प्रश्न 3: अगर संतरी कहता कि “दीवार इसलिए गिरी क्योंकी पोली थी” तो महाराज किस किस को बुलाते? आगे क्या होता?
उत्तर: फिर मिस्त्री ही अपराधी साबित होता और उसे फाँसी हो जाती।
शब्दों की छानबीन
प्रश्न 1: नीचे लिखे वाक्य पढ़ो। जिन शब्दों को मोटे अक्षरों में लिखा गया है, उन्हें आजकल कैसे लिखते हैं, यह भी बताओ।
- न जाने की अंधेर हो कौन छन में।
- गुरु ने कहा तेज ग्वालिन न भग री।
- इसी से गिरी, यह न मोटी घनी थी।
- ये गलती ने मेरी, यह गलती बिरानी।
- न ऐसी महूरत बनी बढ़िया जैसी।
उत्तर: (a) क्षण, (b) भाग, (c) बहुत, (d) दूसरे की, (e) मुहूर्त
प्रश्न 2: चमाचम थी सड़कें … इस पंक्ति में चमाचम शब्द आया है। नीचे लिखे शब्दों को पढ़ो और दिए गए वाक्यों में ये शब्द भरो
गुरु और चेला कविता guru aur chela poem in hindi class 5 गुरु और चेला कविता का अर्थ कविता की व्याख्या गुरु और चेला कविता Ch 12 गुरु और चेला Guru Aur Chela Hindi, Grade 5 CBSE Easy explanation गुरु और चेला Guru Aur Chela Chapter 12 Class 5 Hindi With Question & Answers NCERT गुरु और चेला Summary Class 5 Hindi गुरु और चेला कविता का सारांश Class 5 Hindi Chapter 12 Guru Aur Chela Summary गुरु और चेला का प्रश्न उत्तर गुरु और चेला कविता का अर्थ कविता की व्याख्या
गुरु और चेला कविता
गुरु और चेला कविता Ch 12 गुरु और चेला Guru Aur Chela Hindi, Grade 5 CBSE Easy explanation गुरु और चेला Guru Aur Chela Chapter 12 Class 5 Hindi With Question & Answers NCERT गुरु और चेला Summary Class 5 Hindi गुरु और चेला कविता का सारांश Class 5 Hindi Chapter 12 Guru Aur Chela Summary गुरु और चेला का प्रश्न उत्तर
गुरु और चेला कविता का अर्थ कविता की व्याख्या
1.गुरु एक थे और था एक चेला,
चले घूमने पास में था न धेला |
चले चलते-चलते मिली एक नगरी,
चमाचम थी सड़कें चमाचम थी डगरी।
मिली एक ग्वालिन धरे शीश गगरी,
गुरु ने कहा तेज़ ग्वालिन न भग री |
बता कौन नगरी, बता कौन राजा,
कि जिसके सुयश का यहाँ बजता बाजा |
व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘गुरु और चेला’ कविता से ली गई हैं, जो कवि 'सोहन लाल द्विवेदी' के द्वारा रचित है | कवि इन पंक्तियों के माध्यम से कहना चाहते हैं कि एक गुरु थे और उनका एक चेला था | इनके पास पैसा अर्थात् कोई धन न था | एक रोज़ दोनों घूमने निकल पड़े | चलते-चलते दोनों एक नगर में पहुँच गए | नगर के रास्ते चमक रहे थे | तभी उन्हें एक ग्वालिन दिख जाती है | उसके सिर पर एक घड़ा था | गुरु ने ग्वालिन से पूछा कि यह कौन सी नगरी है ग्वालिन ? यहाँ का राजा कौन है ? आख़िर, किसका बोल-बाला है यहाँ पर ?
2. कहा बढ़के ग्वालिन ने महाराज पंडित,
पधारे भले हो यहाँ आज पंडित |
यह अंधेर नगरी है अनबूझ राजा,
टके सेर भाजी, टके सेर खाजा।
गुरु ने कहा-जान देना नहीं है,
मुसीबत मुझे मोल लेना नहीं है |
न जाने की अंधेर हो कौन छन में ?
