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भारत में साहीवाल नस्ल के पशुओं को सबसे ज्यादा दूध देना वाला माना जाता है. वैज्ञानिक ब्रीडिंग के ज़रिए देसी गायों की नस्ल सुधार कर उन्हें साहीवाल नस्ल में बदल जा रहा है.
जिसके तहत देसी गाय की 5वीं पीढ़ी पूरी तरह से साहीवाल नस्ल में बदलने में सफलता मिली है. हरियाणा के करनाल में नेशनल डेयरी रिसर्च इंस्टीट्यूट (राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान) साहीवाल गायों पर रिसर्च (research) करने में लगे हैं इसलिए यहां बड़ी तादाद में इस नस्ल की गाय होती हैं. वहीं पंजाब और राजस्थान में भी साहीवाल पशुओं के लिए कुछ गौशालाएं हैं.
साहीवाल नस्ल की पहचान कैसे होती है? (Identification of Sahiwal breed)
दुधारू गाय की इस उन्नत नस्ल की गायों का सिर चौड़ा, सींग छोटे और मोटे और शरीर मध्यम आकार का होता है. गर्दन के नीचे लटकती हुई भारी चमड़ी और भारी लेवा होता है. इन गायों के रंग ज्यादातर लाल और गहरे भूरे रंग का होता है. इस नस्ल की कुछ गायों के शरीर पर सफेद चमकदार धब्बे भी पाए जाते हैं.
इस नस्ल के वयस्क बैल का औसतन वजन 450 से 500 किलो और मादा गाय का वजन 300-400 किलो तक हो सकता है. बैल की पीठ पर बड़ा कूबड़ जिसकी ऊंचाई 136 सेमी तथा मादा की पीठ पर बने कूबड़ की ऊंचाई 120 सेमी के करीब होती है.
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शुद्ध नस्ल के पशु या गाय कहां से ले? (Pure bred areas)
साहीवाल गाय अधिकतर उत्तरी भारत में पाई जाने वाली महत्वपूर्ण नस्ल है. इसके इसका उदगम स्थल पाकिस्तान पंजाब के मोंटगोमेरी जिले और रावी नदी के आसपास का है. सबसे ज्यादा दूध देने वाली यह नस्ल पंजाब के फिरोजपुर और अमृतसर जिलों में पाई जाती है. वहीं राजस्थान के श्री गंगानगर जिले में इस नस्ल की गाय हैं. पंजाब में फिरोजपुर जिले के फाज़िलका और अबोहर कस्बों में शुद्ध साहीवाल गायों के झुंड देखने को मिलेंगे.
साहीवाल गाय की खासियत (The specialty of Sahiwal cow)
यह गाय एक बार ब्याने पर 10 महीने तक दूध देती है और दूधकाल के दौरान ये गायें औसतन 2270 लीटर दूध देती हैं. यह प्रतिदिन 10 से 16 लीटर दूध देने की क्षमता रखती है.
साहीवाल गाय अन्य देशी गायों के मुकाबले ज़्यादा दूध देती है.
इनके दूध में अन्य गायों के मुकाबले ज़्यादा प्रोटीन और वसा मौजूद है.
इस नस्ल के बैल सुस्त और काम में धीमे होते हैं.
प्रथम प्रजनन की अवस्था जन्म के 32-36 महीने में आती है. इसकी प्रजनन अवधि में अंतराल 15 महीने की होती है.
इनके दूध में पर्याप्त वसा होता है लेकिन विदेशी गायों की तुलना में दूध कम होता हैं.
गाय की देशी नस्ल होने के कारण इसके रखरखाव और आहार पर भी अधिक खर्च करना नहीं पड़ता.
यह नस्ल अधिक गर्म इलाकों में भी आसानी से रह सकती हैं, जिससे गर्मी सहने और उच्च दुग्ध उत्पादन के कारण इस नस्ल को एशिया, अफ्रीका के देशों में भी निर्यात किया जाता है.
इनका शरीर बाहरी परजीवी के प्रति प्रतिरोधी होता है जिससे इसे पालने में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती है और पालने में बहुत फायदा होता है.
