वैसे तो महाभारत में ऐसे कई मौके आए जबकि श्रीकृष्ण की जान जा सकती थी, लेकिन उन्होंने बहुत ही चतुराई और शक्ति से खुद को बचाए रखा। एक बार वे कालयवन के चंगुल से बच निकले थे। दूसरी बार जब द्रौपदी का स्वयंवर होने वाला था, तो श्रीकृष्ण अकेले ही थे और वह भी निहत्थे अपने कट्टर दुश्मन जरासंध के पास उन्हें समझाने पहुंच गए थे। इसी तरह एक बार जब उन्हें हस्तिनापुर पांडवों का शांति प्रस्ताव लेकर अकेले ही जाना था तब उन्होंने दो कार्य किए थे। जानिए वे कार्य क्या थे?
पहला कार्य :
कौरव और पांडवों के बीच युद्ध को रोकने के अंतिम प्रयास के तौर पर भगवान श्रीकृष्ण ने हस्तिनापुर जाने का निर्णय लिया लेकिन वहां शकुनि और दुर्योधन अपनी कुटिल नीति के तहत श्रीकृष्ण को मारना चाहते थे ताकि पांडवों का सबसे मजबूत पक्ष समाप्त हो जाए।
ऐसे में श्रीकृष्ण यह जानते थे कि हस्तिनापुर में मैं यदि कहीं सुरक्षित रह सकता हूं तो वह है विदुर का घर। विदुर की पत्नी एक यदुवंशी थी। दूसरी बात यह कि विदुर का दुर्योधन और शकुनि ने कई बार अपमान किया था, तो विदुर भी कहीं-न-कहीं दुर्योधन से चिढ़ते थे। दुर्योधन ने जब विदुर का अपमान किया था तो उन्होंने भरी सभा में ही यह निर्णय ले लिया था कि यदि वो उस पर विश्वास ही नहीं करता तो वे भी युद्ध नहीं लड़ना चाहते। ऐसा कहकर विदुर में युद्ध नहीं लड़ने का संकल्प ले लिया था।
जब श्रीकृष्ण रात को विदुर के यहां रुके तो विदुर ने श्रीकृष्ण को समझाया था कि आप यहां क्यों आ गए? वह दुष्ट दुर्योधन किसी की नहीं सुन रहा है। वह आपका भी अपमान जरूर करेगा। श्रीकृष्ण जानते थे कि दुर्योधन भरी सभा में मेरा भी अपमान कर सकता है और उसके बाद परिस्थितियां बदल जाएंगी। ऐसे में हस्तिनापुर में उन्होंने विदुर के यहां रहने का फैसला किया, क्योंकि विदुर के पास एक ऐसा हथियार था, जो अर्जुन के 'गांडीव' से भी कई गुना शक्तिशाली था। विदुर के सहयोग से ही श्रीकृष्ण ने हस्तिनापुर और राजमहल में ससम्मान प्रवेश किया।
दूसरा कार्य :
भगवान कृष्ण सात्यकि की योग्यता और निष्ठा पर बहुत विश्वास करते थे। जब वे पांडवों के शांतिदूत बनकर हस्तिनापुर गए, तो अपने साथ केवल सात्यकि को ले गए। कौरवों के सभाकक्ष में प्रवेश करने से पहले उन्होंने सात्यकि से कहा कि वैसे तो मैं अपनी रक्षा करने में पूर्ण समर्थ हूं, लेकिन यदि कोई बात हो जाए और मैं मारा जाऊं या बंदी भी बना लिया
जाऊं, तो फिर हमारी सेना दुर्योधन की सहायता के वचन से मुक्त हो जाएगी और ऐसी स्थिति में तुम उसके (नारायणी सेना के) सेनापति रहोगे और उसका कोई भी उपयोग करने के लिए स्वतंत्र रहोगे। सात्यकि समझ गया कि कृष्ण क्या कहना चाहते हैं इसलिए वह पूर्ण सावधान होकर सभाकक्ष के दरवाजे के बाहर ही डट गया।
सात्यकि पर विश्वास के कारण ही दुर्योधन के व्यवहार को देखकर सभाकक्ष में कृष्ण ने कौरवों को धमकाया था कि दूत के रूप में आए हुए मेरे साथ यहां कोई अनिष्ट करने से पहले आपको यह सोच लेना चाहिए कि जब हमारी यादव
सेना के पास यह समाचार पहुंचेगा, तो वह हस्तिनापुर की सड़कों पर क्या गजब ढाएगी। यह सुनते ही सारे कौरव कांप गए और शकुनि सहित उन्होंने दुर्योधन को कोई मूर्खता करने से रोक दिया। तब श्रीकृष्ण ने शांति प्रस्ताव के तहत कौरवों से पांडवों के लिए 5 गांव मांगे थे, लेकिन दुर्योधन ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया था।
संदर्भ : महाभारत उद्योग पर्व
These NCERT Solutions for Class 7 Hindi Vasant & Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 26 शांतिदूत श्रीकृष्ण are prepared by our highly skilled
subject experts. Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 26 पाठाधारित प्रश्न लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3.