यहाँ ठीक रहना समझता न मन में |
व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘गुरु और चेला’ कविता से ली गई हैं, जो कवि 'सोहन लाल द्विवेदी' के द्वारा रचित है | कवि इन पंक्तियों के माध्यम से कहना चाहते हैं कि गुरु ने जब ग्वालिन से पूछा कि यह कौन सी नगरी है और यहाँ का राजा कौन है ? तो ग्वालिन ने कहा महाराज पंडित, भले ही आप यहाँ आए हैं, लेकिन यह अंधेर नगरी है | इसका राजा मूर्ख है | यहाँ सब कुछ टके सेर मिलता है, चाहे वह भाजी हो या खाजा | यह सुनकर गुरु घबरा गए | उनको लगा कि यहाँ रहना ख़तरे से खाली नहीं है | जाने किस वक़्त मुसीबत हमारे पीछे पड़ जाए | अत: गुरु का मन कहता है कि यहाँ से चले जाना ही उचित होगा |
3. गुरु ने कहा किंतु चेला न माना,
गुरु को विवश हो पड़ा लौट जाना |
गुरुजी गए, रह गया किंतु चेला,
यही सोचता हूँगा मोटा अकेला |
चला हाट को देखने आज चेला,
तो देखा वहाँ पर अजब रेल-पेला |
टके सेर हल्दी, टके सेर जीरा,
टके सेर ककड़ी टके सेर खीरा |
व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘गुरु और चेला’ कविता से ली गई हैं, जो कवि 'सोहन लाल द्विवेदी' के द्वारा रचित है | कवि इन पंक्तियों के माध्यम से कहना चाहते हैं कि गुरु, मूर्ख राजा की अंधेर नगरी को छोड़कर चेला से चलने को कहे | किन्तु, चेला नहीं माना | गुरुजी विवश होकर चले गए और चेला वहीं अकेला रह गया | जब एकदिन चेला वहाँ का बाज़ार देखने गया, तो वह जानकर हैरान रह गया कि वहाँ सब कुछ टके सेर बिक रहा था | चाहे वह हल्दी हो, जीरा हो, ककड़ी हो, या फिर खीरा |
4. टके सेर मिलती है रबड़ी मलाई,
बहुत रोज़ उसने मलाई उड़ाई |
सुनो और आगे का फिर हाल ताज़ा,
थी अंधेर नगरी, था अनबूझ राजा |
बरसता था पानी, चमकती थी बिजली,
थी बरसात आई, दमकती थी बिजली |
गरजते थे बादल, झमकती थी बिजली,
थी बरसात गहरी, धमकती थी बिजली |
व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘गुरु और चेला’ कविता से ली गई हैं, जो कवि 'सोहन लाल द्विवेदी' के द्वारा रचित है | कवि इन पंक्तियों के माध्यम से कहना चाहते हैं कि उस मूर्ख राजा के अंधेर नगरी में सबकुछ टके सेर ही मिलता था | चेले ने खूब रबड़ी मलाई खाई | तत्पश्चात् कवि मूर्ख राजा की अंधेर नगरी का आगे का ताज़ा हाल सुना रहे हैं | उस साल वहाँ खूब बारिश हुई थी | खूब बिजली चमकती थी और खूब बादल गरजते थे |
5. गिरी राज्य की एक दीवार भारी,
जहाँ राजा पहुँचे तुरंत ले सवारी |
झपट संतरी को डपट कर बुलाया,
गिरी क्यों यह दीवार, किसने गिराया ?
कहा संतरी ने-महाराज साहब,
न इसमें खता मेरी, ना मेरा करतब !
यह दीवार कमज़ोर पहले बनी थी,
इसी से गिरी, यह न मोटी घनी थी |
व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘गुरु और चेला’ कविता से ली गई हैं, जो कवि 'सोहन लाल द्विवेदी' के द्वारा रचित है | कवि इन पंक्तियों के माध्यम से कहना चाहते हैं कि बारिश की वजह से राज्य की एक दीवार गिर गई थी | राजा तुरंत वहाँ पहुँच गए | उन्होंने संतरी को बुलाया और उससे दीवार गिरने का कारण पूछा | संत्री ने फ़ौरन जवाब दिया कि दीवार उसकी गलती से नहीं गिरी है | दरअसल, दीवार कमज़ोर बनी थी | यह मोटी और घनी भी नहीं थी | इसीलिए शायद गिर गई |
6. खता कारीगर की महाराज साहब,
न इसमें खता मेरी, या मेरा करतब !
