- होम
- वीडियो
- सर्च
- वेब स्टोरीज
- ई-पेपर
- होम
- वीडियो
- सर्च
- वेब स्टोरीज
- ई-पेपर
- Hindi News
- Local
- Jharkhand
- Jamshedpur
- मन को प्रभु के स्मरण में लगाएं
मन को प्रभु के स्मरण में लगाएं
संत,ग्रंथ, सत्संग या भक्त मिलन सभी भगवान की कृपा से संभव है। भगवान अपनी कथा भक्तों को ही श्रवण कराते हैं। हम नित्य यात्रा में रहते हैं। हमारा हर कदम यात्रा में है। चाहे वो किसी भी मार्ग पर हो। जन्म से मृत्यु तक यात्रा रहती है। यह बातें कथावाचक लता सिन्हा ने कहीं। वे शनिवार को बारीडीह डिस्पेंसरी रोड में चल रही श्रीमदभगवत कथा के चौथे दिन भगवान की महिमा का वर्णन कर रही थीं।
लता सिन्हा ने कहा कि शरीर यात्रा करती है चाहे दुकान हो, खेत हो या मकान हो, लेकिन हमारे मन की यात्रा को भगवान तक पहुंचना है। तन सो जाता है, लेकिन मन यात्रा में रहता है। हमें मन को भगवान के दर्शन का केंद्र बनाना है। मृत्यु से पहले हमें हमारे मन को गोमाता, संत, सत्संग, गुरुनाम और भगवत के स्मरण में लगाना चाहिए। इससे हमें बैकुंठ धाम की प्राप्ति होगी। हमें मन को एकाग्र करना चाहिए। एक साथ दो काम नहीं करना चाहिए। इस मौके पर बड़ी संख्या में भक्त मौजूद थे।
बारीडीह डिस्पेंसरी रोड में कथावाचक लता सिन्हा से श्रीमदभगवत कथा सुनते श्रद्धालु।
श्रीनाथ रॉक गार्डेन, मनपीटा शिव मंदिर में चल रहे तीन दिवसीय प्राण-प्रतिष्ठा समारोह का शनिवार को दूसरा दिन था। इलाहाबाद से आए पंडित आचार्य राजुकमार मिश्र उनके सहयोगी पुजारी की देखरेख में वैदिक मंत्रोच्चार के बीच वेदी पूजन, जलाधिवास समेत अन्य अनुष्ठान हुए। शाम को स्थानीय कलाकारों द्वारा भजन संध्या का आयोजन किया गया। इस अवसर पर पंडित आचार्य राजुकमार मिश्र ने बताया कि मंदिर में शिवलिंग की प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी।
मित्र से कभी छल नहीं करना चाहिए
जमशेदपुर|साकचीस्थित श्री मनोकामना मंदिर में शनिवार को सुदामा चरित्र की संगीतमय कथा सुनाई गई। इसी के साथ पिछले सात दिनों से चल रही संगीतमय श्रीमदभगवत कथा का पूर्णाहुति के साथ समापन हो गया। कथावाचक पंडित प्रसन्न कुमार शास्त्री ने अंतिम दिन सुदामा चरित्र का वर्णन किया। इस दौरान झांकी भी सजाई गई, जिसका भक्तों ने दर्शन किया। उन्होंने कहा कि कभी भी मित्र से कपट नहीं करनी चाहिए। सुदामा ने मित्र से कपट कर चना खा लिया था, तो उन्हें इस कपट को भोगना पड़ा था। भक्तों को सच्चे मन से प्रभु का स्मरण करना चाहिए। सच्चे मन से की गई सेवा से भगवान प्रसन्न होते हैं। इस दौरान श्रद्धालुओं को परीक्षित मोक्ष की कथा भी सुनाई गई। अंत में भक्तों ने प्रसाद ग्रहण किया।
विषयसूची
- 1 भगवान में मन कैसे लगाएं?
- 2 भक्ति में मन क्यों नहीं लगता?
- 3 परमात्मा कैसे मिलेंगे?
- 4 भगवान मेरी क्यों नहीं सुनते?
भगवान में मन कैसे लगाएं?
इसे सुनेंरोकेंयोग अर्थात मन को ईश्वर से जोड़ना यहां जो कुछ है, सब परमात्मा से उत्पन्न हुआ है। दयालु और भक्त वत्सल है। उनको भज कर, मैं उन्हें प्राप्त करूंगा। इस भावना से मन को, भगवान में जोड़ने का नाम योग है।
भगवान की भक्ति कैसे प्राप्त करें?
इसे सुनेंरोकेंभगवान को चंदन, पुष्प अर्पण करना मात्र इतने में कोई भक्ति पूर्ण नहीं होती, यह तो भक्ति की एक प्रक्रिया मात्र है। भक्ति तो तब ही होती है जब सब में भक्तिभाव जागता है। ईश्वर सब में है। मैं जो कुछ भी करता हूं उस सबको ईश्वर देखते हैं, जो ऐसा अनुभव करता है उसको कभी पाप नहीं लगता।
ईश्वर को प्राप्त कैसे करें?
