अरब स्प्रिंग की शुरुआत के पीछे कौन कौन से कारण थे? - arab spring kee shuruaat ke peechhe kaun kaun se kaaran the?

विषयसूची

  • 1 अरब स्प्रिंग के क्या कारण थे?
  • 2 अरब क्रांति में विरोध प्रदर्शनों के लिए कौन कौन से तरीके अपनाए जाते थे *?
  • 3 अरब स्प्रिंग क्या था और यह कब हुआ?
  • 4 अरब स्प्रिंग या क्रांति के लिए उत्तरदाई प्रमुख कारक कौन कौन से थे * 1 Point?
  • 5 आप नए विकास के लिए अरब वसंत के उद्भव के बारे में क्या जानते हो इसकी उद्भव के लिए किसी भी तीन कारणों पर चर्चा?
  • 6 अरब क्रांति से आप क्या समझते हैं?

अरब स्प्रिंग के क्या कारण थे?

इसे सुनेंरोकेंArab spring – अरब स्प्रिंग 2011 में सरकार के विरोध में शुरू हुआ। अरब स्प्रिंग के दौरान सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन, विद्रोह, सशस्त्र विद्रोह हुए। उन सभी देशों की तानाशाही के कारण वहां के लोग तंग आ चुके थे। सरकार ने इसे शुरू होने के कई कारण बताए, क्रांतियों की एक श्रृंखला थी जिसमें दमनकारी शासन और जीवन स्तर निम्न था

अरब क्रांति में विरोध प्रदर्शनों के लिए कौन कौन से तरीके अपनाए जाते थे *?

इसे सुनेंरोकेंहालाँकि यह क्रान्ति अलग-अलग देशों में हो रही थी, परंतु इनके विरोध प्रदर्शनों के तौर-तरीके में कई समानताएँ थीं जैसे- हड़ताल, धरना, मार्च एवं रैली। विशेषज्ञों के मुताबिक अरब स्प्रिंग की मुख्य वजह आम जनता की वहाँ की सरकारों से असंतोष एवं आर्थिक असमानता थीं।

अरब स्प्रिंग क्या है क्या अल्जीरिया और सूडान शासन में हुए परिवर्तन अरब क्रांति के आगमन का संकेत देते हैं?

इसे सुनेंरोकेंअरब विद्रोह की शुरुआत कई कारकों के संयोजन से हुई। इस क्रम में सबसे अहम भूमिका इस क्षेत्र की चरमराती अर्थव्यवस्था ने निभाई। जहाँ एक ओर, इन देशों में प्रतिपालन पर आधारित आर्थिक मॉडल कमज़ोर पड़ गया था। वहीं दूसरी ओर इन देशों के शासक दशकों से सत्ता में जमे हुए थे और जनता उनसे मुक्ति चाहती थी।

अरब क्रांति के क्या कारण थे तथा इसका क्या प्रभाव पड़ा?

इसे सुनेंरोकेंविशेषज्ञों के मुताबिक अरब स्प्रिङ की मुख्य वजह आम जनता की वहाँ की सरकारों से असंतोष एवं आर्थिक असमानता थीं। इनके अलावा तानाशाही, मानवाधिकार उल्लंघन, राजनैतिक भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, बदहाल अर्थ-व्यवस्था एवं स्थानीय कारण भी प्रमुख थे। Bouazizi) ने पुलिस भ्रष्टाचार एवं दुर्व्यव्हार से त्रस्त हो आत्मदाह कर लिया।

अरब स्प्रिंग क्या था और यह कब हुआ?

18 दिसंबर 2010
२०१० से प्रारंभ होने वाली अरब जगत की क्रांतिकारी लहर/शुरू होने की तारीखें

अरब स्प्रिंग या क्रांति के लिए उत्तरदाई प्रमुख कारक कौन कौन से थे * 1 Point?