बुलाया गया, कारीगर झट वहाँ पर,
बिठाया गया, कारीगर झट वहाँ पर |
कहा राजा ने कारीगर को सजा दो,
खता इसकी है आज इसको कज़ा दो |
कहा कारीगर ने, ज़रा की न देरी,
महाराज! इसमें खता कुछ न मेरी |
व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘गुरु और चेला’ कविता से ली गई हैं, जो कवि 'सोहन लाल द्विवेदी' के द्वारा रचित है | कवि इन पंक्तियों के माध्यम से कहना चाहते हैं कि राजा ने जब संतरी से दीवार गिरने का कारण पूछा तो उसने कहा कि दीवार कमज़ोर बनी थी इसीलिए गिर गई | इसमें गलती उसकी नहीं बल्कि कारीगर की है | कारीगर को फ़ौरन बुलाया गया | राजा ने कारीगर को सजा देने का आदेश दे दिया | कारीगर बिना देरी किए बोल पड़ा, महाराज ! इसमें मेरी कोई गलती नहीं है, मुझे क्षमा करें |
7. यह भिश्ती की गलती यह उसकी शरारत,
किया गारा गीला उसी की यह गफलत |
कहा राजा ने जल्द भिश्ती बुलाओ |
पकड़ कर उसे जल्द फाँसी चढ़ाओ |
चला आया भिश्ती, हुई कुछ न देरी,
कहा उसने-इसमें खता कुछ न मेरी |
यह गलती है जिसने मशक को बनाया,
कि ज़्यादा ही उसमें था पानी समाया |
व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘गुरु और चेला’ कविता से ली गई हैं, जो कवि 'सोहन लाल द्विवेदी' के द्वारा रचित है | कवि इन पंक्तियों के माध्यम से कहना चाहते हैं कि जब कारीगर ने तुरंत अपना बचाव करते हुए राजा से कहा कि यह उसकी नहीं बल्कि भिश्ती की गलती है, क्योंकि उसी ने गारा गीला कर दिया था | तब राजा ने हुक्म दिया कि भिश्ती को फ़ौरन बुलाकर उसे फाँसी पर चढ़ा दिया जाए | भिश्ती आते ही अपना बचाव किया और कहा इसमें मेरी गलती नहीं है हुजूर | बल्कि मशक बनाने वाले की गलती है | उसी ने मशक में पानी ज्यादा मिला दिया था, जिसके कारण दीवार कमज़ोर हो गई और गिर गई |
8. मशक वाला आया, हुई कुछ न देरी,
कहा उसने इसमें खता कुछ न मेरी |
यह मंत्री की गलती, है मंत्री की गफ़लत,
उन्हीं की शरारत, उन्हीं की है हिकमत |
बड़े जानवर का था चमड़ा दिलाया,
चुराया न चमड़ा मशक को बनाया |
बड़ी है मशक खूब भरता है पानी,
ये गलती न मेरी, यह गलती बिरानी |
व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘गुरु और चेला’ कविता से ली गई हैं, जो कवि 'सोहन लाल द्विवेदी' के द्वारा रचित है | कवि इन पंक्तियों के माध्यम से कहना चाहते हैं कि भिश्ती के कहने पर मशक वाले को बुलाया गया |उसने भी अपना बचाव करते हुए कहा दीवार गिरने में मेरी नहीं बल्कि मंत्री की गलती है | उन्होंने ही मुझे बड़े जानवर का चमड़ा दिलवा दिया था | मैंने चमड़ा चुराया नहीं और एक बड़ी मशक बना दिया था | बड़ी मशक होने की वजह से उसमें पानी ज्यादा भरता है | इसलिए, यह गलती मेरी नहीं बल्कि मंत्री का है महाराज |
9. है मंत्री की गलती तो मंत्री को लाओ,
हुआ हुक्म मंत्री को फाँसी चढ़ाओ |
चले मंत्री को लेके जल्लाद फौरन,
चढ़ाने को फाँसी उसी दम उसी क्षण |
मगर मंत्री था इतना दुबला दिखाता,
न गर्दन में फाँसी का फंदा था आता |
कहा राजा ने जिसकी मोटी हो गर्दन,
पकड़ कर उसे फाँसी दो तुम इसी क्षण |
व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘गुरु और चेला’ कविता से ली गई हैं, जो कवि 'सोहन लाल द्विवेदी' के द्वारा रचित है | कवि इन पंक्तियों के माध्यम से कहना चाहते हैं कि राजा को जैसे ही मालूम चला कि दीवार मंत्री की वजह से गिरी है, तो उसने मंत्री को हाजिर होने का आदेश दिया | मंत्री आया तो राजा ने उसे फाँसी पर चढ़ा देने का फ़रमान सुना दिया | जल्लाद मंत्री को उसी क्षण लेकर फाँसी पर चढ़ाने के लिए गया | किन्तु मंत्री काफी दुबला था | उसकी गर्दन इतनी पतली थी कि फाँसी के फंदे में नहीं आ पा रही थी | मूर्ख राजा ने उसकी जगह किसी मोटी गर्दन वाले को पकड़कर लाने को कहा, ताकि उसे फाँसी पर चढ़ाया जा सके |
10. चले संतरी ढूँढ़ने मोटी गर्दन,
मिला चेला खाता था हलुआ दनादन |
कहा संतरी ने चलें आप फ़ौरन,
महाराज ने भेजा न्यौता इसी क्षण |
बहुत मन में खुश हो चला आज चेला,
कहा आज न्यौता छकूँगा अकेला !!