श्रीकृष्ण किस उद्देश्य से हस्तिनापुर गए थे?
उत्तर:
श्रीकृष्ण शांति वार्तालाप करने के उद्देश्य से हस्तिनापुर गए थे।
श्रीकृष्ण को दुःशासन के महल में क्यों ठहराया गया था?
उत्तर:
श्रीकृष्ण को दुःशासन के महल में इसलिए ठहराया गया था क्योंकि यह महल दुर्योधन के महल से
ऊँचा और सुंदर था। धृतराष्ट्र के आदेशानुसार उन्हें उसी भवन में ठहराया गया था।
श्रीकृष्ण ने धृतराष्ट्र की सभा में क्या कहा?
उत्तर:
श्रीकृष्ण ने धृतराष्ट्र की सभा में पांडवों की माँग रखने के बाद उन्होंने धृतराष्ट्र की ओर देखकर कहा- राजन! पांडव शांतिप्रिय हैं। लेकिन वे युद्ध के लिए भी तैयार हैं। पांडव आपको पिता स्वरूप मानते हैं। ऐसा उपाय करें जिससे आप भाग्यशाली बनें।
प्रश्न 4.
भोजन का निमंत्रण मिलने पर श्रीकृष्ण ने दुर्योधन से क्या कहा?
उत्तर:
भोजन का
निमंत्रण मिलने पर श्रीकृष्ण ने कहा- राजन जिस उद्देश्य को लेकर यहाँ आया हूँ, वह पूरा हो जाए, तब मुझे भोजन का निमंत्रण देना उचित होगा।
प्रश्न 5.
दुःशासन का भवन कैसा था?
उत्तर:
दुःशासन का भवन दुर्योधन के भवन से अधिक ऊँचा और सुंदर था।
प्रश्न 6.
विदुर को किस बात का भय था?
उत्तर:
विदुर दुर्योधन के स्वभाव से भली-भाँति परिचित थे। उन्हें डर था कि श्रीकृष्ण के वहाँ जाने पर वह कोई न कोई कुचक्र रचकर उनकी प्राणों को नुकसान पहुँचाने का प्रयास करेगा। इसलिए उन्होंने श्रीकृष्ण
से कहा कि उनकी सभा में आपका जाना उचित नहीं है।
प्रश्न 7.
रास्ते में श्रीकृष्ण ने कहाँ रात का विश्राम किया?
उत्तर:
रास्ते में श्रीकृष्ण ने कुशस्थल नामक स्थान पर एक रात को विश्राम किया।
प्रश्न 8.
श्रीकृष्ण ने दुर्योधन को क्या समझाया?
उत्तर:
श्रीकृष्ण ने दुर्योधन को समझाया कि मैं इतना ही कहना चाहता हूँ कि पांडवों को आधा राज्य लौटा दो और उनके साथ संधि कर लो। यदि यह बात हो गई तो स्वयं पांडव तुम्हें युवराज और धृतराष्ट्र को महाराज के रूप में सहर्ष स्वीकार कर लेंगे।
प्रश्न 9.
गांधारी को सभा में क्यों बुलाया गया?
उत्तर:
गांधारी को सभा में दुर्योधन को समझाने के लिए बुलाया गया क्योंकि धृतराष्ट्र यह जानते थे कि गांधारी की समझ बहुत स्पष्ट है। वह दूर की सोचती है। हो सकता है, उनकी बातें दुर्योधन मान ले।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
कुंती ने कर्ण से क्या कहा?