इसे सुनेंरोकेंविशेषज्ञों के मुताबिक अरब स्प्रिङ की मुख्य वजह आम जनता की वहाँ की सरकारों से असंतोष एवं आर्थिक असमानता थीं। इनके अलावा तानाशाही, मानवाधिकार उल्लंघन, राजनैतिक भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, बदहाल अर्थ-व्यवस्था एवं स्थानीय कारण भी प्रमुख थे।

क्या अन्य देशों में अरब क्रांति सफल रही थी?

इसे सुनेंरोकें2011 में ट्यूनीशिया से शुरु हुई अरब वसंत की क्रांति मिस्र, सीरिया, लीबिया, यमन और कई दूसरे अरब देशों तक फैली और अरब क्रांति कहलायी. पांच साल बीतने के बाद इनमें से केवल ट्यूनीशिया को ही सफल प्रयोग माना जा सकता है

अरब क्रांति का क्या परिणाम निकला?

इसे सुनेंरोकेंइसकी आग की लपटें पहले-पहल अल्जीरिया, मिस्र, जॉर्डन और यमन पहुँची जो शीघ्र ही पूरे अरब लीग एवं इसके आसपास के क्षेत्रों में फैल गई। इन विरोध प्रदर्शनो के परिणाम स्वरूप कई देशों के शासकों को सत्ता की गद्दी से हटने पर मजबूर होना पड़ा।

आप नए विकास के लिए अरब वसंत के उद्भव के बारे में क्या जानते हो इसकी उद्भव के लिए किसी भी तीन कारणों पर चर्चा?

इसे सुनेंरोकें2011 में ट्यूनीशिया से शुरु हुई अरब वसंत की क्रांति मिस्र, सीरिया, लीबिया, यमन और कई दूसरे अरब देशों तक फैली और अरब क्रांति कहलायी. इस क्रांति से पूरा मध्यपूर्व हिल गया था. फिर ट्यूनीशिया से प्रेरणा लेकर दूसरे अरब देशों में जन जागृति और आंदोलनों का जो सिलसिला चला, वो अरब वसंत कहलाया

अरब क्रांति से आप क्या समझते हैं?

इसे सुनेंरोकेंमध्य पश्चिमी एशिया एवं उत्तरी अफ्रीका में श्रृखंलाबद्ध विरोध-प्रदर्शन एवं धरना का दौर 2010 मे आरंभ हुआ, इसे अरब जागृति, अरब स्प्रिंग या अरब विद्रोह कहतें हैं। अरब स्प्रिंग, क्रान्ति की एक ऐसी लहर थी जिसने धरना, विरोध-प्रदर्शन, दंगा तथा सशस्त्र संघर्ष की बदौलत पूरे अरब जगत के संग समूचे विश्व को हिला कर रख दिया।

अरब स्प्रिंग कहाँ से शुरू हुआ और क्यों?

इसे सुनेंरोकेंमध्य पश्चिमी एशिया एवं उत्तरी अफ्रीका में श्रृखंलाबद्ध विरोध-प्रदर्शन एवं धरना का दौर 2010 मे आरंभ हुआ, इसे अरब जागृति, अरब स्प्रिंग या अरब विद्रोह कहतें हैं।

अरब स्प्रिंग या क्रांति 21वीं सदी में पश्चिमी एशियाई देशों में कब प्रारंभ हुई * 1 Point?

इसे सुनेंरोकें18 दिस॰ 2010 – दिसंबर 2012 मध्य पश्चिमी एशिया एवं उत्तरी अफ्रीका में श्रृखंलाबद्ध विरोध-प्रदर्शन एवं धरना का दौर 2010 मे आरंभ हुआ, इसे अरब जागृति, अरब स्प्रिंग या अरब विद्रोह कहतें हैं।

  • केविन कोनोली
  • बीबीसी मध्य पूर्व संवाददाता

14 दिसंबर 2013

अपडेटेड 16 दिसंबर 2013

तीन साल पहले अरब देशों में बदलाव की जो लहर आई थी उसे अरब क्रांति (अरब स्प्रिंग) के नाम से जाना गया था. इस क्रांति के तीन साल बाद भी अरब देशों में बदलाव की बयार थमी नहीं है.