साहीवाल गाय की कीमत कितनी होती है? (Price of sahiwal cow)
इसकी गाय की कीमत इसके दूध उत्पादन की क्षमता, उम्र, स्वास्थ्य आदि पर निर्भर करती है. इन्ही बातों को ध्यान में रखकर कीमत का सही अनुमान लगाया जा सकता है. वैसे साहीवाल गाय लगभग 40 हजार से 60 हजार के बीच में खरीदी जा सकती है.
साहीवाल नस्ल की गाय या सीमन (वीर्य) के लिए सम्पर्क करें (Contact for Sahiwal cow or semen)
साहीवाल नस्ल के पशु, सीमन या प्रशिक्षण लेने के लिए देश के सबसे बड़े सरकारी कृत्रिम प्रजनन अनुसंधान केंद्र, राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान (NDRI) करनाल- हरियाणा में सम्पर्क किया जा सकता है या 0184-2259561, 0184-2359306, 0184-2259331, 0184-2259588, 09215508002 पर भी जानकारी प्राप्त की जा सकती है.
भारत में गाय पालन एक बेहतरीन व्यवसाय है। देसी गाय के दूध की पौष्टिकता को देखते हुए इसकी मांग अधिक है। छोटे बच्चों को भी डॉक्टर माँ के दूध के बाद गाय का दूध देने की ही सलाह देते हैं। आइये आज हम देसी गाय और उनकी नस्लों के बारे में जानते हैं…
देसी गाय की पहचान
भारत में देसी गाय की पहचान करना काफी आसान है। देसी गायों में कूबड़ पाया जाता है। इसी कारण इन्हें कूबड़ धारी भारतीय नस्ल की गाय भी कहा जाता है।
ज्यादा दूध का उत्पादन देने वाली देसी गाय
देसी गाय की नस्ल जिस क्षेत्र की है, अगर उसी क्षेत्र में पाली जाए, सही से दानापानी दिया जाए तो उत्पादन अच्छा होता है। आज हम आपको बताएंगे कि किस क्षेत्र में गाय की कौन सी नस्ल ज्यादा फायदा दे सकती है।
गिर नस्ल
गिर नस्ल की गाय मूलतः गुजरात के इलाकों से आती हैं। गिर के जंगलों में पाए जाने के कारण इनका नाम “गिर” पड़ा है। इन्हें भारत मे सबसे ज्यादा दूध उत्पादन देने वाली नस्ल माना जाता है। इस नस्ल की गाय एक दिन में 50-80 लीटर तक दूध दे सकती है। इस गाय के थन बड़े होते हैं। देश ही नहीं, विदेशों में भी इस गाय की काफी मांग है। इजराइल और ब्राजील के लोग गिर गाय को पालना पसंद करते हैं।
साहीवाल नस्ल
साहीवाल गायों को दूध व्यवसायी काफी पसंद करते हैं। यह गाय सालाना 2000 से 3000 लीटर तक दूध उत्पादन करती है। एक बार मां बनने पर लगभग 10 महीने तक ये दूध देती है। इन्हें भारत की सर्वश्रेष्ठ प्रजाति माना जाता है। मूल रूप से ये नस्ल पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में पाई जाती है।
राठी नस्ल
राठी नस्ल राजस्थान की है। राठस जनजाति के नाम पर इनका नाम राठी पड़ा है। इन्हें ज्यादा दूध देने के लिए जाना जाता है। यह गाय राजस्थान के गंगानगर, बीकानेर और जैसलमेर इलाकों में पाई जाती हैं। यह गाय प्रतिदन 6-8 लीटर दूध देती है।
हल्लीकर नस्ल
हल्लीकर गाय कर्नाटक में पायी जाने वाली नस्ल है। मैसूर (कर्नाटक) में ये नस्ल सबसे ज्यादा पायी जाती है। इस नस्ल की गायों की दूध देने की क्षमता काफी ज्यादा होती है।
हरियाणवी नस्ल
नाम के मुताबिक ये नस्ल हरियाणा की है। मगर उत्तर प्रदेश और राजस्थान के क्षेत्रों में भी इसे पाया जाता है। ये गाय सफेद रंग की होती है। इनसे दूध उत्पादन भी अच्छा होता है। इस नस्ल के बैल खेती में भी अच्छा कार्य करते हैं।