मगर आके पहुँचा तो देखा झमेला,
वहाँ तो जुड़ा था अजब एक मेला |
व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘गुरु और चेला’ कविता से ली गई हैं, जो कवि 'सोहन लाल द्विवेदी' के द्वारा रचित है | कवि इन पंक्तियों के माध्यम से कहना चाहते हैं कि राजा के कहने पर संतरी मोटी गर्दन वाले व्यक्ति की तलाश में निकल पड़े | तभी उन्हें चेला हलुआ खाते हुए मिल गया | उन्होंने चेले से कहा, महाराज ने आपको न्यौता दिया है | संतरी की बात सुनकर चेला मन ही मन बहुत खुश हो गया यह सोचकर कि राजा के दरबार में खूब छककर खायेगा | लेकिन आकर देखा तो वहाँ एक नया झमेला खड़ा था | वहाँ लोगों की अजीब भाव मुद्रा में भीड़ लगी थी |
11. यह मोटी है गर्दन, इसे तुम बढ़ाओ,
कहा राजा ने इसको फाँसी चढ़ाओ!
कहा चेले ने-कुछ खता तो बताओ,
कहा राजा ने-‘चुप’ न बकबक मचाओ |
मगर था न बुद्धू - था चालाक चेला,
मचाया बड़ा ही वहीं पर झमेला!!
कहा पहले गुरु जी के दर्शन कराओ,
मुझे बाद में चाहे फाँसी चढ़ाओ |
व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘गुरु और चेला’ कविता से ली गई हैं, जो कवि 'सोहन लाल द्विवेदी' के द्वारा रचित है | कवि इन पंक्तियों के माध्यम से कहना चाहते हैं कि मोटी गर्दन वाले चेला को देखकर राजा ने फ़ौरन उसे फाँसी पर चढ़ाने का हुक्म दे दिया | चेला ने राजा से अपनी ख़ता पूछा तो राजा ने उसे चुप करा दिया कि ज्यादा बकबक मत करो | लेकिन चेला बहुत चालाक था | उसने वहीं पर एक बड़ा झमेला खड़ा कर दिया | कहा मुझे फाँसी पर चढ़ाने से पहले मेरे गुरु का एक बार दर्शन करा दो |
12. गुरुजी बुलाए गए झट वहाँ पर,
कि रोता था चेला खड़ा था जहाँ पर |
गुरु जी ने चेले को आकर बुलाया,
तुरंत कान में मंत्र कुछ गुनगुनाया |
झगड़ने लगे फिर गुरु और चेला,
मचा उनमें धक्का बड़ा रेल-पेला |
गुरु ने कहा-फाँसी पर मैं चढ़ूँगा,
कहा चेले ने—फाँसी पर मैं मरूंगा |
व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘गुरु और चेला’ कविता से ली गई हैं, जो कवि 'सोहन लाल द्विवेदी' के द्वारा रचित है | कवि इन पंक्तियों के माध्यम से कहना चाहते हैं कि चेला के कहने पर गुरुजी को बुलाया गया | उन्होंने चेला को रोते हुए देखा तो उसके पास गए और कान में कुछ मंत्र गुनगुनाए | तत्पश्चात् दोनों आपस में झगड़ने लगे | एक-दूसरे को धक्का देने लगे | गुरु कहते थे कि मैं फाँसी पर चढ़ूँगा और चेला कहता था मैं फाँसी पर चढ़ूँगा |
13. हटाए न हटते अड़े ऐसे दोनों,
छुटाए न छुटते लड़े ऐसे दोनों |
बढ़े राजा फ़ौरन कहा बात क्या है ?