अरब क्रांति में भले ही विद्रोहियों ने कई सत्ताएं बदल दीं लेकिन इसके कई नतीजे अप्रत्याशित रहे हैं.

बीबीसी के मध्यपूर्व संवाददाता केविन कोनोली ने ऐसे दस प्रभावों की पड़ताल की जिनकी इस क्रांति से उम्मीद नहीं की गई थी.

1. तूफ़ान झेल गए शाही परिवार

अरब क्रांति शाही परिवारों के लिए काफ़ी ठीक रही, कम से कम उससे बेहतर रही जितने की आशंका उनमें से कइयों को रही होगी.

खाड़ी के देशों की तरह ही जॉर्डन और मोरक्को के मामले में यह बात लागू हुई. इस समय गिरने या लड़खड़ाने वाली ज़्यादातर सरकारें कमोबेश सोवियत संघ की तर्ज पर एक दलीय थीं जिनके पीछे मज़बूत सुरक्षा व्यवस्था थी.

इसकी कोई एक वजह नहीं थी. एक ओर बहरीन को जहाँ सुरक्षा बलों के इस्तेमाल से कोई गुरेज़ नहीं था वहीं दूसरे देशों ने अन्य तरीक़ों का इस्तेमाल किया.

जैसे क़तर ने बदलाव के शुरुआती महीनों के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र के वेतनों में इज़ाफ़ा कर दिया. खाड़ी शासक असंतुष्टों को शांत करने की स्थिति में थे.

कम वेतन वाली नौकरियों में अधिकांश अप्रवासी कर्मचारी थे और अगर कोई काम की स्थितियों की शिकायत करता या राजनीतिक अधिकारों की बात उठाता तो उसे वापस भेजा जा सकता था.

ऐसा भी हो सकता है कि लोग अपने शाही शासकों से जुड़ाव महसूस करते हों, जो तानाशाहों के मामलों में नहीं हो सकता है चाहे वह कितना ही वैभवशाली जीवन जीएं.

2. अब अमरीका की नहीं चलती

अमरीका के लिए अरब क्रांति का अनुभव कुछ अच्छा नहीं रहा.

शुरूआती दौर में अमरीका के अपेक्षाकृत स्थिर मध्य पूर्व को लेकर चीज़ें साफ़ थीं. उसके मिस्र, इसराइल और सऊदी अरब के साथ विश्वसनीय रिश्ते थे.

लेकिन अमरीका मिस्र में हुई घटनाओं के साथ तारतम्य बिठा पाने में नाकाम रहा. पहले तो मोहम्मद मोर्सी का चुनाव हो गया और फिर सेना ने उन्हें अपदस्थ कर दिया.

हालांकि इस विफलता के लिए ओबामा प्रशासन को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. अमरीका चुनाव तो चाहता है, लेकिन परिणाम उसे रास नहीं आए- जिसमें मुस्लिम ब्रदरहुड की स्पष्ट साफ़ जीत हो गई.

और अब वह मिस्र में सैन्य विद्रोह नहीं चाहता है (कम से कम 21वीं सदी में). लेकिन संभवतः सैन्य समर्थन वाली सरकार से इसे कोई दिक्कत नहीं, जो इसराइल के साथ शांति के पक्ष में हो.

अमरीका अब भी एक महाशक्ति है, लेकिन अब वह मध्यपूर्व में चीजें उसकी मर्जी से नहीं चलती हैं. लेकिन अरब में वह अकेला नाकाम नहीं हुआ है.

तुर्की भी अब मिस्र में जीतने वाले दल को नहीं पहचान पाया और उसे सीरिया में विद्रोहियों के साथ रिश्ते बनाने में मुश्किल पैदा हो रही है.

3. सुन्नी बनाम शिया

सीरिया में निहत्थे प्रदर्शनकारियों का बर्बर प्रशासन वाली सरकार के ख़िलाफ़ संघर्ष जिस तेज़ी के साथ एक सांप्रदायिक गृह युद्ध में तब्दील हो गया, उसने सबको अचम्भित कर दिया.

