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आपराधिक न्याय प्रणाली के प्रमुख कौन कौन होते हैं?
इसे सुनेंरोकेंप्रश्न – आपराधिक न्याय व्यवस्था में मुख्य कौन कौन से लोग होते हैं? उत्तर – पुलिस, सरकारी वकील, बचाव पक्ष का वकील और न्यायाधीश, ये चार अधिकारी आपराधिक न्याय व्यवस् था में मुख्य लोग होते हैं।
आपके विचार में भारत में न्याय प्राप्त करने के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा कौन सी है इसे दूर करने के लिए क्या करना चाहिए?
इसे सुनेंरोकेंपरंतु संसाधनों का अभाव ज्यादातर नागरिकों, खासतौर पर उन वंचित तबकों, को न्याय या किसी अन्य मूल अधिकार से इंकार करने का कारण नहीं हो सकता जिनकी अस्पष्ट कानूनों और प्रभावी बाधा के रूप में कार्य करने वाली उच्च लागत के कारण न्याय तक सीमित पहुंच है।
भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार की आवश्यकता क्यों है?
इसे सुनेंरोकेंउद्देश्य आपराधिक कानून के मूलभूत सिद्धांतों की जांच करने का कार्य ताकि आपराधिक न्याय प्रणाली में विश्वास बहाल किया जा सके। इसमें दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC), 1973, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 और भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की समीक्षा शामिल थी।
आपराधिक न्याय प्रणाली के प्रमुख कौन कौन होते हैं न्यायाधीश की भूमिका उदाहरण से स्पष्ट कीजिए?
इसे सुनेंरोकेंअदालत में सरकारी वकील राज्य का पक्ष प्रस्तुत करता है। सरकारी वकील की भूमिका तब शुरू होती है जब पुलिस जाँच पूरी करके अदालत में आरोपपत्र दाखिल कर देती है। सरकारी वकील की इस जाँच में कोई भूमिका नहीं होती। उसे राज्य की ओर से अभियोजन प्रस्तुत करना होता है।
भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली तक पहुंच की चुनौतियां क्या है?
इसे सुनेंरोकेंविचाराधीन कैदियों की उच्च संख्या : सबसे अधिक विचाराधीन कैदियों के मामले में भारत, विश्व के प्रमुख देशों में से एक है। यह अनुभव किया गया कि मामलों के निपटारे में देरी के परिणामस्वरूप विचाराधीन और दोषी कैदियों के मामलों से संबंधित अन्य व्यक्तियों के मानव अधिकारों का उल्लंघन होता है।
कानून का शासन क्या है समझाइए?
इसे सुनेंरोकेंकानून के शासन का मतलब है कि सभी कानून देश के सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू होते हैं। कानून से ऊपर कोई व्यक्ति नहीं है। चाहे वह सरकारी अधिकारी हो या धन्नासेठ हो और यहाँ तक कि राष्ट्रपति ही क्यों न हो। किसी भी अपराध या कानून के उल्लंघन की एक निश्चित सज़ा होती है।
वे कौन से कारण हैं जिनके आधार पर यह कहा जाता है कि भारत में न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति सीमित है?
इसे सुनेंरोकेंयह अनुच्छेद सरकार के तीनों अंगों विधायिका, कार्यपालिका तथा न्यायपालिका को अपनी-अपनी हद में रहने को बाध्य करता है ताकि यह एक दूसरे के क्षेत्रों में हस्तक्षेप न करें। संविधान में अनुच्छेद 13, 32 व 226 के द्वारा उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय को न्यायिक पुनर्विलोकन की शक्ति दी गई है।
न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए संविधान के विभिन्न प्रावधान कौन कौन से हैं?
न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए संविधान के विभिन्न प्रावधान निम्नलिखित हैं :
- न्यायाधीशों की नियुक्ति : सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है ।
- न्यायाधीशों की योग्यताएं :
- लंबा कार्यकाल :
- अच्छा वेतन :
- पेंशन :
क्या चुनौतियों भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली के लिए उपयोग में हिंदी में विचार विमर्श कर रहे हैं?
इसे सुनेंरोकेंआर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 के अनुसार, न्यायिक प्रणाली में लगभग 3.5 करोड़ मामले लंबित हैं। इन कुल लंबित मामलों में से 80 प्रतिशत से अधिक मामले ज़िला और अधीनस्थ न्यायालयों में हैं। लंबित मामलों का मुख्य कारण भारत में न्यायालयों की कमी, न्यायाधीशों के स्वीकृत पदों का कम होना तथा पदों की रिक्त्तता है।
भारत में आपराधिक न्याय प्रणाली तक पहुंच की चुनौतियां क्या हैं विवेचना कीजिए?
इसे सुनेंरोकेंभारत में आपराधिक न्याय प्रणाली : आपराधिक न्याय प्रणाली का तात्पर्य सरकार की उन एजेंसियों से है जो कानून लागू करने, आपराधिक मामलों पर निर्णय देने और आपराधिक आचरण में सुधार करने हेतु कार्यरत हैं। वास्तव में आपराधिक न्याय प्रणाली सामाजिक नियंत्रण का एक साधन होती है।
भारतीय संविधान कितने प्रकार की न्यायिक व्यवस्था की स्थापना करता है?
इसे सुनेंरोकेंभारतीय संविधान एकीकृत न्यायिक व्यवस्था की स्थापना करता है। इसका अर्थ यह है कि विश्व के अन्य संघीय देशों के विपरीत भारत में अलग से प्रांतीय स्तर के न्यायालय नहीं हैं। भारत में न्यायपालिका की संरचना पिरामिड की तरह है जिसमें सबसे ऊपर सर्वोच्च न्यायालय फिर उच्च न्यायालय तथा सबसे नीचे जिला और अधीनस्थ न्यायालय है।
न्याय प्रणाली क्या है?
इसे सुनेंरोकेंभारतीय न्यायपालिका (Indian Judiciary) आम कानून (कॉमन लॉ) पर आधारित प्रणाली है। यह प्रणाली अंग्रेजों ने औपनिवेशिक शासन के समय बनाई थी। इस प्रणाली को ‘आम कानून व्यवस्था’ के नाम से जाना जाता है जिसमें न्यायाधीश अपने फैसलों, आदेशों और निर्णयों से कानून का विकास करते हैं।