गुरु ने बताया करामात क्या है |
चढ़ेगा जो फाँसी महूरत है ऐसी,
न ऐसी महूरत बनी बढ़िया जैसी |
वह राजा नहीं, चक्रवर्ती बनेगा,
यह संसार का छत्र उस पर तनेगा |
व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘गुरु और चेला’ कविता से ली गई हैं, जो कवि 'सोहन लाल द्विवेदी' के द्वारा रचित है | कवि इन पंक्तियों के माध्यम से कहना चाहते हैं कि फाँसी पर चढ़ने के लिए गुरु और चेला में भिडंत ज़ारी था, तभी राजा ने आगे बढ़कर पूछा कि आख़िर बात क्या है ? इस पर गुरु ने बताया कि यह फाँसी पर चढ़ने का शुभ महूरत है | इस मुहूर्त में जो फाँसी पर चढ़ेगा, वह राजा नहीं चक्रवर्ती बनेगा | पूरे संसार का छत्र उसपर तनेगा अर्थात् उसके सिर पर ताज सजेगा |
14. कहा राजा ने बात सच गर यही,
गुरु का कथन, झूठ होता नहीं है |
कहा राजा ने फाँसी पर मैं चढ़ूँगा,
इसी दम फाँसी पर मैं ही टॅगूंगा |
चढ़ा फाँसी राजा बजा खूब बाजा,
प्रजा खुश हुई जब मरा मूर्ख राजा |
बजा खूब घर-घर बधाई का बाजा,
थी अंधेर नगरी, था अनबूझ राजा |
व्याख्या - प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘गुरु और चेला’ कविता से ली गई हैं, जो कवि 'सोहन लाल द्विवेदी' के द्वारा रचित है | कवि इन पंक्तियों के माध्यम से कहना चाहते हैं कि जब राजा को गुरु जी से पता चला कि इस शुभ मुहूर्त में फाँसी पर चढ़ने वाला चक्रवर्ती राजा बनेगा, तो उसने कहा कि अगर यह बात सच है तो मैं स्वयं फाँसी पर चढ़ूँगा | तत्पश्चात्, राजा फाँसी पर चढ़ जाता है | प्रजा में खुशी की लहर दौड़ जाती है | मूर्ख राजा के मरते ही घर-घर में बधाई का बाजा बजने लगता है |
गुरु और चेला Summary Class 5 Hindi गुरु और चेला कविता का सारांश
गुरु और चेला कविता, कवि 'सोहन लाल द्विवेदी' के द्वारा रचित बुद्धिमता पर आधारित कविता है | इस कविता के माध्यम से एक मूर्ख राजा से प्रजा को छुटकारा दिलाने के लिए कवि द्वारा एक गुरु और उसका चेला के किरदार को सृजित किया गया है |
गुरु और चेला कविता के अनुसार, गुरु और उसका चेला एकदिन बिना पैसे के घूमने निकल पड़ते हैं | दोनों चलते हुए एक नगर पहुँचते हैं | वहाँ उन्हें एक ग्वालिन से मुलाकात होती है | ग्वालिन बताती हैं कि यह अंधेर नगरी है और इसका राजा बिल्कुल मूर्ख (अनबूझ) है | इस नगरी में सभी चीजों का दाम एक टका है | गुरुजी ने सोचा ऐसी नगरी में रहना ठीक नहीं है | अतः उन्होंने अपने चेले से वहाँ से चलने को कहा | चेले ने गुरुजी के साथ वापस जाने से इनकार कर दिया | गुरुजी चले गए, पर चेला वहीं पर रुक गया |
एक रोज चेला बाजार गया | वहाँ उसने देखा कि सभी चीजें टके सेर मिल रही हैं | चाहे वह खीरा हो या रबड़ी मलाई | चेले को सब कुछ अजीब लग रहा था | उस साल बरसात में बहुत बारिश हुई थी | नतीजा यह हुआ कि राज्य की एक दीवार गिर गई थी | राजा ने संतरी को फ़ौरन बुलाया और उससे दीवार गिरने की वजह पूछा | संतरी ने कारीगर को दोषी ठहराया | फिर कारीगर को बुलाया गया |