क्षेत्र में कई जगह शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच तनाव बढ़ रहा है. और अब शिया ईरान और सुन्नी सऊदी अरब सीरिया में एक छद्म युद्ध लड़ रहे हैं.

इस्लाम की दो शाखाओं के बीच गहराते अंतर की वजह से इराक़ में भी साम्प्रदायिक हिंसा को बढ़ावा मिल रहा है. हो सकता है कि यह अरब दुनिया में हाल के दिनों में हुए बदलावों की महत्वपूर्ण विरासत में तब्दील हो जाए.

4. ईरान की जीत

अरब क्रांति की शुरुआत में किसी ने भी यह नहीं सोचा होगा की इससे ईरान को फ़ायदा होगा. इस प्रक्रिया की शुरुआत में ईरान अपनी परमाणु महत्वाकांक्षाओं के चलते लगे प्रतिबंधों के चलते अलग-थलग कर दिया गया था.

अब स्थिति यह है कि ईरान से समझौता किए बिना सीरिया में किसी तरह का हल सोचना भी संभव नहीं. यहां तक की नए राष्ट्रपति के नेतृत्व में यह अपने परमाणु कार्यक्रम को लेकर विश्व शक्तियाों से बात भी कर रहा है.

सऊदी अरब और इसराइल दोनों अमरीका के ईरान के साथ बातचीत की तैयारियों को लेकर चौकन्ने हैं. कोई भी ऐसी चीज़, जो इन दोनों देशों को एक साथ कर दे, यकीनन ऐतिहासिक होगी.

5. जो जीता वही हारा

इस पूरी प्रक्रिया में विजेताओं और पराजितों को चुनना ख़ासा पेचीदा है. मिस्र में मुस्लिम ब्रदरहुड की ओर देखें. होस्नी मुबारक के पदच्युत होने के बाद बाद हुए चुनावों में, 80 साल से पृष्ठभूमि में रहा यह संगठन सामने आया और मध्य पूर्व के सबसे बड़े देश को अपने रंग में रंगने लगा.

लेकिन सेना ने एक बार फिर इसे सत्ता से बाहर कर दिया है और भूमिगत होने को मजबूर कर दिया है. इसके कई वरिष्ठ नेताओं को लंबी जेल की सज़ा भुगतनी पड़ रही है.

एक साल पहले मुस्लिम ब्रदरहुड विजेता नज़र आ रहा था, लेकिन अब नहीं.

यह क़तर जैसे छोटे, राजनीतिक महत्वाकांक्षी खाड़ी देश के लिए भी बुरी ख़बर थी, जिसने मिस्र में सत्ता संघर्ष के दौरान मुस्लिम ब्रदरहुड को समर्थन दिया था.

अरब क्रांति के शुरुआती दिनों में क़तर लीबियाई विद्रोहियों को भी अपना समर्थन दे रहा था. क्षेत्रीय प्रभाव बढ़ाने की इसकी रणनीति को काफी धक्का पहुंचा है.

6. कुर्दों ने उठाया फ़ायदा

हालांकि इराक़ी कुर्दिस्तान के लोग विजेता लगने लगे हैं- और यहां तक कि अपना देश पाने का उनका बहुप्रतीक्षित सपना भी पूरा होता लग रहा है. वे देश के उत्तरी क्षेत्र में रहते हैं, जहां तेल है और वे अपने शक्तिशाली पड़ोसी देश तुर्की के साथ स्वतंत्र आर्थिक संबंध कायम कर रहे हैं.

कुर्दिस्तान का अपना ध्वज है, राष्ट्रीय गान है और सशस्त्र सेना भी है. हो सकता है कि इराक़ी कुर्दों को देश के धीमे विघटन से फ़ायदा मिला हो, क्योंकि यह अब एक एकीकृत देश की तरह काम नहीं करता.

हालांकि इसका भविष्य तनावमुक्त नहीं होगा (ईरान, सीरिया और तुर्की में भी कुर्द आबादी है) लेकिन इरबिल जैसे कुर्द शहरों में लोग सोचते हैं कि उनका भविष्य उज्जवल और स्वतंत्र होगा. बेशक यह प्रक्रिया अरब क्रांति के पहले ही शुरू हो चुकी थी, लेकिन कुर्द क्षेत्र में हो रहे बदलाव का लाभ उठा रहे हैं.