उत्तर:
कुंती ने गदगद स्वर में कर्ण को रहस्य बताते हुए कहा- ‘कर्ण! यह न समझो कि तुम केवल सूत-पुत्र ही हो। न तो राधा तुम्हारी माँ है। न ही अधिरथ तुम्हारे
पिता। तुम राजकुमारी पृथा के कोख से उत्पन्न सूर्य के अंश हो। तुम दुर्योधन के पक्ष में होकर अपने भाइयों से शत्रुता कर रहे हो। तुम अर्जुन के साथ मिल जाओ, बहादुरी के साथ लड़ो और राज्य करो। धृतराष्ट्र के लड़कों के अधीन रहना तुम्हारे लिए अपमान की बात है।
प्रश्न 2.
कर्ण ने कुंती से क्या कहा?
उत्तर:
कर्ण माता कुंती की बात सुनकर बोला- माँ यदि इस समय मैं दुर्योधन का साथ छोड़कर पांडवों की तरफ़ चला गया तो लोग मुझे कायर कहेंगे। आज जब युद्ध होना निश्चित हो गया है तो मेरा कर्तव्य हैं कि मैं
पांडवों के विरुद्ध लड़ें। मैं असत्य नहीं बोलूँगा। अतः तुम मुझे क्षमा कर दो। लेकिन हाँ मैं तुम्हारी बात को भी एकदम व्यर्थ नहीं जाने दूंगा। मैं तुम्हें वचन देता हूँ कि अर्जुन को छोड़कर किसी पांडव के प्राण नहीं लूंगा। युद्ध में या तो अर्जुन मारा जाएगा या तो मैं मारा जाऊँगा। तुम्हारे लिए पाँच पुत्र हर हालत में रहेंगे। अतः तुम चिंता न करो।
Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 26
श्रीकृष्ण सात्यकि के साथ शांति की बातचीत करने के उद्देश्य से हस्तिनापुर आए। यह समाचार सुनकर कि श्रीकृष्ण आए हैं धृतराष्ट्र ने उनके स्वागत की भव्य तैयारियाँ करवाईं। दुःशासन का भवन दुर्योधन के भवन से भी ऊँचा था। अतः श्रीकृष्ण को वहीं ठहरने की व्यवस्था की गई। श्रीकृष्ण धृतराष्ट्र से मिलकर विदुर के घर गए। वहाँ कुंती भी श्रीकृष्ण के इंतजार में बैठी थी। श्रीकृष्ण ने कुंती को सांत्वना दी और वे दुर्योधन के पास गए। दुर्योधन ने उनका शानदार स्वागत किया और उनको भोजन का निमंत्रण दिया।
श्रीकृष्ण ने दुर्योधन से कहा- राजन् जिस उद्देश्य से मैं यहाँ आया हूँ वह बिना पूरा हुए भोजन का न्यौता देना उचित नहीं है। ऐसा कहकर श्रीकृष्ण विदुर के पास चले गए। वहीं पर उन्होंने भोजन और विश्राम किया।
इसके बाद विदुर ने श्रीकृष्ण को अगाह करते हुए कहा कि कौरवों की सभा में आपका जाना उचित नहीं। श्रीकृष्ण ने कहा- आप मेरे प्राणों की चिंता मत कीजिए। श्रीकृष्ण विदुर के साथ धृतराष्ट्र के भवन में गए और बड़ों को प्रणाम करके आसन पर बैठ गए। इसके बाद श्रीकृष्ण ने पांडवों की माँग रखी। उन्होंने बताया कि राजन पांडव शांति प्रिय हैं लेकिन युद्ध के लिए भी तैयार हैं। पांडव आपको पिता स्वरूप मानते हैं। ऐसा उपाय करें जिससे आप भाग्यशाली बने।
यह सुनकर धृतराष्ट्र सभासदों से बोले-मैं तो यही चाहता हूँ जो श्रीकृष्ण को प्रिय है। इस पर श्रीकृष्ण दुर्योधन से बोले-“मैं चाहता हूँ कि पांडवों का आधा राज्य लौटा दो और उनके साथ समझौता कर लो। अगर ऐसा होगा तो पांडव स्वयं तुम्हें युवराज और धृतराष्ट्र को महाराज के रूप में स्वीकार कर लेंगे।
