लेख लिखने वाले अबुल फजल ने भी पियाग शब्द का जिक्र किया है जिसका मतलब प्रयाग ही है। धार्मिक कथाओं में भी प्रयाग के कुछ उल्लेख मिलते हैं। कहा जाता है कि ब्रम्हा, शिव और विष्णु ने यहां पूजा अर्चना की थी। ब्रिटिश शासनकाल में इसका नाम इलाहाबाद से अलाहाबाद कर दिया गया। इस दौर में यह प्रशासनिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण शहर था। अगस्त में योगी सरकार ने मुगल सराय स्टेशन का नाम बदलकर पंडित दीनदयाल उपाध्याय कर दिया था।