कारीगर ने भिश्ती की गलती ठहराया क्योंकि उसने गारा गीला कर दिया था | भिश्ती ने मशकवाले को दोषी बनाया, जिसने ज्यादा पानी की मशक बना दी थी | मशकवाले ने मंत्री पर आरोप लगाया, क्योंकि उसी ने बड़े जानवर का चमड़ा दिलवाया था | तत्काल मंत्री को बुलाया गया | वह अपने बचाव में कुछ न कह सका | अतः मंत्री को फाँसी देने का हुक्म राजा के द्वारा दे दिया गया | जल्लाद उसे फाँसी पर चढ़ाने चला | लेकिन मंत्री इतना दुबला था कि उसकी गर्दन में फाँसी का फंदा आया ही नहीं | अपनी मूर्खता का नमूना पेश करते हुए राजा ने आदेश दिया कि कोई मोटी गर्दन वाले को पकड़ लाओ और उसे फाँसी पर चढ़ा दो |
संतरी मोटी गर्दन वाले की तलाश में निकल पड़े |अचानक उन्हें चेला दिख गया | उसकी गर्दन मोटी थी | संतरी ने चेले को पकड़कर राजा के सामने पेश किया | राजा ने उसे फाँसी पर चढ़ा देने का हुक्म दे दिया | बेचारा चेला भारी मुसीबत में फँस गया | मगर वह अपनी चालाकी का उदाहरण पेश करते हुए कहा कि फाँसी पर चढ़ाने से पहले मुझे मेरे गुरुजी का दर्शन करा दो | गुरुजी को बुलाया गया | गुरुजी चेले के कान में कुछ बोले | फिर गुरु-चेला दोनों आपस में झगड़ने लगे | गुरु और चेला दोनों फाँसी पर चढ़ने के लिए तैयार थे | राजा कुछ देर तक उनका झगड़ा देखता रहा | फिर उसने उन दोनों को अपने पास बुलाया और झगड़ा का कारण पूछा तो गुरुजी ने कहा कि यह बहुत ही शुभ मुहूर्त है | इस मुहूर्त में जो फाँसी पर चढ़ेगा वह राजा नहीं बल्कि चक्रवर्ती बनेगा | संसार का छत्र उसके सिर तनेगा | तभी मूर्ख राजा बोल पड़ा, यदि ऐसी बात है तो मैं फाँसी पर चढ़ूँगा | तत्पश्चात्, उधर राजा को फाँसी पर चढ़ा दिया गया | इधर प्रजा में खुशी की लहर दौड़ गई |
आख़िरकार, प्रजा को एक मूर्ख राजा से मुक्ति मिल गई...||
गुरु और चेला का प्रश्न उत्तर
प्रश्न-1 टका पुराने ज़माने का 'सिक्का' था | अगर आजकल सब चीज़ें एक रुपया किलो मिलने लगें तो उससे किस तरह के फ़ायदे और नुकसान होंगे ?
उत्तर- अगर आजकल सब चीज़ें एक रुपया किलो मिलने लगें, तो इससे सभी को फ़ायदा होगा | फिर किसी को भूखा रहने की जरूरत नहीं होगी | लेकिन वहीं विक्रेताओं को नुकसान उठाना पड़ेगा | उन्हें अपने वस्तुओं की लागत भी निकलना मुश्किल होगा | इससे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा | अंतत: क्रय-विक्रय का सिलसिला गड़बड़ा जाएगा |
प्रश्न-2 भारत में कोई चीज़ खरीदने-बेचने के लिए ‘रुपये’ का इस्तेमाल होता है और बांग्लादेश में ‘टके’ का | ‘रुपया’ और ‘टका’ क्रमश: भारत और बांग्लादेश की मुद्राएँ हैं | नीचे लिखे देशों की मुद्राएँ कौन-सी हैं ?
सऊदी अरब, जापान, फ्रांस, इटली, इंग्लैंड
उत्तर- मुद्राएँ निम्नलिखित देशों की है -
• सऊदी अरब - रियाल
• जापान - येन
• फ्रांस - यूरो
• इटली - यूरो
• इंग्लैंड - पाउंड स्टर्लिंग
प्रश्न-3 अँधेर नगरी की प्रजा राजा के मरने पर खुश क्यों हुई ?
उत्तर- अंधेर नगरी की प्रजा राजा के मरने पर इसलिए खुश हुई क्योंकि वहाँ का राजा बेहद मूर्ख था | राजा का शासन व्यवस्था, व्यापार व्यवस्था, न्याय व्यवस्था और दंड देने का तरीका सब कुछ गलत था | वहाँ किसी और की सजा या करतूत का परिणाम कोई और भुगतता था |