कांकरेज नस्ल
कांकरेज नस्ल मूलतः गुजरात और राजस्थान में पायी जाती है। ये प्रतिदिन 5 से 10 लीटर तक दूध देती हैं। कांकरेज गायों का मुंह छोटा और चौड़ा होता है। इस नस्ल के बैल भी अच्छे भार वाहक होते हैं।
लाल सिंधी नस्ल
लाल सिंधी गाय पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, तमिलनाडु में पाई जाती है। अपने रंग के कारण इन्हें लाल सिंधी गाय कहा जाता है। लाल रंग की इस गाय को अधिक दूध उत्पादन के लिए जाना जाता है। ये सालाना 2000 से 3000 लीटर तक दूध देती हैं। पहले ये नस्ल सिर्फ सिंध इलाके में पाई जाती थी लेकिन अब पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और ओडिशा में भी पाई जाती है।
कृष्णा वैली नस्ल
ये नस्ल मूल रूप से कर्नाटक की है। सफेद रंग की इस गाय के सींग छोटे और मोटी कद काठी होती है। एक बार मां बनने के बाद ये औसतन 900 दूध देती है।
नागौरी नस्ल
राजस्थान के नागौर जिले में पाई जाने वाली इस नस्ल का रंग हल्का लाल, सफेद और हल्का जामुनी होता है। एक बार मां बनने के बाद ये नस्ल 600 से 1000 लीटर तक दूध देती है। इसके दूध में वसा 4.9% होती है। इस नस्ल के बैल अच्छे भारवाहक क्षमता के होते हैं।
खिल्लारी नस्ल
ये नस्ल मूल रूप से महाराष्ट्र, कर्नाटक और पश्चिमी महाराष्ट्र में पाई जाती है। इस प्रजाति का रंग खाकी, सिर बड़ा, सींग लम्बे और पूंछ छोटी होती हैं। खिल्लारी प्रजाति के बैल काफी शक्तिशाली होते हैं। इस नस्ल के नर का वजन औसतन 450 किलो और गाय का औसतन 360 किलो होता है। इसके दूध में वसा लगभग 4.2% होती है। यह एक बार मां बनने के बाद यह गाय औसतन 240-515 लीटर दूध देती है।
सबसे बढ़िया दूध कौन सी गाय का होता है?
गिर गाय भारत के अलावा इजराइल और ब्राजील जैसे देशों में भी पाई जाती हैं। इसका नाम गुजरात के गिर जंगलों के नाम पर पड़ा है। ये भारत की सबसे ज्यादा दुधारू गाय है। गिर गाय एक दिन में 50 से 80 लीटर तक दूध देती है।भारत में सबसे अच्छी गाय कौन सी है?
गीर गाय को भारत की सबसे ज्यादा दुधारू गाय माना जाता है। यह गाय एक दिन में 50 से 80 लीटर तक दूध देती है। इस गाय के थन इतने बड़े होते हैं इसे एक साथ चार लोग मिलकर दुहते हैं। यह गाय गुजरात के गीर जंगलों में पाई जाती है जिसकी वजह से इनका नाम गीर गाय पड़ गया।कौन सी गाय शुभ मानी जाती है?
प्रात: उठकर काली गाय के भक्तिपूर्वक परिक्रमा करने से पृथ्वी के समान फल माना जाता है। गाय के शरीर में 33 कोटि देवी-देवताओं का वास माना जाता है, उसकी पूजा करने से सभी देवी-देवताओं का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है।गाय की शुद्ध भारतीय नस्ल कौन सी है?
थारपारकर गाय का उत्पत्ति स्थल 'मालाणी' (बाड़मेर) है। इस नस्ल की गाय भारत की सर्वश्रेष्ठ दुधारू गायों में गिनी जाती है। राजस्थान के स्थानीय भागों में इसे 'मालाणी नस्ल' के नाम से जाना जाता है। थारपारकर गौवंश के साथ प्राचीन भारतीय परम्परा के मिथक भी जुड़े हुए हैं।