7. महिलाएं बनीं निशाना

अरब क्रांति के कई परिणाम (कम से कम अब तक) काफ़ी निराशाजनक रहे हैं. मिस्र के तख्तापलट के शुरुआती दिनों में तहरीर चौराहे पर भीड़ में बहुत सी साहसी और जुझारू महिलाएं राजनीतिक अधिकारों के साथ व्यक्तिगत स्वतंत्रता की भी मांग कर रही थीं, जो प्रदर्शनों के केंद्र में भी थी.

इन महिलाओं को ज़रूर निराशा हुई होगी. सार्वजनिक क्षेत्रों में यौन हिंसा की कहानियां डराने वाली हद तक आम हैं. थॉम्पसन-रायटर्स की ओर से कराए गए सर्वे के अनुसार अरब देशों में महिलाओं के लिए सबसे ख़राब जगह मिस्र है. यह सऊदी अरब से भी ख़राब स्थिति में है. यहां यौन हिंसा, प्रजनन के अधिकारों, परिवारों में महिलाओं के साथ बर्ताव और राजनीति और अर्थव्यवस्था में उनकी भागीदारी के मामले में स्थिति बहुत बुरी है.

8. क्या सोशल मीडिया के महत्व को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया?

विरोध प्रदर्शनों की शुरुआत में पश्चिमी मीडिया में फ़ेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की भूमिका को लेकर काफी उत्साह था, क्योंकि पश्चिमी पत्रकार स्वयं भी ट्विटर और फ़ेसबुक को पसंद करते हैं.

सऊदी अरब जैसे देशों में सोशल मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका है, जहां वे लोगों को किसी मुद्दे पर राष्ट्रीय स्तर पर बहस छेड़ने की अनुमति देते हैं.

बदलाव की शुरुआत में इनकी भूमिका भी रही है, लेकिन वे एक ख़ास पढ़े-लिखे और प्रभावशाली (अक्सर बहुभाषी) उदारवादी तबके तक ही सीमित थे. एक समय उनके विचारों को कुछ ज़्यादा ही बढ़ा-चढ़ा कर पेश भी किया गया. सेटेलाइट टीवी अभी भी कई देशों में महत्वपूर्ण हैं, जहां लोग लिख-पढ़ नहीं सकते हैं और उनके पास इंटरनेट भी नहीं है.

9. दुबई की प्रॉपर्टी में उछाल

मध्यपूर्व में हुई घटनाओं के असर उन देशों से काफ़ी दूर अब तक नज़र आ रहे हैं. एक विचार यह है कि मिस्र, लीबिया, सीरिया और ट्यूनीशिया जैसे अस्थिर देशों के समृद्ध लोगों के लिए अपना और अपने परिवार का पैसा लगाने के लिए सुरक्षित जगह के रूप में दुबई पहली पसंद बनकर उभरा है. यही नहीं पेरिस और लंदन जैसे देशों के प्रॉपर्टी बाजारों में भी इसका असर देखा जा सकता है.

10. नक्शे में बदलाव

पहले विश्वयुद्ध के दौरान ब्रिटेन और फ्रांस द्वारा बनाया गया मध्य पूर्व का नक्शा अब मानो धुंधला होता जा रहा है. सीरिया और इराक़ जैसे देशों को अपनी वर्तमान शक्ल तभी मिली थी.

लेकिन अब कोई भी नहीं जानता है कि सीरिया और इराक़ जैसे देश पांच साल बाद भी अपने वर्तमान स्वरूप, एकीकृत राज्य के रूप में, कायम रह पाएंगे या नहीं?

एक पुराना सबक है, जो दुनिया फिर से सीख रही है. क्रांतियां अप्रत्याशित होती हैं और इनके परिणाम साफ़ होने में कई सालों का वक़्त लग सकता है.

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