इसे सुनेंरोकेंउन्होंने कहा कि ईश्वर को प्राप्त करने का सबसे उत्तम और सरल उपाय प्रेम ही है। प्रेम भक्ति का प्राण भी होता है। प्रेम के बिना इंसान चाहे कितना ही जप, तप, दान कर ले, ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता है। दुनिया का कोई भी साधन प्रेम के बिना जीव को ईश्वर का साक्षात नहीं करा सकता है।
भक्ति में मन क्यों नहीं लगता?
इसे सुनेंरोकेंनास्तिक- धर्म के अनुसार वैसे व्यक्ति जो धर्म और ईश्वर में विश्वास नहीं करते हैं उसे नास्तिक या अधर्मी कहा जाता है. झूठ बोलना, बुरा व्यवहार करना आदि इनका स्वभाव हो जाता है. पूजा या ईश्वर के दर्शन के समय ऐसे व्यक्ति के आस-पास होने से ईश्वर भक्ति में पूरा ध्यान नहीं लग पाता है.
भगवान से मिलने के लिए क्या करना चाहिए?
इसे सुनेंरोकेंभगवान को पाने के 3 रास्ते गीता में बताए गए हैं। इनमें पहला है कर्म योग। दूसरा ज्ञान और तीसरा भक्ति याेग। भगवान श्रीकृष्ण जब अर्जुन को इन तीनों तरीके के बारे मे बताते हैं तब अर्जुन कहते हैं कि वे इन तीनों रास्तों पर नहीं चल पाएंगे।
भक्ति करने से क्या मिलता है?
इसे सुनेंरोकेंहमारे सभी सद्ग्रंथो में लिखा है कि प्राणी अपने भक्ति तथा पुण्यो के बल से स्वर्ग-महास्वर्ग में जाता है, वहाँ इसे सर्व सुख प्राप्त होता है और यदि वह शास्रानुसार भक्ति करता है तो उसे “मोक्ष”(मृत्यु उपरान्त पुनः जन्म ना होना) की प्राप्ति होती है । सतभक्ति करने से पूर्ण परमात्मा अपने भक्त की अकाल मृत्यु भी टाल देते है।
परमात्मा कैसे मिलेंगे?
इसे सुनेंरोकेंमनुष्य जीवनभर ईश्र्वर की खोज में दर-दर भटकता है लेकिन उसे कहीं भगवान नहीं मिलते हैं। ईश्र्वर स्वयं को खोजने से मिलते हैं। स्वयं को खोजो तो ईश्र्वर से मुलाकात होगी।
क्या इस दुनिया में भगवान होते हैं?
इसे सुनेंरोकेंजी, भगवान सच में होते हैं। सभी धर्मों के पवित्र शास्त्र प्रमाणित करते है की भगवान ब्रह्मा, विष्णु या शिव जी या ईसा मसीह नही है बल्कि कबीर साहेब हैं जो साकार है निराकार नहीं। जरा सोचिए भगवान नही है तो यह सब ग्रह, सृष्टि कैसे चलती है। अगर भगवान न होते तो आज सब जगह हाहाकार मच रही होती।
भगवान की भक्ति कैसे करनी चाहिए?
भगवान मेरी क्यों नहीं सुनते?
इसे सुनेंरोकेंप्रार्थना का अर्थ यह नहीं होता है कि सिर्फ बैठकर कुछ मंत्रों का उच्चारण किया जाए। इसके लिए आवश्यक है कि आप निर्मल, शांत और ध्यान अवस्था में हों। इसलिए वैदिक पद्धति में प्रार्थना के पहले ध्यान होता है और प्रार्थना के उपरांत भी ध्यान होता है।
भगवान के भगवान कौन थे?
इसे सुनेंरोकेंभगवान को ईश्वरतुल्य माना गया है इसीलिए इस शब्द को ईश्वर, परमात्मा या परमेश्वर के रूप में भी उपयोग किया जाता है, लेकिन यह उचित नहीं है। ब्रह्मा, विष्णु, महेष, राम, कृष्ण और बुद्ध आदि सभी ईश्वर नहीं है। भगवान शब्द का उपयोग विष्णु और शिव के अवतारों के लिए किया जाता है।
इसे सुनेंरोकेंमानव शरीर पाने के बाद ही कर्म करके मनुष्य को भगवान से प्रेम करने का अवसर मिलता है। इसलिए भगवान की भक्ति करनी चाहिए। 84 लाख योनियों में श्रेष्ठ मानव जीवन पाने के बाद भी जो लोग स्वर्ग पाने की इच्छा रखते हैं, वे मूर्ख हैं। कर्म इस संसार में आने वाला हर जीव करता है, मगर भगवत् आराधना और भक्ति केवल मानव तन से ही संभव है।
मन को ईश्वर में कैसे लगाएं?
इसे सुनेंरोकेंमन को ईश्वर में कैसे लगाएं? – Quora. मन प्रेम का गुलाम है , वह वहीँ टिकेगा जहाँ प्रेम होगा। यदि ईश्वर के साथ प्रेम भावना व ध्यान का समावेश कर लिया जाये तो निश्चित रूप से मन उसमे उसी प्रकार लगा रहेगा जैसे संसारी मनुष्यों का भोग विलास में लगा रहता है। ईश्वर सृष्टि में कहीं कोई गड़बड़ नहीं।