सारी सभा ने दुर्योधन को समझाना चाहा। युद्ध के भयावह परिणामों का वर्णन किया। दुर्योधन द्वारा पांडवों पर किए गए अत्याचारों का स्मरण दिलाया। यह देखकर दुःशासन ने कहा- भाई, ये लोग आपको बंदी बनाना चाहते हैं। अतः आप यहाँ से निकल चलें। दुर्योधन भाइयों के साथ सभा भवन से निकल गया।
इसी बीच धृतराष्ट्र ने सभा में गांधारी को बुलाया। दुर्योधन को भी सभा में दुबारा बुलाया। गांधारी ने दुर्योधन को कई तरीके से समझाने की कोशिश किया, किंतु उसने माँ की एक भी बात नहीं सुनी और पुनः सभा से बाहर निकल गया। बाहर निकलकर दुर्योधन अपने मित्रों के साथ मिलकर राजदूत कृष्ण को पकड़ने का कुचक्र करने लगा, किंतु सफलता न मिली। सभा से निकलकर श्रीकृष्ण कुंती के पास पहुंचे और उनको सभा का सारा हाल सुनाया।
युद्ध की आशंका से कुंती काफ़ी चिंतित हो गई और वह सीधे कर्ण के पास गई। कर्ण जब मध्याह्न के बाद पूजा से उठा ही था तो कुंती को देखकर आश्चर्य चकित हो गया। पूछा- आज्ञा दीजिए, मैं आपकी क्या सेवा करूँ। कुंती ने कर्ण को असलियत बताते हुए कहा- तुम अधिरथ के पुत्र नहीं बल्कि राजकुमारी पृथा की कोख से पैदा हुआ है। तुम्हारे पिता सूर्य हैं। तुम दुर्योधन के पक्ष में होकर अपने भाइयों से ही शत्रुता कर रहे हो। तुम अर्जुन के साथ मिलकर वीरता से लड़ो और राज्य करो। कर्ण माता कुंती की बात सुनकर बोला, माँ यदि इस समय मैं दुर्योधन का साथ छोड़कर पांडवों के साथ मिल गया तो लोग मुझे कायर कहेंगे।
कर्ण ने दुर्योधन का साथ देने की अपनी लाचारी कुंती को समझा दिया, किंतु कुंती को एक भरोसा भी दिया। उसने कहा, मैं, तुम्हारी बात को एकदम व्यर्थ नहीं जाने दूंगा। मैं आपको वचन देता हूँ कि अर्जुन को छोड़कर और किसी पांडव के प्राण नहीं लूँगा। इस युद्ध में या तो मैं मारा जाऊँगा या अर्जुन मारा जाएगा। तुम्हारे पाँच पुत्र हर हालत में रहेंगे। अतः तुम चिंता न करो। शेष चारों पांडव मुझे चाहे जितना तंग करें मैं उनको नहीं मारूँगा। माँ तुम्हारे तो पाँच पुत्र हर हाल में रहेंगे। चाहे मैं मर जाऊँ, चाहे अर्जुन ! हम दोनों में से एक बचेगा और बाकी चार तो रहेंगे ही। तुम चिंता न करो।
कुंती कर्ण की बातें सुनकर विचलित हो गई। इसके बाद उन्होंने गले से लगाते हुए बोली, तुम्हारा कल्याण हो। कर्ण को आशीर्वाद देकर कुंती महल में चली गई।
शब्दार्थ:
पृष्ठ संख्या-65- उद्देश्य – लक्ष्य, विश्राम – आराम, ठहरना – रुकना, प्रतीक्षा – इंतज़ार।
पृष्ठ संख्या-66- स्मरण – याद, सांत्वना – ढांढस, कुचक्र – षड्यंत्र, स्वीकृत –
मान्य, आग्रह – निवेदन, सर्वनाश – पूरा नाश, वक्तव्य – बात।
पृष्ठ संख्या-67- कल्पना – अनुमान, आरूढ़ – चढ़कर बैठकर, कुलनाशी – कुल का नाश करने वाला, मध्याह्न – दोपहर, उत्तरीय – पुरुषों द्वारा कंधों से कमर तक ओढ़ा जाने वाला वस्त्र, शिष्टतापूर्वक – शालीनता से, पृथा कुंती, आश्रित – अधीन, मझधार – बीच में।